इसबार भी नये साल में एक दर्द के साथ प्रवेश...

उदय केसरी  
2009 के अवसान पर अंतिम पोस्‍ट के रूप में कुछ लिखने का मन किया, लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि क्‍या लिखूं। सोचा, बस सबसे सुखद और सबसे दुखद की चर्चा कर आप सभी ब्‍लॉगर बंधुओं और सुधी पाठकों को नये साल का मुबारकबाद देते है।... 26/11 के दर्द को साथ लेकर आया साल 2009 के 12 महीनों में फिर कोई आतंकी हमला नहीं हुआ, यह सबसे सुखद याद है और इसके लिए गृहमंत्री पी। चिदंबरम को जरूर बधाई देनी चाहिए। वहीं अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अमेरिकी राष्‍ट्रपति के पद पर पहली बार किसी अश्‍वेत बराक ओबामा की ताजपोशी का ऐतिहासिक दृश्‍य यादगार है। इन दोनों के अलावा दिमाग पर बहुत जोर डालने के बाद भी और कुछ इतना सुखद नहीं, जिसे यहां जोड़ूं।
हां, दुखद याद पर दिमाग घुमाते ही सबसे दुखद मुझे 26/11 के गुनहगारों के खिलाफ हमारे देश की धीमी कार्रवाई है, जो आज भी अंडर प्रोसेस है। दूसरी सबसे दुखद याद है महंगाई, जो 2009 के प्रारंभ से ही मुंह फैलाना शुरू की और साल के अंत तक सुरसा के मुंह को भी मात दे गई। और इसबार भी नये साल 2010 में प्रवेश एक दर्द या कहें बोझ के साथ होगी।
खैर, भविष्‍य को खुशहाल बनाने के लिए सदा सुखद यादों को याद रखनी चाहिए, इसलिए मैं इस साल अंतिम लेख में ज्‍यादा कड़वी बातें नहीं कर रहा हूं।....और आपको 2009 के चर्चित शादियों की सूची के साथ नव वर्ष की ढ़ेरों शुभकामनाएं देते जा रहा हूं। इस सूची में सबसे अंतिम पायदान पर आपको एक नाम मेरी शादी का भी मिलेगा, जिसे मैंने बस, स्‍वांत: सुखाय के लिए इसमें शामिल कर दिया। हां, इन नामों पर क्लिक करना न भूलें, शायद, ये नवविवाहित जोड़े आपको न्‍यू ईयर विश करना चाहते हों....
2009 की चर्चित शादियांशिल्‍पा शेट्टी संग राज कुंद्रा
और....अब

क्‍या आपके मन में रोष उत्‍पन्‍न नहीं होता?

उदय केसरी  
महंगाई खतरे के निशान के ऊपर
खाने की वस्तुओं की महंगाई खतरे के निशान के ऊपर जा रही है। नवंबर '09 के आखिरी हफ्ते में जारी थोक मूल्य सूचकांकों से पता चलता है कि पिछले दस वर्षों में कभी इतनी तेजी से महंगाई नहीं बढ़ी। इधर दालों की कीमत में 42 प्रतिशत, सब्जियों की कीमत में 31 प्रतिशत और आलू की कीमत में 102 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। मंत्रियों को मुफ्त हवाई यात्रा भत्ता बढ़ाने संबंधी विधेयक पेश
मंत्रियों को खर्च में कटौती की नसीहत देने वाली सरकार ने अब उन्हें अपने नाते-रिश्तेदारों और साथियों को भी मुफ्त हवाई सफर कराने की छूट दे दी है। यही नहीं, देश के वित्त मंत्री रहे मौजूदा गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने मंत्रियों को मिलने वाली मुफ्त हवाई यात्रा भत्ता सुविधा बढ़ाने संबंधी विधेयक की आलोचनाओं को सिरे से खारिज करते हुए दावा किया कि इससे सरकार पर कोई वित्तीय बोझ नहीं बढ़ेगा। --------------------------------------------------------------------------------------
उपर्युक्‍त दोनों खबरों को पढ़कर क्‍या आपके मन में रोष उत्‍पन्‍न होता है? हां और न भी। ज्‍यादातर का यही जवाब होगा। कुछ ही लोग कहेंगे इन खबरों को पढ़कर मेरा मन रोष से इतना भर उठता है कि ऐसी सरकार और ऐसे मंत्रियों को फिर कभी वोट न दूं, इनका खुलकर विरोध करूं, इनके खिलाफ लोगों को जागरूक करूं। लेकिन ऐसा रोष यदि आगे भी कुछ ही लोगों के मन में उठता रहा, तो वे चिल्‍लाते रह जाएंगे और महंगाई महामारी का रूप धारण कर लेगी। लोग मरेंगे, खाये बगैर या सड़े-गले खाकर। तब हवाई जहाज से यही मंत्री आयेंगे उन्‍हें देखने और आश्‍वासन देकर फिर चले जाएंगे हवाई जहाज से उड़कर मुफ्त में मिले अपने आलीशान बंगले में। आप कहेंगे हमने तो अपने क्षेत्र से उसे सांसद बनाया था मंत्री तो वह अपने तिकड़म से बना। तो आपको यह भी मालूम होगा कि संसद भवन परिसर में इन करोड़‍पति-अरबपति सांसदों को शानदार खाना मात्र 10-15 रूपये प्‍लेट में मिलता है। मं‍त्री-सांसदों को कम से कम पांच साल तक आप भूखमरी और महंगाई का एहसास तो नहीं करा सकते। यह एहसास तो आप-हम को करना है और दाल की जगह माढ़ और चावल की जगह खुद्दी (चावल के टुकड़े) खाना है।

