उदय केसरी
जिस मीडिया ने पहले निर्मल बाबा के लाइव समागम कार्यक्रम को बतौर विज्ञापन
प्रसारित कर उन्हें देशभर के लोगों से सीधे जोड़ने का काम किया, उसी की आंख
बाद में उनकी कमाई पर लग गई। लेकिन, मजे बात यह है कि निर्मल बाबा से
न्यूज चैनलों को बतौर विज्ञापन होने वाली कमाई अब भी जारी है। कुछ चैनलों
पर पहले की तरह ही अब भी समागम के लाइव कार्यक्रमों का प्रसारण हो रहा है।
पिछले दिनों झारखंड के एक अखबार प्रभात खबर ने निर्मल बाबा के असली नाम और
पहचान की खोज क्या की, कुछ न्यूज चैनल वालों ने अपने चिरपरिचित अंदाज में
इसे सनसनीखेज बनाकर पेश करना शुरू कर दिया। निर्मल बाबा के खिलाफ तमाम तरह
के तथ्यों को खोज निकालने की होड़ सी लग गई। इसपर विराम तब लगा जब खुद
निर्मल बाबा ने एक न्यूज चैनल पर अपनी सारी कहानी बयां कर दी। उन्होंने
बताया कि वह कोई चमत्कार नहीं करते हैं, बस जो उन्हें लोगों के बारे में
समागम के दौरान महसूस होता है, उसका हल बताने की कोशिश करते हैं। इससे
उन्हें जो धन मिलता है, उसके लिए वे नियमतः टैक्स चुकाते हैं और किसी से
गुप्त तरीके से धन नहीं लेते।
निर्मल बाबा के इस इंटरव्यू के बाद उनसे संबंधित खबरों की सनसनी जैसे जाती
रही और एक-दो दिनों में ही न्यूज चैनलों का ध्यान निर्मल बाबा से हटने लगा।
हाल तक यह बाबा खबरों से लगभग विलुप्त हो गए थे। इसीबीच, भाजपा की
फायरब्रांड कहे जाने वाली नेत्री उमा भारती ने निर्मल बाबा के मुद्दे पर
बयान देकर एक बार फिर उन्हें खबरों के केंद्र में ला दिया, लेकिन उमा भारती
ने जो कुछ कहा है, उसपर मीडिया को गौर करने और समाज को जागरूक करने की
जरूरत है। उमा भारती ने कहा, ‘मैं निर्मल बाबा के पक्ष या विपक्ष में नहीं
हूं। मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि जब बात समागम, सभाओं की हो तो केवल
निर्मल बाबा का नाम ही सामने क्यों आ रहा है। भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे
देशों में भी इसी तरह की धार्मिक सभाएं आयोजित की जाती हैं।’ भारती ने यह
भी कहा कि निर्मल बाबा को रोकना है तो ईसाई धर्म गुरू पौल दिनाकरण को भी
रोका जाना चाहिए। उमा के इस बयान में दक्षिणपंथी राजनीति की बू से इंकार
नहीं किया जा सकता और यह भी कि ईसाई धर्मगुरू ही नहीं, कई हिन्दू धर्म गुरू
और योग गुरू भी अच्छी-खासी फीस लेकर अपनी सभाओं में लोगों को आने देते
हैं-मसलन, आशाराम बापू, श्रीश्री रविशंकर, स्वामी रामदेव आदि। यहीं नहीं,
अनेक ऐसी धार्मिक संस्थाएं भी लोगों को योग, ध्यान और मोक्ष की शिक्षा देने
के नाम पर चल रही हैं, जिसमें भी विविध प्रकार से भक्तों से शुल्क वसूले
जाते हैं। साथ ही इसकी आड़ में पत्र-पत्रिकाएं, किताब, आयुर्वेदिक दवाएं,
माला, मूर्ति, फोटो, कैलेंडर आदि भी बेचे जाते हैं। लेकिन सवाल है कि इनकी
कमाई पर मीडिया या अन्य किसी संस्था की नजर क्यों नहीं गई, जैसे निर्मल
बाबा की कमाई पर गई? क्या केवल इसलिए कि इन संस्थाओं के बाबा भुट्टे,
पानीपूरी, रसगुल्ले, खीर जैसे अजीबोगरीब उपायों के जरिए लोगों की समस्याओं
का निदान नहीं बताते, बल्कि अपने भक्तों को उनके प्रवचनों को सुनने-पढ़ते
और सत्संग करते रहने या उनके बताए योग विधि का पालन करते रहने के लिए कहते
हैं। यहां एक बात याद दिला दूं कि दो साल पहले सत्संगी सभाएं लगाने वाले कई
नामचीन बाबाओं की गतिविधियों को लेकर कोबरा पोस्ट ने एक स्टिंग ऑपरेशन कर
खुलासा किया था कि ऐसे कुछ बाबा भक्तों से दान लेने की आड़ में काले धन को
सफेद करने का काम भी करते हैं। इस ऑपरेशन में जिन बाबाओं को काले धन को
सफेद करने के प्रसंगों में डील करते हुए गुप्त कैमरों में कैद किया गया था,
उनमें कुछ की सभाएं आज भी लगती हैं और भक्तों की भीड़ में भी कोई कमी नहीं
आई है।
साफ है कि ऐसे धार्मिक सत्संग, समागम, योग शिविर चाहे किसी भी धर्म के
गुरू लगाते हो, चलाते हो, उसमें जुटने वाले लोग कहीं न कहीं अपनी समस्याओं
से निजात पाने के लिए इन गुरुओं पर अपनी आस्था जताते हैं और इसकी कीमत भी
चुकाते हैं। अब यदि इनमें ठगी, धोखा, प्रपंच की पड़ताल की जाए शायद ही कोई
धर्मगुरू ऐसे मिलेंगे जो इसके कठघरे में न आए। असल सवाल यह है कि आस्था और
विश्वास के इस कारोबार के फलने-फूलने की वजह क्या है? इसकी बुनियादी वजह
है इस 21वीं सदी में देश में बरकरार पिछड़ापन, बेकारी, बेरोजगारी,
विपन्नता, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और जागरूकता का अभाव है। इन समस्याओं
से निजात दिला पाने में देश की सरकारें जबतक विफल रहेंगी, विभिन्न तरह के
बाबाओं, धर्मगुरुओं, स्वामियों के समागम में लोग ऐसे ही अपनी गाढ़ी कमाई
फीस में चुका कर अपनी समस्याओं का हल खोजते रहेंगे।