क्‍या आपके मन में रोष उत्‍पन्‍न नहीं होता?

उदय केसरी  
महंगाई खतरे के निशान के ऊपर
खाने की वस्तुओं की महंगाई खतरे के निशान के ऊपर जा रही है। नवंबर '09 के आखिरी हफ्ते में जारी थोक मूल्य सूचकांकों से पता चलता है कि पिछले दस वर्षों में कभी इतनी तेजी से महंगाई नहीं बढ़ी। इधर दालों की कीमत में 42 प्रतिशत, सब्जियों की कीमत में 31 प्रतिशत और आलू की कीमत में 102 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। मंत्रियों को मुफ्त हवाई यात्रा भत्ता बढ़ाने संबंधी विधेयक पेश
मंत्रियों को खर्च में कटौती की नसीहत देने वाली सरकार ने अब उन्हें अपने नाते-रिश्तेदारों और साथियों को भी मुफ्त हवाई सफर कराने की छूट दे दी है। यही नहीं, देश के वित्त मंत्री रहे मौजूदा गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने मंत्रियों को मिलने वाली मुफ्त हवाई यात्रा भत्ता सुविधा बढ़ाने संबंधी विधेयक की आलोचनाओं को सिरे से खारिज करते हुए दावा किया कि इससे सरकार पर कोई वित्तीय बोझ नहीं बढ़ेगा। --------------------------------------------------------------------------------------
उपर्युक्‍त दोनों खबरों को पढ़कर क्‍या आपके मन में रोष उत्‍पन्‍न होता है? हां और न भी। ज्‍यादातर का यही जवाब होगा। कुछ ही लोग कहेंगे इन खबरों को पढ़कर मेरा मन रोष से इतना भर उठता है कि ऐसी सरकार और ऐसे मंत्रियों को फिर कभी वोट न दूं, इनका खुलकर विरोध करूं, इनके खिलाफ लोगों को जागरूक करूं। लेकिन ऐसा रोष यदि आगे भी कुछ ही लोगों के मन में उठता रहा, तो वे चिल्‍लाते रह जाएंगे और महंगाई महामारी का रूप धारण कर लेगी। लोग मरेंगे, खाये बगैर या सड़े-गले खाकर। तब हवाई जहाज से यही मंत्री आयेंगे उन्‍हें देखने और आश्‍वासन देकर फिर चले जाएंगे हवाई जहाज से उड़कर मुफ्त में मिले अपने आलीशान बंगले में। आप कहेंगे हमने तो अपने क्षेत्र से उसे सांसद बनाया था मंत्री तो वह अपने तिकड़म से बना। तो आपको यह भी मालूम होगा कि संसद भवन परिसर में इन करोड़‍पति-अरबपति सांसदों को शानदार खाना मात्र 10-15 रूपये प्‍लेट में मिलता है। मं‍त्री-सांसदों को कम से कम पांच साल तक आप भूखमरी और महंगाई का एहसास तो नहीं करा सकते। यह एहसास तो आप-हम को करना है और दाल की जगह माढ़ और चावल की जगह खुद्दी (चावल के टुकड़े) खाना है।

केंद्र सरकार ने तो हाथ खड़े कर दिये हैं। बोल दिया, बारिश हुई नहीं, तो कहां से खाद्यान्‍नों की कीमतों को नियंत्रित करें। यह तो राज्‍य सरकारों को करना चाहिए। केंद्र सरकार की पूरी चिंता कोपेनहेगन में आयोजित जलवायु परिवर्तन को लेकर सम्‍मेलन पर है, या फिर अमेरिका से नए-नए समझौते करने पर है। मानों, घर की चिंता करने की जिम्‍मेदारी केंद्र नहीं, राज्‍यों की है! एक पुरानी कहावत है- न रहिये जी तो क्‍या खैहिये घी। अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर बड़े-बड़े समझौते करके क्‍या वर्तमान में कोई बदलाव होने वाला है? नहीं न। तो बताइये, जब घर के लोग महंगाई से त्रस्‍त हों, तब केंद्र सरकार को खाद्यान्‍न आयात करने पर विचार करना चाहिए। तो नहीं, इसके जवाब में सरकार कहती है, अभी ऐसी परिस्थिति नहीं आई है। तो जब लोग मर ही जाएंगे तब उनके के लिए खाना आयात करने से क्‍या होगा? एक और बयान सरकार की तरफ से आता है कि वित्‍तीय बोझ अधिक है। तो ऐसी परिस्थिति में सरकार करीब तीन सौ मिलियन विदेशी मुद्रा भंडार को संजो कर क्‍या कर रही है?

क्‍या अब भी आपके मन में रोष उत्‍पन्‍न नहीं होता? देश की ऐसी स्‍ि‍थति के बावजूद माननीय गृह मंत्री पी। चिदंबरम मंत्रियों को मिलने वाली मुफ्त हवाई यात्रा भत्ता सुविधा बढ़ाने संबंधी विधेयक की आलोचनाओं को सिरे से खारिज करते हुए दावा करते हैं कि इससे सरकार पर कोई वित्तीय बोझ नहीं बढ़ेगा। आखिर इस बंदरबांट के एक हिस्‍सेदार वो भी तो हैं। एक और खबर आ रही हैं कि केंद्र सरकार देश में विशिष्ट लोगों के लाने-ले जाने के लिए तीन-तीन सौ करोड़ की लागत से एक दर्जन हेलिकाप्‍टर खरीदने की तैयारी कर रही है। अरे भाई, समझे नहीं, देश में महामारी होगी तो बड़े-बड़े नेता-मंत्री क्‍या पैदल आपको देखने आयेंगे। उसके लिए उड़नखटोला चाहिए कि नहीं। आप ही के लिए तो यह सब किया जा रहा है! आप पहले महामारी के शिकार तो होईये, देखियेगा कैसे ये नेता-मंत्री आपको देखने हेलिकाप्‍टर नहीं आते हैं!

मैं बस यही बताना चाहता हूं कि इस महंगाई और सरकारी लूट से हम-आप को कोई बचा नहीं सकता। हमें खुद ही इसके लिए खड़ा होना होगा। जब तक आपके पास दोगुने-तीनगुने-चारगुने दामों पर भूख मिटाने के स्रोत है, तब तक आपको तो कोई वैसी चिंता नहीं होगी, जैसी एक गरीब परिवार को हो रही है, लेकिन जरा सोचिए, आपके स्रोत कब तक आपका साथ देंगे? कभी अपने से नीचे स्‍तर पर जीवन बसर करने वालों के बारे में तो सोचिए, जो बेचारा आवाज भी नहीं उठा सकता। उसके मन में जरूर रोष का तूफान उठता होगा, लेकिन वह घर की भूख मिटाने के लिए मजदूरी करने जाए या विरोध का विगुल फूंके। ऐसे में, इन गरीबों से कुछ उपर वाले लोगों को ही तो आगे आना होगा। आखिर कब तक आप किसी नेता के आश्‍वासनों के फलीभूत होने के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे?

1 comment:

  1. मैं आपसे शत प्रतिशत सहमत हूँ सर लेकिन आप एक बात लिखना तो भूल ही गए हैं कि सरकार ने तो यह भी फिक्स कर लिया है कि मरने वाले को एक लाख और जिनकी हालत खस्ता है उन्हें पचास हज़ार के इनाम से नवाजा जायेगा. लोकतंत्र है न सर, सांसदों का भी तो ख्याल रखना होगा. आखिर वो जनता के प्रतिनिधि हैं. उनकी ही हालत ख़राब हो जाएगी तो फिर जनता कि सुध कौन लेगा. Abhishek Roy

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