मीतेन्द्र नागेश
‘आई डोंट नो हिन्दी’...मैं हलका-फूलका हिन्दी बोल पाता हूं (मैं हल्की-फुल्की हिन्दी बोल पाता हूं)...हिन्दी में कौन सुनता है...हिन्दी मीडियम से कैरियर नहीं बनता...आदि-आदि जुमले आज अंग्रेजीदां लोगों के लिए फैशन हो गया है। क्या आप भी ऐसे जुमले वाले हैं, या फिर कथाकथित हाईप्रोफइल लोगों के बीच आपको भी हिन्दी बोलने में शर्म आती है। यदि हां, तो क्यों न आपको इस देश से बाहर कर दिया जाये? क्यों न आपकी नागरिकता समाप्त कर दी जाये? और क्यों न आपको देशद्रोही करार दिया जाये? क्या आपको मालूम है, हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है और राष्ट्र का दायरा कश्मीर से कन्याकुमारी और राजस्थान से असम तक है। और आपको यह भी मालूम होना चाहिए कि अपने देश के तमाम प्रांतों या कहें ‘यहां हर मोहल्ले की अपनी विशेष बोली है, तो फिर ‘हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा’ का क्या मतलब है? आपको अगर ये सवाल सोचने पर मजबूर नहीं करते, तो निश्चित ही आप संवेदनहीनता के चरम पर पहुंच चुके हैं। फिर आपसे राष्ट्रीयता की उम्मीद करना बेमानी है।
कल (14 सितंबर) हिन्दी दिवस है। आप भी ऐसे किसी आयोजन का हिस्सा बनने की तैयारी में होंगे, जिसमें हिन्दी का गुणगान किया जायेगा, वक्ता हिन्दी और हिन्दी दिवस की महत्ता पर प्रकाश डालेंगे, हिन्दी दिवस क्यों मनाये...कैसे मनाये...क्या संकल्प लें...आदि बाते होंगी। आखिर हिन्दी दिवस मनाने की जरूरत क्या है? क्यों इतना तरस खाते हैं हम हिन्दी पर? क्या हिन्दी इतनी कमजोर भाषा है? आखिर इस तरह मंच से हिन्दी...हिन्दी करके जताया क्या जाता है? यही कि आज ‘बेचारी’ हिन्दी कमजोर हो गई, थोड़ा तो तरस खाओ।’ सच कहें, तो हिन्दी के नाम पर खासतौर पर इस एक दिन और पूरे एक सप्ताह में जो कुछ भी होता है, उसमें हिन्दी का मजाक बनाकर रख दिया जाता है। हर कोई हिन्दी की बेचारगी का रोना रोता नजर आता है, अगर खुद हिन्दी यह सब देख और सुन पाती तो आत्म हत्या कर लेती। बात सीधी सी है, जब दिल में हिन्दुस्तानी होने का सच्चा जज्बा ही नहीं हो, तो ऐसे लोगों से हिन्दी के प्रति आदर का निवेदन करना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा ही है न।
आप कहेंगे हम उत्तर भारत वाले तो हिन्दी बोलते ही हैं। पर आज के दौर में उत्तर भारत में कितने ऐसे लोग हैं, जिसे अंग्रेजी के आगे हिन्दी बोलने पर गर्व की अनुभूति होती है? आप कहेंगे पूरे राष्ट्र को हिन्दी बोलने के लिए आप कैसे राजी कर सकते हैं, तो आप क्या बता सकते हैं इसकी जगह अंग्रेजी सीखने की सलाह आपको किसने दी। दक्षिण भारत में भाषा की गंदी राजनीति करने वाले हिन्दी की तुलना कुत्ते से करते हैं। विश्वास नहीं होता, तो इस भाषण पर गौर करें, जिसे 1962 में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री अन्नादुर्रई ने संसद में दिया था-‘तमिलनाडु के लोगों को बाकी सारी दुनिया से बात करने के लिए अंग्रेजी और भारतीयों से बात करने के लिए हिन्दी क्यों पढ़नी पड़ेगी। क्या बड़े कुत्ते के लिए बड़ा दरवाजा बनाना पड़ेगा और छोटे कुत्ते के लिए छोटा दरवाजा। छोटे कुत्ते को भी बड़े कुत्ते का दरवाजा इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसी ही, भाषा की गंदी राजनीति पंजाब, फिर महाराष्ट्र में भी की जाती रही है। राज ठाकरे सरीखे भाषा की राजनीति से राष्ट्रीयता को नापाक बनाने वाले नेताओं के कारण ही हिन्दी की यह दुर्गति हुई कि हम भारत के लोग, जिसकी दुनिया भर में पहचान हिन्दी से हैं, वे अपने देश में ही हिन्दी से घृणा करने लगे हैं। विविध भाषाओं का ज्ञान होना अच्छी बात है, इसी सिलसिले में हम फ्रेंच, जर्मन आदि सीखते हैं, वैसे ही अंग्रेजी का सीखना भी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अपनी हिन्दी को हम भूल कर विदेशी भाषा अंग्रेजी ही सीखे और बोले, तो फिर आप अपनी राष्ट्रीय मर्यादा को भी भूल सकते हैं, भूल सकते हैं अपने देश के संविधान को, इसकी आन-बान और शान को। और फिर यदि यह स्वाभाविक है, तो क्या अंग्रेज दो सौ साल भारत में राज करके लौटने के बाद ब्रिटेन में अंग्रेजी भूलकर हिन्दी बोलने लगे? तो फिर हम क्यों?
