उदय केसरी
अपने देश में मीडिया ज्यादातर न्यूज चैनलों ने पत्रकारिता के मूल्यों से पूरी तरह से तौबा कर ली है, यह बात नई नहीं रही, लेकिन इसकी जगह टीआरपी पत्रकारिता की होड़ में न्यूज चैनल किस कदर गैर-जिम्मेदार हो गए हैं, इसका अंदाजा कल रात (7 सितंबर) इंडिया टीवी को देखकर लगा, जिसने टीआरपी की दौड़ में पिछले दिनों लंबी छलांग लगायी है। खबर: बुधवार (10 सितंबर) को ब्रह्मांड का अंत!...पाताल से निकलेगा दानव, बस कुछ दिन और...महाविनाश की घड़ी करीब...महाप्रलय में खत्म हो जाएगी पूरी दुनिया आदि-आदि...आपने भी यह खबर देखी होगी। सनसनी के पर्यायवाची और भी कई शब्द व पंक्तियों से भरी यह खबर न्यूज चैनल की महज टीआरपी पत्रकारिता को बेनकाब करने के लिए पर्याप्त है।
अब बात इस खबर के सच की, तो इस संदर्भ में मुझे याद है 1999 का वह वाक्या, जब दिल्ली से एक नई साप्ताहिक पत्रिका निकलनी शुरू हुई थी-महालक्ष्मी सम्राट। तब दिल्ली से ही प्रकाशित दिल्ली प्रकाशन की पत्रिका सरस सलिल, मामूली दाम और मसालेदार कहानियों व तस्वीरों के कारण हिन्दी प्रदेशों में काफी लोकप्रिय हो रही थी। इसी तर्ज पर महालक्ष्मी सम्राट पत्रिका निकाली गई, जिसके सामने सरस सलिल चुनौती के रूप में थी। शायद, इसी चुनौती का सामना करने के लिए महालक्ष्मी सम्राट ने सनसनी को अपना हथियार बनाया और उसके हाथ लगी एक आल टाइम हिट स्टोरी ‘महाप्रलय’। इस पत्रिका के अनुसार नात्रेदमश की भविष्यवाणी के मुताबिक 1999 के खत्म होते ही महाप्रलय आयेगा, जो पूरी पृथ्वी को तहस-नहस कर देगा...इस महातबाही में कोई भी नहीं बचेगा...आदि-आदि बातें...आप सोच सकते हैं कि ऐसी पत्रिका ज्यादातर साधारण पाठक पढ़ते हैं। उन पर ऐसी कहानी का क्या असर हुआ होगा...मैं तो अपने इलाके की बात कहूंगा, जो देखा है... लोग 31 दिसंबर 1999 को नये साल के आगमन की खुशी में बाहर जाकर पिकनिक मनाने के कार्यक्रम नहीं बना पा रहे थे। उस दिन बाहर का काम छोड़ ज्यादातर लोग घर के आसपास ही सहमे हुए थे...पूरा दिन निकल गया...कोई महाप्रलय नहीं...उस पत्रिका की भविष्यवाणी झूठी और बकवास साबित हुई। फिर बाद में उस पत्रिका से लोगों का विश्वास उठने लगा और मुझे जहां तक याद है कि कुछ ही महीने में उस इलाके में महालक्ष्मी सम्राट का बिकना लगभग बंद हो गया।
इस वाक्या की तरह ही एक बार फिर अब इंडिया टीवी सरीखे न्यूज चैनलों पर टीआरपी की कमाई करने के लिए ‘महाप्रलय’ की कहानी को सनसनी बनाकर पेश किया जा रहा है, जो पूरी तरह से अविश्सनीय है। इस बार महाप्रलय की वजह पिछले 14 सालों से जिनेवा स्थित परमाणु शोध प्रयोगशाला सर्न में धरती के 100 मीटर अंदर किये जा रहे एक वैज्ञानिक महाप्रयोग को बताया जा रहा है, जिसमें दुनिया के 40 देशों के नौ हजार से अधिक वैज्ञानिक लगे हैं और वे ब्रह्मांड की रचना की गुत्थी समझने के उद्देश्य से यह महाप्रयोग कर रहे हैं। गौतरलब है कि इस महाप्रयोग के सफल होने पर मानव के सामने सदियों से रहस्य बनी ब्रह्मांड की कई घटनाओं पर से परदा उठ सकता है और हम उनके वैज्ञानिक कारण को साफ तौर पर जान पायेंगे। इस महाप्रयोग के सफल होने से अनेक ऐसे फायदे भी होंगे, जिसकी अभी मात्र हम कल्पना करते हैं। इसी महाप्रयोग के आलोचकों द्वारा अपवाह उड़ाई गई है कि महाप्रयोग के संचालित होने से ब्लैक होल बन सकते हैं और पृथ्वी पर भूकंप आ सकता है। इंडिया टीवी सरीखे न्यूज चैनलों के लिए इससे अच्छा मौका क्या हो सकता