केंद्र सरकार ने तो हाथ खड़े कर दिये हैं। बोल दिया, बारिश हुई नहीं, तो कहां से खाद्यान्‍नों की कीमतों को नियंत्रित करें। यह तो राज्‍य सरकारों को करना चाहिए। केंद्र सरकार की पूरी चिंता कोपेनहेगन में आयोजित जलवायु परिवर्तन को लेकर सम्‍मेलन पर है, या फिर अमेरिका से नए-नए समझौते करने पर है। मानों, घर की चिंता करने की जिम्‍मेदारी केंद्र नहीं, राज्‍यों की है! एक पुरानी कहावत है- न रहिये जी तो क्‍या खैहिये घी। अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर बड़े-बड़े समझौते करके क्‍या वर्तमान में कोई बदलाव होने वाला है? नहीं न। तो बताइये, जब घर के लोग महंगाई से त्रस्‍त हों, तब केंद्र सरकार को खाद्यान्‍न आयात करने पर विचार करना चाहिए। तो नहीं, इसके जवाब में सरकार कहती है, अभी ऐसी परिस्थिति नहीं आई है। तो जब लोग मर ही जाएंगे तब उनके के लिए खाना आयात करने से क्‍या होगा? एक और बयान सरकार की तरफ से आता है कि वित्‍तीय बोझ अधिक है। तो ऐसी परिस्थिति में सरकार करीब तीन सौ मिलियन विदेशी मुद्रा भंडार को संजो कर क्‍या कर रही है?

क्‍या अब भी आपके मन में रोष उत्‍पन्‍न नहीं होता? देश की ऐसी स्‍ि‍थति के बावजूद माननीय गृह मंत्री पी। चिदंबरम मंत्रियों को मिलने वाली मुफ्त हवाई यात्रा भत्ता सुविधा बढ़ाने संबंधी विधेयक की आलोचनाओं को सिरे से खारिज करते हुए दावा करते हैं कि इससे सरकार पर कोई वित्तीय बोझ नहीं बढ़ेगा। आखिर इस बंदरबांट के एक हिस्‍सेदार वो भी तो हैं। एक और खबर आ रही हैं कि केंद्र सरकार देश में विशिष्ट लोगों के लाने-ले जाने के लिए तीन-तीन सौ करोड़ की लागत से एक दर्जन हेलिकाप्‍टर खरीदने की तैयारी कर रही है। अरे भाई, समझे नहीं, देश में महामारी होगी तो बड़े-बड़े नेता-मंत्री क्‍या पैदल आपको देखने आयेंगे। उसके लिए उड़नखटोला चाहिए कि नहीं। आप ही के लिए तो यह सब किया जा रहा है! आप पहले महामारी के शिकार तो होईये, देखियेगा कैसे ये नेता-मंत्री आपको देखने हेलिकाप्‍टर नहीं आते हैं!

