आतंकवाद से पीड़ित भारत के दर्द की वजह केवल दहशतगर्द आतंकी ही नहीं हैं, सफेदपोशों का एक ऐसा वर्ग भी है, जिनमें कुछ तो खुद को सेकुलर कहते हैं, तो कुछ वादों की बातें करते हैं, उस पर कभी अमल नहीं। ऐसे सफेदपोश उस कानून का विरोध करते हैं, जिनसे आतंकियों को सजा मिल सकती है।...और फिर भी यदि कोई आतंकी पकड़ा जाता है, तो ऐसे सफेदपोशों को उनके बचाव में खड़े होने में शर्म तक नहीं आती। विश्वास नहीं होता, तो गौरतलब है कि अहमदाबाद बम धमाकों के मामले में जब अबू बशीर को पकड़ा गया, तो उसके घर मातमपुर्सी के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के ऐसे सफेदपोशों की होड़ लग गई थी। और संभवतः ऐसे ही सेकुलरवादियों के दबाव में आतंकवाद निरोधी कानून पोटा को निरस्त कर दिया गया। नतीजतन, देश में 2005 से अब तक 17 बड़ी आतंकी घटनाओं में 500 सौ के करीब बेगुनाहों की मौत हो चुकी है। पर हैरानी की बात यह कि अब तक किसी आतंकी को सजा नहीं दी जा सकी। और तो और, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद राष्ट्रीय संप्रभुता के सबसे बड़े मंदिर संसद पर हमले के साजिशकर्ता अफजल गुरू को अब तक फांसी नहीं दी गई। इसके ठीक उलट अमेरिका की नाक पेंटागन बिल्डिंग पर आतंकी हमले का बदला अमेरिका ने कैसे लिया, यह सारी दुनिया जानती है...यही नहीं, उस हमले के सात साल गुजरने के बाद भी बदला लेने का सिलसिला जारी है। अमेरिकी फौज अफगानिस्तान और पाक के कबायली इलाकों में खोज-खोजकर आतंकियों को मार रहे है। इसके साथ ही अमेरिका में 9/11 की घटना के बाद सुरक्षा के ऐसे कड़े इंतजाम किये गए कि अब तक दूसरी किसी घटना को अंजाम देने का साहस आतंकी नहीं जुटा पाए हैं। वहीं भारत में आतंकवादियों की ऐसी पैठ की स्थिति में तथाकथित सेकुलरवादियों द्वारा यह सवाल उठाया जा रहा है कि इंडियन मुजाहिद्दीन के पीछे कहीं हिन्दू आतंकी तो नहीं? नवभारत टाइम्स में प्रकाशित एक रपट में श्री अरूण दीक्षित ने इसका जवाब देने की भरसक कोशिश की है;
दरअसल, भारत के 5 प्रमुख शहरों में हुए बम विस्फोटों के पीछे जिस 'इंडियन मुजाहिदीन' का नाम आ रहा है, वह तो सिर्फ मुखौटा है, इस खेल के असली खिलाड़ी तो और ही हैं। ये खुद को पीछे रखकर सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के कंधे पर बंदूक रखकर काम कर रहे हैं। उनकी कमान पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के हाथ में है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो भारत में आतंक फैलाने की योजना बहुत व्यापक और सुनियोजित है। अभी इसका पहला चरण ही पूरा हुआ है। दो चरण और बाकी हैं। प्रमुख शहरों से शुरू हुआ दहशत का खूनी खेल छोटे शहरों तक जाएगा। इन शहरों की सूची भी तैयार है। सूत्रों के मुताबिक भारत में इस समय जो आतंकी गतिविधियां चल रही हैं उनका ब्लू प्रिंट सवा 3 साल पहले नेपाल में बनाया गया था। तभी 'इंडियन मुजाहिदीन' को जन्म दिया गया था। ताकि भारत में भारतीय नाम से आतंक फैलाकर दुनिया को यह बताया जा सके कि यह उसकी आंतरिक समस्या है। उल्लेखनीय है कि भारत में हो रही आतंकी घटनाओं के पीछे पाक समर्थित आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद व अन्य की भूमिका सामने आने के बाद भारत सरकार ने दुनिया के प्रमुख देशों खासतौर