था। सो, ऐसे न्यूज चैनलों ने चींख-चींखकर महाप्रलय की मनगढंत आशंकाओं की कहानी सुनानी शुरू कर दी। हालांकि टीआरपी की प्रतिद्वंद्विता में ही सही, इस खबर के बाद जी न्यूज ने महाप्रयोग के दूसरे पक्ष यानी साकारात्मक पक्ष पर आधारित कहानी भी पेश की, जिसमें दो जाने-माने वैज्ञानिकों से जिनेवा के महाप्रयोग के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गई, जिसमें उन दोनों वैज्ञानिकों ने ऐसी आशंका को वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर सिरे से नकार दिया। उन्होंने कहा कि महाप्रलय की बात हास्यास्पद है। भारत के जाने-माने वैज्ञानिक व शिक्षाविद् प्रो. यशपाल ने भी महाप्रलय की आशंका को कोरी कल्पना कहा है।
अब यदि जी न्यूज पर आये दो वैज्ञानिकों और प्रो. यशपाल की बातें को झूठ भी मान लें, तो भी क्या यह सहज रूप से माना जा सकता है कि सभी चालीस देशों के वैज्ञानिक, जो इस महाप्रयोग में दिन-रात लगे हैं, वे जानबूझकर महाप्रलय को दावत दे रहे हैं, क्या उन्हें खुद से, अपने देश से, समाज से, परिवार से और इस पृथ्वी से मोह नहीं। केवल महाप्रयोग की आलोचना करने वाले मुट्ठी भर औने-पौने लोग ही चतुर और भविष्यदृष्टा हैं, जिन्हें सच मान लिया जाए। यदि नहीं तो इंडिया टीवी सरीखे न्यूज चैनलों को इस खबर के केवल नकारात्मक व बेबुनियाद पक्ष को सनसनी बनाकर दर्शकों से खेलने का हक किसने दे दिया है।
अपने देश में मीडिया ज्यादातर न्यूज चैनलों ने पत्रकारिता के मूल्यों से पूरी तरह से तौबा कर ली है, यह बात नई नहीं रही, लेकिन इसकी जगह टीआरपी पत्रकारिता की होड़ में न्यूज चैनल किस कदर गैर-जिम्मेदार हो गए हैं, इसका अंदाजा कल रात (7 सितंबर) इंडिया टीवी को देखकर लगा, जिसने टीआरपी की दौड़ में पिछले दिनों लंबी छलांग लगायी है। खबर: बुधवार (10 सितंबर) को ब्रह्मांड का अंत!...पाताल से निकलेगा दानव, बस कुछ दिन और...महाविनाश की घड़ी करीब...महाप्रलय में खत्म हो जाएगी पूरी दुनिया आदि-आदि...आपने भी यह खबर देखी होगी। सनसनी के पर्यायवाची और भी कई शब्द व पंक्तियों से भरी यह खबर न्यूज चैनल की महज टीआरपी पत्रकारिता को बेनकाब करने के लिए पर्याप्त है।
अब बात इस खबर के सच की, तो इस संदर्भ में मुझे याद है 1999 का वह वाक्या, जब दिल्ली से एक नई साप्ताहिक पत्रिका निकलनी शुरू हुई थी-महालक्ष्मी सम्राट। तब दिल्ली से ही प्रकाशित दिल्ली प्रकाशन की पत्रिका सरस सलिल, मामूली दाम और मसालेदार कहानियों व तस्वीरों के कारण हिन्दी प्रदेशों में काफी लोकप्रिय हो रही थी। इसी तर्ज पर महालक्ष्मी सम्राट पत्रिका निकाली गई, जिसके सामने सरस सलिल चुनौती के रूप में थी। शायद, इसी चुनौती का सामना करने के लिए महालक्ष्मी सम्राट ने सनसनी को अपना हथियार बनाया और उसके हाथ लगी एक आल टाइम हिट स्टोरी ‘महाप्रलय’। इस पत्रिका के अनुसार नात्रेदमश की भविष्यवाणी के मुताबिक 1999 के खत्म होते ही महाप्रलय आयेगा, जो पूरी पृथ्वी को तहस-नहस कर देगा...इस महातबाही में कोई भी नहीं बचेगा...आदि-आदि बातें...आप सोच सकते हैं कि ऐसी पत्रिका ज्यादातर साधारण पाठक पढ़ते हैं। उन पर ऐसी कहानी का क्या असर हुआ होगा...मैं तो अपने इलाके की बात कहूंगा, जो देखा है... लोग 31 दिसंबर 1999 को नये साल के आगमन की खुशी में बाहर जाकर पिकनिक मनाने के कार्यक्रम नहीं बना पा रहे थे। उस दिन बाहर का काम छोड़ ज्यादातर लोग घर के आसपास ही सहमे हुए थे...पूरा दिन निकल गया...कोई महाप्रलय नहीं...उस पत्रिका की भविष्यवाणी झूठी और बकवास साबित हुई। फिर बाद में उस पत्रिका से लोगों का विश्वास उठने लगा और मुझे जहां तक याद है कि कुछ ही महीने में उस इलाके में महालक्ष्मी सम्राट का बिकना लगभग बंद हो गया।