मैं बस यही बताना चाहता हूं कि इस महंगाई और सरकारी लूट से हम-आप को कोई बचा नहीं सकता। हमें खुद ही इसके लिए खड़ा होना होगा। जब तक आपके पास दोगुने-तीनगुने-चारगुने दामों पर भूख मिटाने के स्रोत है, तब तक आपको तो कोई वैसी चिंता नहीं होगी, जैसी एक गरीब परिवार को हो रही है, लेकिन जरा सोचिए, आपके स्रोत कब तक आपका साथ देंगे? कभी अपने से नीचे स्‍तर पर जीवन बसर करने वालों के बारे में तो सोचिए, जो बेचारा आवाज भी नहीं उठा सकता। उसके मन में जरूर रोष का तूफान उठता होगा, लेकिन वह घर की भूख मिटाने के लिए मजदूरी करने जाए या विरोध का विगुल फूंके। ऐसे में, इन गरीबों से कुछ उपर वाले लोगों को ही तो आगे आना होगा। आखिर कब तक आप किसी नेता के आश्‍वासनों के फलीभूत होने के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे?

चुटकी का खेल बना पूर्वजन्‍म की यात्रा!

उदय केसरी  
पिछले एक हफ्ते से एनडीटीवी इमेजिन पर प्रसारित रियलिटी शो ‘राज पिछले जन्‍म का’ पर पता नहीं क्‍यों मुझे विश्‍वास नहीं होता। कोई कैसे आधे घंटे के शो में किसी को उसकी एक नहीं दो-दो पूर्वजन्‍मों की याद दिला सकता है और वह भी फिल्‍म के दृश्‍य व कहानियों की तरह स्‍पष्‍ट। क्‍या आपको विश्‍वास होता है? ...मैंने इस शो के तीन-चार एपिसोड देखे हैं, जिसने मेरे जहन में अनेक सवाल खड़े कर दिये। इस शो में पूर्वजन्‍म की यात्रा कराने वाली डा. तृप्‍ती जैन के पास आखिर ऐसी कौन सी विद्या है, जो किसी आदमी को इतने कम समय में सैकड़ों साल पीछे ले जाती है? और फिर यदि यह मान भी लें कि आदमी को पिछले जन्‍मों में ले जाया सकता है, तो क्‍या पिछले जन्‍म की चेतना में प्रवेश कर चुका आदमी अपने इस जन्‍म की भाषा-बोली में सैकड़ों साल पुरानी बातें बता सकता है? सबसे आश्‍चर्यजनक यह कि डा. जैन सामने लेटे व्‍यक्ति से कभी-कभी ऐसे सवाल करती हैं, मानो पूर्वजन्‍म में सामने लेटा आदमी नहीं, खुद डा. जैन विचरण कर रही हों, जैसे भोपाल की एक महिला के मामले में डा. जैन जोर देकर पूछती हैं- देखो मृत पड़े सेलर के हाथ में एक घड़ी है, देखो उसमें क्‍या समय हुआ है? पिछले दिन मोनिका बेदी के मामले में भी ऐसा ही आश्‍चर्य हुआ- वह अचेतावस्‍था में अपने पिछले जन्‍म में विचरण कर रही थीं, पर जब उससे उसके पति का नाम पूछा गया, उसकी शक्‍ल-सूरत बताने को कहा गया, तो मोनिका ने बताने से मना कर दिया और कहा ‘बताना नहीं चाहती’, मानों वह अचेतावस्‍था में भी यह समझ रही हो कि इस सवाल का जवाब देने से उसकी वर्तमान जिंदगी में कोई प्रभाव पड़ सकता है। इन सब के अलावा एक बड़ा सवाल कि क्‍या मानव का पुनर्जन्‍म मानव रूप में ही होता है?

मेरे सवालों का सार यह है कि यदि पूर्वजन्‍म की यात्रा करना इतना आसान है, तो इसकी प्रामाणिकता का आधार क्‍या है? इससे तो विभिन्‍न धर्म ग्रंथों में उल्‍लेखित पूर्वजन्‍म व पुनर्जन्‍म संबंधी मान्‍यताओं पर भी सवाल खड़ा हो जाता है। मसलन, हिन्‍दू धर्मग्रंथों की मान्‍यताओं के मुताबिक चौरासी लाख यौनियों में जीवन पूरा करने के बाद ही किसी जीव को ईश्‍वर की कृपा से मानव शरीर प्राप्‍त होता है। इसीतरह, पूर्वजन्‍म पर विश्‍वास रखने वाले बौद्ध, जैन, सिख, तावो आदि धर्मों की भी अपनी-अपनी मान्‍यताएं हैं, जिसमें ज्‍यादातर हिन्‍दू धर्म की तरह ही कर्मफल पर आधारित हैं कि- अच्‍छे कर्म से अगला जन्‍म मानव रूप में संभव है, तो फिर राज पिछले जन्‍म के एक शो में कलाकार लिलिपुट के मामले को देखें, तो उसके बारे में कहा गया कि उसने पिछले जन्‍म में दो-दो लड़कियों के साथ प्‍यार का फरेब करके उनका दैहिक शोषण किया, तो ऐसे जीव का पुनर्जन्‍म मानव रूप में ही कैसे हुआ?