पर अमेरिका से यह अनुरोध किया था कि वह इन संगठनों को अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों की सूची में शामिल करे और पाकिस्तान पर दबाव बनाए कि वह आतंकियों की मदद न करे। यह बात करीब 4 साल पुरानी है। सूत्रों के मुताबिक भारत के बढ़ते दबाव को देखते हुए आईएसआई ने एक नई रणनीति बनाई। इसके तहत 13 जुलाई 2005 को नेपाल में काठमांडू के पास एक कस्बे में एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में जैश और लश्कर के दो-दो प्रतिनिधियों के अलावा सिमी और दाऊद इब्राहिम का एक प्रतिनिधि भी शामिल हुआ। दाऊद का प्रतिनिधि काठमांडू का ही रहने वाला था। वह वहां होटल चलाता है। साथ ही उसका हैंडीक्राफ्ट का भी कारोबार है। सिमी का प्रतिनिधि उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ का रहने वाला एक शख्स था। इस बैठक के लिए आईएसआई ने 2 लेफ्टिनेंट जनरलों को खासतौर पर पाकिस्तान से नेपाल भेजा था। नेपाल स्थित पाक दूतावास में फर्स्ट सेक्रेटरी ताहिर शाह ने बैठक की व्यवस्था की थी। वह खुद भी बैठक में मौजूद रहा था। इस बैठक में ही यह तय किया गया था कि चूंकि लश्कर और जैश के कारण पाक पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बन रहा है, इसलिए एक ऐसा संगठन खड़ा किया जाए जिसका नाम भारतीय हो और भारत के ही लोग उसे चला रहे हों। उसी की आड़ में सारी गतिविधियां चलाई जाएं। उसके लिए हर तरह का बंदोबस्त लश्कर व जैश करेंगे और आईएसआई संरक्षण देते हुए उस पर नजर रखेगी। उसी बैठक में सिमी का पहला और आखिरी अक्षर काटकर 'इंडियन मुजाहिदीन' (आईएम) नाम दिया गया था। सूत्रों का यह भी कहना है कि इस बैठक की रिपोर्ट काठमांडू में तैनात भारतीय एजेंसी 'रॉ' के एक जूनियर अफसर ने तभी अपने अफसरों को सौंपी थी, लेकिन उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया था। हैदराबाद, मुंबई, जयपुर, बेंगलुरु, अहमदाबाद और दिल्ली में हुए बम विस्फोटों में लगातार इंडियन मुजाहिदीन और सिमी का नाम आने के बाद भारतीय खुफिया एजेंसियों ने 'इंडियन मुजाहिदीन' की असलियत खोजना शुरू किया। खुफिया सूत्रों के मुताबिक इन शहरों में जिस ढंग से विस्फोट किए गए और जिस तरह की सामग्री का इस्तेमाल किया गया, उससे साफ था कि यह काम किसी पेशेवर और शातिर संगठन का है। सिमी उसका मोहरा है और 'इंडियन मुजाहिदीन' कागजी नाम। असली खेल कोई और खेल रहा है। एक वरिष्ठ खुफिया अफसर के मुताबिक सिमी के नेता और कार्यकर्ता धर्म को लेकर काफी कट्टर हैं और बदले की भावना उनमें भरी हुई है, लेकिन तकनीकी रूप से वे इतने सक्षम नहीं कि इस स्तर की विस्फोटक व अन्य सामग्री जुटा सकें। पुलिस की गिरफ्त में चल रहे सिमी के प्रमुख कट्टरवादी नेताओं ने पूछताछ के दौरान जो जानकारियां दी हैं, उनसे भी यही जाहिर होता है कि उनके अंदर कुछ भी करने का जज्बा तो है, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर बम बनाना व उन्हें सुनियोजित ढंग से लगाना अकेले उनके बूते की बात नहीं है। फिलहाल खुफिया और जांच एजेंसियां इंडियन मुजाहिदीन और सिमी के असली नियंत्रकों तक पहुंचने की कोशिश में लगी हैं। जांच के दौरान यह बात जरूर सामने आई कि पहले दौर के विस्फोटों का जिम्मा अब्दुल सुभान उर्फ तौकीर पर ही था। दूसरे दौर के विस्फोटों की जिम्मेदारी डी कंपनी को दी गई है। इसी दौर के लिए 12 शहरों की सूची है और तीसरे दौर में 24 शहरों को निशाना बनाया जाना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि दूसरा दौर शुरू होने से पहले सुरक्षा एजेंसियां असली सूत्रधारों तक पहुंच जाएंगी। साथ ही 'आतंक' का चेहरा भी उजागर हो पाएगा। साभार: navabharattimes.indiatimes.com