हर हिन्दुस्तानी के लिए हिन्दी अनिवार्य होनी चाहिए। अगर आप हिन्दी नहीं जानते, तो आपकी राष्ट्रीयता अधूरी है। आप अहिन्दी भाषी होकर अगर अंग्रेजी सीख सकते हैं, तो हिन्दी से कैसी दुश्मनी? भाषा के नाम पर देश में जिस तरह की गंदी राजनीति होती आई है और चल रही है, उससे देश छोटे-छोटे भाषायी मोहल्लों में बंटता नजर आ रहा है। इस तरह हम देश की अखंडता का दावा नहीं कर सकते और अगर करते हैं, तो हम साफ झूठ बोलते हैं कि अनेकता में एकता, भारत की सबसे बड़ी विशेषता है।
‘आई डोंट नो हिन्दी’...मैं हलका-फूलका हिन्दी बोल पाता हूं (मैं हल्की-फुल्की हिन्दी बोल पाता हूं)...हिन्दी में कौन सुनता है...हिन्दी मीडियम से कैरियर नहीं बनता...आदि-आदि जुमले आज अंग्रेजीदां लोगों के लिए फैशन हो गया है। क्या आप भी ऐसे जुमले वाले हैं, या फिर कथाकथित हाईप्रोफइल लोगों के बीच आपको भी हिन्दी बोलने में शर्म आती है। यदि हां, तो क्यों न आपको इस देश से बाहर कर दिया जाये? क्यों न आपकी नागरिकता समाप्त कर दी जाये? और क्यों न आपको देशद्रोही करार दिया जाये? क्या आपको मालूम है, हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है और राष्ट्र का दायरा कश्मीर से कन्याकुमारी और राजस्थान से असम तक है। और आपको यह भी मालूम होना चाहिए कि अपने देश के तमाम प्रांतों या कहें ‘यहां हर मोहल्ले की अपनी विशेष बोली है, तो फिर ‘हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा’ का क्या मतलब है? आपको अगर ये सवाल सोचने पर मजबूर नहीं करते, तो निश्चित ही आप संवेदनहीनता के चरम पर पहुंच चुके हैं। फिर आपसे राष्ट्रीयता की उम्मीद करना बेमानी है।
कल (14 सितंबर) हिन्दी दिवस है। आप भी ऐसे किसी आयोजन का हिस्सा बनने की तैयारी में होंगे, जिसमें हिन्दी का गुणगान किया जायेगा, वक्ता हिन्दी और हिन्दी दिवस की महत्ता पर प्रकाश डालेंगे, हिन्दी दिवस क्यों मनाये...कैसे मनाये...क्या संकल्प लें...आदि बाते होंगी। आखिर हिन्दी दिवस मनाने की जरूरत क्या है? क्यों इतना तरस खाते हैं हम हिन्दी पर? क्या हिन्दी इतनी कमजोर भाषा है? आखिर इस तरह मंच से हिन्दी...हिन्दी करके जताया क्या जाता है? यही कि आज ‘बेचारी’ हिन्दी कमजोर हो गई, थोड़ा तो तरस खाओ।’ सच कहें, तो हिन्दी के नाम पर खासतौर पर इस एक दिन और पूरे एक सप्ताह में जो कुछ भी होता है, उसमें हिन्दी का मजाक बनाकर रख दिया जाता है। हर कोई हिन्दी की बेचारगी का रोना रोता नजर आता है, अगर खुद हिन्दी यह सब देख और सुन पाती तो आत्म हत्या कर लेती। बात सीधी सी है, जब दिल में हिन्दुस्तानी होने का सच्चा जज्बा ही नहीं हो, तो ऐसे लोगों से हिन्दी के प्रति आदर का निवेदन करना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा ही है न।