देखिये, पूर्वजन्‍म की अवधारणाओं के बारे यह मेरी सामान्‍य जानकारी है, जिसकी चर्चा करके मैं यह बताना चाहता हूं कि मेरी समझ से एनडीटीवी के प्रोग्राम ‘राज पिछले जन्‍म का’ पर मुझे विश्‍वास नहीं होता है। और यदि वाकई में यह दर्शकों को धोखा देने वाला कार्यक्रम है, तो क्‍या इसे इस तरह से प्रसारित किया जाना चाहिए? क्‍या इससे अंधविश्‍वास को बढ़ावा नहीं मिलता? इस शो के होस्‍ट अभिनेता रविकिशन एक एपिसोड में यह कह रहे थे कि ‘सांप को मारने का श्राप पीढ़ी दर पीढ़ी भुगतना पड़ता है।'...इसे क्‍या कहेंगे?

अब एक और बात आपसे कहना चाहता हूं कि मैंने इस विषय पर यह पोस्‍ट लिखने से पहले इंटरनेट पर डा. तृप्‍ती जैन के बारे में पढ़ा- उन्‍होंने हैदराबाद के एक प्रसिद्ध पास्‍टलाइफ रिग्रेशन थेरेपिस्‍ट डा. न्‍यूटन कोंडावेती के अधीन रहकर यह विद्या या कहें सम्‍मोहन विद्या सीखी है। इस विद्या के माध्‍यम से प्राय: मा‍नसिक रोगियों का इलाज किया जाता है। डा. न्‍यूटन ने खुद किसी विदेशी थेरेपिस्‍ट से यह विद्या प्राप्‍त की है और अब हैदराबाद में अपनी लाइफ रिसर्च अकादमी चला रहे हैं। इस अकादमी का दावा है कि यहां मात्र चार दिनों में पूर्वजन्‍म की यात्रा कराने की विद्या सिखी जा सकती है। इनकी वेबसाइट का पता http://www.liferesearchacademy.com/ है। यानी पूर्वजन्‍म की यात्रा करना काफी आसान है! जब मैंने इंटरनेट पर थोड़ी और खोजबीन की, तो पाया कि इंटरनेट पर दर्जनों ऐसी वेबसाइट हैं, जो आपको पूर्वजन्‍म में ले जाने का दावा करती हैं, बस आप डॉलर में उन्‍हें पहले ‘पे’ कर दें। कुछ एक वेबसाइट तो ऐसी हैं, जिस पर बस जन्‍म की तारीख, महीना व साल पूछा जाता है और दूसरे ही पल में आपके पूर्वजन्‍म का विवरण आपके सामने होता है।...तो किसी वेबसाइट पर सीडी बेची जा रही है कि- आप घर बैठे सीडी सुनकर पूर्वजन्‍म की यात्रा करें। वाह! कितना आसान है यह सब! लेकिन जब मैंने इन वेबसाइटों के अंदर जाकर टर्म एंड कंडिशंस के पन्‍नों को पढ़ा, तो वहां लिखा पाया कि इसके घोषित परिणाम पूरी तरह सत्‍य हो यह जरूरी नहीं है। यह अलग-अलग व्‍यक्तियों पर अलग प्रभाव डाल सकता है। किसी भी बुरे प्रभाव के लिए आप खुद जिम्‍मेदार हैं। यही नहीं एक-दो वेबसाइटों पर तो इसे एक कंप्‍यूटर प्रोग्रामिंग का परिणाम बताया गया और यह भी कि यह परिणाम केवल आपके मनोरंजन के लिए है। ऐसे वेबसाइटों के लिंक मैं यहां चिपका रहा हूं, आप भी इनकी सच्‍चाई का पता लगा सकते हैं-

क्‍या आपका अखबार धोखेबाज नहीं?