इस वाक्या की तरह ही एक बार फिर अब इंडिया टीवी सरीखे न्यूज चैनलों पर टीआरपी की कमाई करने के लिए ‘महाप्रलय’ की कहानी को सनसनी बनाकर पेश किया जा रहा है, जो पूरी तरह से अविश्सनीय है। इस बार महाप्रलय की वजह पिछले 14 सालों से जिनेवा स्थित परमाणु शोध प्रयोगशाला सर्न में धरती के 100 मीटर अंदर किये जा रहे एक वैज्ञानिक महाप्रयोग को बताया जा रहा है, जिसमें दुनिया के 40 देशों के नौ हजार से अधिक वैज्ञानिक लगे हैं और वे ब्रह्मांड की रचना की गुत्थी समझने के उद्देश्य से यह महाप्रयोग कर रहे हैं। गौतरलब है कि इस महाप्रयोग के सफल होने पर मानव के सामने सदियों से रहस्य बनी ब्रह्मांड की कई घटनाओं पर से परदा उठ सकता है और हम उनके वैज्ञानिक कारण को साफ तौर पर जान पायेंगे। इस महाप्रयोग के सफल होने से अनेक ऐसे फायदे भी होंगे, जिसकी अभी मात्र हम कल्पना करते हैं। इसी महाप्रयोग के आलोचकों द्वारा अपवाह उड़ाई गई है कि महाप्रयोग के संचालित होने से ब्लैक होल बन सकते हैं और पृथ्वी पर भूकंप आ सकता है। इंडिया टीवी सरीखे न्यूज चैनलों के लिए इससे अच्छा मौका क्या हो सकता था। सो, ऐसे न्यूज चैनलों ने चींख-चींखकर महाप्रलय की मनगढंत आशंकाओं की कहानी सुनानी शुरू कर दी। हालांकि टीआरपी की प्रतिद्वंद्विता में ही सही, इस खबर के बाद जी न्यूज ने महाप्रयोग के दूसरे पक्ष यानी साकारात्मक पक्ष पर आधारित कहानी भी पेश की, जिसमें दो जाने-माने वैज्ञानिकों से जिनेवा के महाप्रयोग के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गई, जिसमें उन दोनों वैज्ञानिकों ने ऐसी आशंका को वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर सिरे से नकार दिया। उन्होंने कहा कि महाप्रलय की बात हास्यास्पद है। भारत के जाने-माने वैज्ञानिक व शिक्षाविद् प्रो. यशपाल ने भी महाप्रलय की आशंका को कोरी कल्पना कहा है।
अब यदि जी न्यूज पर आये दो वैज्ञानिकों और प्रो. यशपाल की बातें को झूठ भी मान लें, तो भी क्या यह सहज रूप से माना जा सकता है कि सभी चालीस देशों के वैज्ञानिक, जो इस महाप्रयोग में दिन-रात लगे हैं, वे जानबूझकर महाप्रलय को दावत दे रहे हैं, क्या उन्हें खुद से, अपने देश से, समाज से, परिवार से और इस पृथ्वी से मोह नहीं। केवल महाप्रयोग की आलोचना करने वाले मुट्ठी भर औने-पौने लोग ही चतुर और भविष्यदृष्टा हैं, जिन्हें सच मान लिया जाए। यदि नहीं तो इंडिया टीवी सरीखे न्यूज चैनलों को इस खबर के केवल नकारात्मक व बेबुनियाद पक्ष को सनसनी बनाकर दर्शकों से खेलने का हक किसने दे दिया है।
बहुत सही कहा है आपने. दूसरा चैनल के द्वारा बगैर पड़ताल के गैर जिम्मेदाराना तरीका अपनाया गया है. दरअसल यह प्रयोग बहुत साधारण से सिद्धांत पर है कि काफी तेज गति से इलेक्ट्रान व प्रोटान की टक्कर कराई जाएगी और इससे जो महाविस्फोट होगा उसकी गणना की जाएगी. यहां महाविस्फोट का आशय विशाल विस्फोट से न होकर पृथ्वी की उत्पत्ति के लिये जिम्मेदार विस्फोट के समानुपातिक विस्फोट से है न कि समतुल्य विस्फोट से. यह पूर्ण नियंत्रित प्रयोग है. इसमें यदि ब्लैक होल बनेगा भी तो वह अत्यंत अल्प व कम समय के लिये ही बन पाएगा.