दरअसल, भारत के 5 प्रमुख शहरों में हुए बम विस्फोटों के पीछे जिस 'इंडियन मुजाहिदीन' का नाम आ रहा है, वह तो सिर्फ मुखौटा है, इस खेल के असली खिलाड़ी तो और ही हैं। ये खुद को पीछे रखकर सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के कंधे पर बंदूक रखकर काम कर रहे हैं। उनकी कमान पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के हाथ में है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो भारत में आतंक फैलाने की योजना बहुत व्यापक और सुनियोजित है। अभी इसका पहला चरण ही पूरा हुआ है। दो चरण और बाकी हैं। प्रमुख शहरों से शुरू हुआ दहशत का खूनी खेल छोटे शहरों तक जाएगा। इन शहरों की सूची भी तैयार है। सूत्रों के मुताबिक भारत में इस समय जो आतंकी गतिविधियां चल रही हैं उनका ब्लू प्रिंट सवा 3 साल पहले नेपाल में बनाया गया था। तभी 'इंडियन मुजाहिदीन' को जन्म दिया गया था। ताकि भारत में भारतीय नाम से आतंक फैलाकर दुनिया को यह बताया जा सके कि यह उसकी आंतरिक समस्या है। उल्लेखनीय है कि भारत में हो रही आतंकी घटनाओं के पीछे पाक समर्थित आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद व अन्य की भूमिका सामने आने के बाद भारत सरकार ने दुनिया के प्रमुख देशों खासतौर पर अमेरिका से यह अनुरोध किया था कि वह इन संगठनों को अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों की सूची में शामिल करे और पाकिस्तान पर दबाव बनाए कि वह आतंकियों की मदद न करे। यह बात करीब 4 साल पुरानी है। सूत्रों के मुताबिक भारत के बढ़ते दबाव को देखते हुए आईएसआई ने एक नई रणनीति बनाई। इसके तहत 13 जुलाई 2005 को नेपाल में काठमांडू के पास एक कस्बे में एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में जैश और लश्कर के दो-दो प्रतिनिधियों के अलावा सिमी और दाऊद इब्राहिम का एक प्रतिनिधि भी शामिल हुआ। दाऊद का प्रतिनिधि काठमांडू का ही रहने वाला था। वह वहां होटल चलाता है। साथ ही उसका हैंडीक्राफ्ट का भी कारोबार है। सिमी का प्रतिनिधि उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ का रहने वाला एक शख्स था। इस बैठक के लिए आईएसआई ने 2 लेफ्टिनेंट जनरलों को खासतौर पर पाकिस्तान से नेपाल भेजा था। नेपाल स्थित पाक दूतावास में फर्स्ट सेक्रेटरी ताहिर शाह ने बैठक की व्यवस्था की थी। वह खुद भी बैठक में मौजूद रहा था। इस बैठक में ही यह तय किया गया था कि चूंकि लश्कर और जैश के कारण पाक पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बन रहा है, इसलिए एक ऐसा संगठन खड़ा किया जाए जिसका नाम भारतीय हो और भारत के ही लोग उसे चला रहे हों। उसी की आड़ में सारी गतिविधियां चलाई जाएं। उसके लिए हर तरह का बंदोबस्त लश्कर व जैश करेंगे और आईएसआई संरक्षण देते हुए उस पर नजर रखेगी। उसी बैठक में सिमी का पहला और आखिरी अक्षर काटकर 'इंडियन मुजाहिदीन' (आईएम) नाम