उदय केसरी  
आज सुबह चाय के साथ अखबार के पन्‍ने उलटते ही जिन खबरों पर नजरें गईं, वे खबर नहीं थीं, बल्कि खबरों की शक्‍ल में विज्ञापन थे। वह भी एक नहीं अनेक। अखबार था दैनिक भास्‍कर, देश का सबसे तेज बढ़ता अखबार और जो अब डीबी कॉर्प यानी कारपोरेट कंपनी है, जिसका आईपीओ जारी होने वाला है। इन झूठी खबरों पर बात करने से पहले एक और बात बता दूं कि घर से निकलकर जब मैं ऑफिस पहुंचा, तो वहां पहुंचने वाले अखबार के भी एक से अधिक पन्‍ने ऐसी ही नकली खबरों से अटे हुए थे। अखबार था पत्रिका, जो राजस्‍थान पत्रिका समूह का अखबार है और हर बात पर दूसरों को पत्रकारिता की दुहाई देता रहता है। यही नहीं इस अखबार ने भोपाल में प्रकाशन शुरू करने के साथ ही भोपाल की आवाज उठाने का दावा किया और एक बड़ा समारोह आयोजित कर खबरों की शक्‍ल में विज्ञापन छापने का विरोध किया था।
खबर के रूप में विज्ञापनों को छापने की यह बात कोई नई नहीं है। सर्वाधिक प्रसार का दावा करने वाले दैनिक जागरण व अन्‍य नामी अखबार भी कमाई के इस धूर्त तरीके में शामिल हैं। फर्क बस इतना है कि कोई इन नकली खबरों के नीचे बारिक अक्षरों में फीचर लिखता है, तो कोई इम्‍पैक्‍ट फीचर, तो कोई Advt. । प्राय: ऐसी नकली खबरें चुनावों के वक्‍त ज्‍यादा नजर आती हैं। वैसे, अब विभिन्‍न उत्‍पादों की कंपनियां भी ऐसी नकली खबरें अपने उत्‍पाद के प्रचार के लिए छपवाने लगी हैं। इससे अखबारों को जहां वर्गसेंटीमीटर के भाव पैसे मिलते हैं, वहीं विज्ञापनदातों को अखबार की खबरों के प्रति पाठकों के भरोसा को आसानी से खरीदने का मौका। अब ऐसी नकली खबरों का कैसा प्रभाव पाठकों पर पड़ता होगा...इसकी फिकर न अखबार को है, न विज्ञापनदाताओं और न ही बुद्धिजीवी पत्रकारों को।

भोपाल में निकाय चुनाव चल रहा है। इसमें खड़े विभिन्‍न दलों के प्रत्‍याशियों के दौरे, जनसंपर्क, सभाओं की खबरें अखबारों में छप रही हैं, लेकिन कौन सी खबर विज्ञापन है और कौन सी अखबार के संवाददाताओं द्वारा कवर की हुई, समझना मुश्किल है। खासकर भोली-भाली जनता के लिए तो यह समझना बिल्‍कुल ही मुश्किल है कि ‘इम्‍पैक्‍ट फीचर’ या ‘फीचर’ का मतलब विज्ञापन होता है। जिस पार्टी का प्रत्‍याशी, जितना अधिक पैसा खर्च कर रहा है, उसकी खबरें उतनी बड़ी छप रही हैं। हर साइज की खबरें छपवाने का बाजार गर्म है। अब इन सबके बीच कोई पत्रकारिता की पवित्रता की बात करे, तो उसे तो पागल ही समझा जाएगा न! अरे अबला हो चुकी सच्‍ची प‍त्रकारिता से किसी को क्‍या मिलने वाला है! जब जनता/पाठकों के विश्‍वास के साथ नकली खबरों के जरिये खुलेआम की जा रही धोखाधड़ी पर किसी को एतराज नहीं, तो सच्‍ची प‍त्रकारिता की चिंता किसे होगी। सच्‍ची पत्रकारिता की हालत तो वैसी है, जैसे गांधी बाबा के विचारों की। जिनकी तस्‍वीर तो हर सरकारी दफ्तरों में लगी होती है, पर उसी के नीचे भ्रष्‍टाचार धड़ल्‍ले से फलता-फूलता रहता है।

अब ‘समझदार जनता’ के लिए क्‍या लिखें?