आप कहेंगे हम उत्तर भारत वाले तो हिन्दी बोलते ही हैं। पर आज के दौर में उत्तर भारत में कितने ऐसे लोग हैं, जिसे अंग्रेजी के आगे हिन्दी बोलने पर गर्व की अनुभूति होती है? आप कहेंगे पूरे राष्ट्र को हिन्दी बोलने के लिए आप कैसे राजी कर सकते हैं, तो आप क्या बता सकते हैं इसकी जगह अंग्रेजी सीखने की सलाह आपको किसने दी। दक्षिण भारत में भाषा की गंदी राजनीति करने वाले हिन्दी की तुलना कुत्ते से करते हैं। विश्वास नहीं होता, तो इस भाषण पर गौर करें, जिसे 1962 में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री अन्नादुर्रई ने संसद में दिया था-‘तमिलनाडु के लोगों को बाकी सारी दुनिया से बात करने के लिए अंग्रेजी और भारतीयों से बात करने के लिए हिन्दी क्यों पढ़नी पड़ेगी। क्या बड़े कुत्ते के लिए बड़ा दरवाजा बनाना पड़ेगा और छोटे कुत्ते के लिए छोटा दरवाजा। छोटे कुत्ते को भी बड़े कुत्ते का दरवाजा इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसी ही, भाषा की गंदी राजनीति पंजाब, फिर महाराष्ट्र में भी की जाती रही है। राज ठाकरे सरीखे भाषा की राजनीति से राष्ट्रीयता को नापाक बनाने वाले नेताओं के कारण ही हिन्दी की यह दुर्गति हुई कि हम भारत के लोग, जिसकी दुनिया भर में पहचान हिन्दी से हैं, वे अपने देश में ही हिन्दी से घृणा करने लगे हैं। विविध भाषाओं का ज्ञान होना अच्छी बात है, इसी सिलसिले में हम फ्रेंच, जर्मन आदि सीखते हैं, वैसे ही अंग्रेजी का सीखना भी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अपनी हिन्दी को हम भूल कर विदेशी भाषा अंग्रेजी ही सीखे और बोले, तो फिर आप अपनी राष्ट्रीय मर्यादा को भी भूल सकते हैं, भूल सकते हैं अपने देश के संविधान को, इसकी आन-बान और शान को। और फिर यदि यह स्वाभाविक है, तो क्या अंग्रेज दो सौ साल भारत में राज करके लौटने के बाद ब्रिटेन में अंग्रेजी भूलकर हिन्दी बोलने लगे? तो फिर हम क्यों?
हर हिन्दुस्तानी के लिए हिन्दी अनिवार्य होनी चाहिए। अगर आप हिन्दी नहीं जानते, तो आपकी राष्ट्रीयता अधूरी है। आप अहिन्दी भाषी होकर अगर अंग्रेजी सीख सकते हैं, तो हिन्दी से कैसी दुश्मनी? भाषा के नाम पर देश में जिस तरह की गंदी राजनीति होती आई है और चल रही है, उससे देश छोटे-छोटे भाषायी मोहल्लों में बंटता नजर आ रहा है। इस तरह हम देश की अखंडता का दावा नहीं कर सकते और अगर करते हैं, तो हम साफ झूठ बोलते हैं कि अनेकता में एकता, भारत की सबसे बड़ी विशेषता है।
hindi ke parti aap ki bhaawnaie bahut schchi hai,,,,,
ReplyDeleteise sageje rakhain
आपकी बात में है दम
ReplyDeleteसमस्यायें भी होंगी कम
अंग्रेजीदां हैं बहुत ज्यादा
उनके जाने से घटेंगी
नहीं तो घटा देंगे हम
यह करते हैं वायदा।
हम हैं हिन्दी
हिन्दी है दम।
- अविनाश वाचस्पति
हिन्दी में नियमित लिखें और हिन्दी को समृद्ध बनायें.
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
-समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामना
ReplyDeleteगर्व से कहे हिन्दी हमारी भाषा है
जय हिन्दी .
हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामना
ReplyDeleteगर्व से कहे हिन्दी हमारी भाषा है
जय हिन्दी
आपने बहुत ही अच्छी कोशिश की है... बहुत सराहनीय लिखा है... बहुत खुशी हुयी ये देख कर कि आप जैसे लोग भी हैं भारत-वर्ष में.....
ReplyDeletemitendra ji sahi kaha aapne aaj hindi sirf hindi divas manane ke liye hi rah gai hai log ye kyou nahi samajh pa rahe hai ki apni maa ka anchal chode kar koi bhi baccha jyada door nahi ja sakta
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