ReplyDeleteभारतीय टीवी न्यूज चैनल असल में न्यूज चैनल नहीं बल्कि घटिया मनोरंजन चैनल हैं। इस तरह के खबरों के साथ सांप, बंदर, भूत की खबरें दिखाकर भारत को ये आर्थिक और राजनीतिक महासत्ता साबित करना चाहते हैं। समूची दुनिया आज भी ऐसी खबरें देखकर भारत को सांप और मदारियों का ही देश समझेगी। बंद होनी चाहिए बकवास। पृथ्वी के नष्ट होने की जो यह मनगढ़त कहानी ऐसे चैनलों में बैठे घटिया दिमागों की उपज है। सरकार, प्रशासन और आम आदमी को अब यह चुतियापा बंद करवाने के लिए कमर कसनी चाहिए।
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने.
ReplyDeleteदरअसल इस प्रयोग का विरोध कर रहे कुछ वैज्ञानिकों की यह दलील है कि इस महाविस्फोट से जो ब्लैक होल पैदा होगा , उससे दुनिया नष्ट हो सकती है। टी वी चैनलवालों को तो बस ऐसी घटना की खबर मात्र मिलनी चाहिए , इसे सनसनीखेज बनाकर पेश करने से इनकी टी आर पी बढ़ ही जाएगी।
ReplyDeleteमुझे तो ऐसा लगता है कि इस अफ़वाह की डिजाइन सर्न ने ही की है, जरूरत से ज्यादा प्रचार पाने के लिये। उन्हे लगा होगा कि अरबों यूरो खर्च करके शान्तिपूर्वक यह प्रयोग किया गया तो दुनिया को इसका पता तक नहीं चलेगा। क्यों न इस प्रयोग को सनसनीखेज बनाकर सर्न को प्रसिद्ध किया जाय?
ReplyDeleteबहुत सही लेख है आपका. यहाँ टीवी न्यूज़ चेनलों ने पत्रकारिता का बेडा गर्क कर दिया है. हर ख़बर को सनसनी के रूप में दिखाते है. सर्व जन हिताय अब स्वजन हिताय बन गया है.
ReplyDeletemujhe lagta hai ki aisi kori kalpna bhari bato se logo ke jahan me bharam bharne walo ke khilaf amm janta ke saath saath sarkaar ko bhi kade kadam uthane chahiye. apni TRP ke chakkar me jane kitne logo ko bevkoof bnate hai.
ReplyDeleteRakesh Kaushik
"Prathvi Ka ant" is very good article. Keep it up.
ReplyDeleteWith best wishes
Jayjeet
patrakarita logon ko aware karne ke liye,desh ki aajadi ke liye ki gayi thi,lekin aaj phijool ki gumrah karne wali khabron ko dikhakar mahaj TRP batorne ki ye koshish logo ko kitna bhadja sakta hai ye baat in logo ko nahi yaad aayi.aisi hi patrakarita chalti rahi to iska bhavishya andhkarmay hai.
ReplyDeleteउदय जी आपका लेख पढ़ा अच्छा लगा । सही लिखा है आपने पृथ्वी का अंत कोई मजाक नहीं सनसनी फैलाने और टीआरपी के लिए ये मिडिया वाले किसी भी हद तक जाते है कभी भी प्रलय की घोषणा कर देते हैं जैसे भगवान इन्हें ही बता कर सारे काम करता हो।
ReplyDeleteNASA has already conducted a test by Colliding two nutron beams and thereby generating the suspected amount of Heat and no damage has been noticed.
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