उदय केसरी  
 करीब सवा दो महीने बाद आप सबों से मुखातिब हो रहा हूं। इस दौरान व्‍यस्‍तताएं तो थीं, पर इतनी भी नहीं कि अपने विचार लिखने के लिए समय न निकाल पाया, बल्कि सच बताऊ तो लिखने की इच्‍छा नहीं हुई। देश व समाज में इस दौरान कई घटनाएं भी घटीं, फिर भी नहीं।...खबरें सुनकर, पढ़कर मन में कई बार विचार उत्‍पन्‍न होते रहे, पर उन पर लिखने की कभी इच्‍छा नहीं हुई।... महाराष्‍ट्र में विधानसभा चुनाव में मनसे की जीत और शिवसेना की शिकस्‍त, हिन्‍दी में शपथ पत्र पढ़ते सपा विधायक अबू आजमी पर मनसे विधायकों का हमला, झारखंड के पूर्व मुख्‍यमंत्री मधु कोड़ा के महाघोटाले का पर्दाफाश, जयपुर में आग आदि कई घटनाओं पर प्रतिक्रियाएं मेरे मन में उत्‍पन्‍न हुई और उसे अपने साथियों के बीच विभिन्‍न चर्चाओं में व्‍यक्‍त भी किया, सीधीबात पर लिखने की इच्‍छा नहीं हुई।...न जाने क्‍यों ऐसा लगता है कि महज लिखने से अब देश में कुछ नहीं होता...और फिर ब्‍लॉग पर लिखने से और भी कोई फर्क नहीं पड़ता, जिन्‍हें हम अपने विचारों से प्रभावित और जागरूक करना चाहते हैं, उन तक आपके विचार पहुंच ही नहीं पाते, या पहुंचते हैं तो वे पढ़ते नहीं है और यदि पढ़ते हैं, तो इसे वे महज एक ब्‍लॉगर की भड़ास मान कर परे रख देते हैं।...कोई कुछ करता नहीं...‍और जब िप‍छले दिनों श्री प्रभु चावला को आजतक न्‍यूज चैनल के एक इंटरव्‍यू प्रोग्राम सीधीबात के लिए बेस्‍ट एंकर का अवार्ड और आजतक को लगातार नौवीं बार बेस्‍ट न्‍यूज चैनल का अवार्ड मिला, तो लगा जैसे अब तो कुछ लिखने की जरूरत ही नहीं है। जब भारत की जनता श्री चावला के सवालों को समझने में सक्षम है और आजतक की सबसे तेज खबरों पर भरोसा है, तो उनके पास लेटलतीफ विचारों, प्रतिक्रियाओं को पढ़ने के लिए फुर्सत कहां होगी। जनता तो आजतक के बाद इंडिया टीवी पर ज्‍यादा विश्‍वास करने लगी है, जो हर महीने किसी न किसी बहाने महाप्रलय की भविष्‍यवाणी करता रहता है। और यदि आपको डर, भय, विनाश, तबाही के पर्यायवाची शब्‍दों, राक्षसों के नामों को प्रभावी तरीके से वाक्‍यों में प्रयोग सीखना हो, तो इंडिया टीवी जरूर देखें, निश्चित फायदा होगा।...इससे पहले आईबीएन7 के मराठी न्‍यूज चैनल के दफ्तर पर शिव‍सैनिकों के हमले की घटना भी हुई, जिसे पत्रकारिता की स्‍वतंत्रता पर हमला कहा गया...सही ही कहा गया। इस खबर को आईबीएन7 समेत अन्‍य न्‍यूज चैनलों ने चलाया, लेकिन आईबीएन7 को छोड़कर किसी अन्‍य न्‍यूज चैनल ने अपनी खबर में उस चैनल के नाम का जिक्र नहीं किया। शायद अन्‍य चैनलों की पत्रकारिता उन्‍हें अपने प्रतिद्वंद्वी चैनल का नाम बताने की इजाजत नहीं देती।...‍ लेि‍कन शायद देश की जनता काफी समझदार हो चुकी है, वह नाम की जगह ‘एक न्‍यूज चैनल’ से खुदबखुद समझ लेती है। तो बताइये ऐसे में हमारे-आपके विचार किसी पर कैसे प्रभाव डाल पायेंगे? आप कहेंगे हम यह कैसी निराशाभरी उलटी बातें कर रहे हैं। सीधी समझ वाले लोग भी तो हैं इस देश में। हां हैं, सब समझते हैं, पर चुपचाप। कुछ करते नहीं। क्‍यों करें, उन्‍हें भी तो अपने घर चलाने हैं, इस महंगाई के दौर में। जब लोग ‘झूठ’ व ‘चालाकी’ को सोने के भाव खरीद रहे हैं, तो कोई उनके ‘सच’ को कितना खरीदेंगे।