दिया गया था। सूत्रों का यह भी कहना है कि इस बैठक की रिपोर्ट काठमांडू में तैनात भारतीय एजेंसी 'रॉ' के एक जूनियर अफसर ने तभी अपने अफसरों को सौंपी थी, लेकिन उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया था। हैदराबाद, मुंबई, जयपुर, बेंगलुरु, अहमदाबाद और दिल्ली में हुए बम विस्फोटों में लगातार इंडियन मुजाहिदीन और सिमी का नाम आने के बाद भारतीय खुफिया एजेंसियों ने 'इंडियन मुजाहिदीन' की असलियत खोजना शुरू किया। खुफिया सूत्रों के मुताबिक इन शहरों में जिस ढंग से विस्फोट किए गए और जिस तरह की सामग्री का इस्तेमाल किया गया, उससे साफ था कि यह काम किसी पेशेवर और शातिर संगठन का है। सिमी उसका मोहरा है और 'इंडियन मुजाहिदीन' कागजी नाम। असली खेल कोई और खेल रहा है। एक वरिष्ठ खुफिया अफसर के मुताबिक सिमी के नेता और कार्यकर्ता धर्म को लेकर काफी कट्टर हैं और बदले की भावना उनमें भरी हुई है, लेकिन तकनीकी रूप से वे इतने सक्षम नहीं कि इस स्तर की विस्फोटक व अन्य सामग्री जुटा सकें। पुलिस की गिरफ्त में चल रहे सिमी के प्रमुख कट्टरवादी नेताओं ने पूछताछ के दौरान जो जानकारियां दी हैं, उनसे भी यही जाहिर होता है कि उनके अंदर कुछ भी करने का जज्बा तो है, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर बम बनाना व उन्हें सुनियोजित ढंग से लगाना अकेले उनके बूते की बात नहीं है। फिलहाल खुफिया और जांच एजेंसियां इंडियन मुजाहिदीन और सिमी के असली नियंत्रकों तक पहुंचने की कोशिश में लगी हैं। जांच के दौरान यह बात जरूर सामने आई कि पहले दौर के विस्फोटों का जिम्मा अब्दुल सुभान उर्फ तौकीर पर ही था। दूसरे दौर के विस्फोटों की जिम्मेदारी डी कंपनी को दी गई है। इसी दौर के लिए 12 शहरों की सूची है और तीसरे दौर में 24 शहरों को निशाना बनाया जाना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि दूसरा दौर शुरू होने से पहले सुरक्षा एजेंसियां असली सूत्रधारों तक पहुंच जाएंगी। साथ ही 'आतंक' का चेहरा भी उजागर हो पाएगा। साभार: navabharattimes.indiatimes.com
sir, ye to sahi he ki atankwad ko badawa dene ke piche khi na kahi hamre desh ke netao ka bhi hat he. thabhi to sansad per hamla karne wala atankwadi afzal ka kuch nahi hua.
ReplyDeleteसर यह बात पूरी तरह से सही है कि आतंकवाद की गतिविधियाँ चलाने वाले और कोई नहीं सफेदपोश ही हैं. इनकी शह के बगैर कुछ भी नहीं होता, इसका प्रमाण हिन्दी फिल्मों में देखी जा सकती है. देश की सुरक्षा के लिए इनका खात्मा होना बेहद जरूरी है.
ReplyDeleteसर हैरत तो तब होती है जब ये अपनी गलती ना मानकर दुसरे की गलती बताने लगते है!इनका यह बयान कि बजरग दल और RSS जैसे दलों को भी सिमी कि तरह वेन कर देना चाहिए हास्यास्पद लगता है!
ReplyDeletemanish: aap sahi kehte hai ki india mai atankwadi rehte aur nuksan bhi karte. koi bahar sai aakar itna kuch nahi kar sakta. yeh sub rajneeti key funday hai
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है आपने पर क्या करें कि ये हमारा दुर्भाग्य ही है कि कुछ उतना कर नहीं पा रहे हैं। वैसे थोड़ा बहुत तो करने की कोशिश की है और लोगों तक वो पहुंची भी है।
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