उदय केसरी
पूरी दुनिया में जिस हिन्दी फिल्मों के लिए मुंबई प्रसिद्ध है, उसी हिन्दी के लिखने और बोलने पर बावेला मचाया जा रहा है। इस बावेले के शिकार सबसे पहले गैर मुंबईवासी या कह लें उत्तरप्रदेश व बिहार के लोग हुए, फिर मुंबई के ऐसे दुकानदार व व्यापारी हुए, जिनकी दुकानों के साइन बोर्ड हिन्दी में लिखे हुए थे, फिर अब बावेला में बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के परिवार को घसीटा जा रहा है। हाल के दिनों में यह सब घटनाएं सुर्खियां बनती रही हैं और इन सब घटनाओं के सूत्रधार हैं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे, जबकि इसके महासूत्रधार हैं शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे। उन्हें मराठी भाषा से अगाध प्रेम है। गैर-मराठी भाषी लोग, खासकर यूपी-बिहार वाले नापसंद हैं। यदि इनकी मर्जी चले तो मराठी भाषा नहीं जानने या बोलने वालों को फांसी पर लटका दें।
आगे कुछ कहने से पहले बाल ठाकरे के संबंध में कुछ तथ्यों पर आपका ध्यान दिलाना चाहूंगा, जैसे-मुंबई में शिव सेना का मुखपत्र सामना मराठी के अलावा हिन्दी में भी निकलता है। बाल ठाकरे ने अपने कैरियर की शुरुआत मुंबई में एक अंग्रेजी अखबार फ्रीप्रेस जर्नल में एक कार्टूनिस्ट के रूप में की। वे गैर-मराठियों में यूपी-बिहार के लोगों को ही नहीं, मुस्लिमों और बंगालियों के भी खिलाफ शुरू से मुखर रहे हैं। यहीं नहीं, 70 के दशक में उन्होंने ‘महाराष्ट्र केवल मराठियों के लिए’ आंदोलन चलाया और दक्षिण भारतीय लोगों को भी मुंबई छोड़ने की खुली धमकी दी। 6 मार्च 2008 को ठाकरे ने अपने मुखपत्र सामना में एक संपादकीय लिखी, जिसका शीर्षक था-एक बिहारी सौ बीमारी। 29 जनवरी 2007 में इंडियन एक्सप्रेस को दिये एक साक्षात्कार में बाल ठाकरे ने हिटलर की प्रशंसा करते हुए कहा था- Hitler did very cruel and ugly things. But he was an artist, I love him.
अब कुछ तथ्य बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे के बारे में- राज ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत शिव सेना से की, लेकिन बाल ठाकरे (चाचा) के पुत्र उद्धव ठाकरे द्वारा शिव सेना से साइडलाइन लगाये जाने के बाद उन्होंने नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली। राज ठाकरे बाहरी, खासकर उत्तर भारतीयों के खिलाफ जमकर हिंसक राजनीति करते रहे हैं। यहां तक कि बिहार व उत्तर प्रदेश के लोगों की आस्था से जुड़ी छठ पूजा पर टिप्पणी करते हुए इसे ‘नाटक’ करार दिया।
अब सवाल है कि क्या मुंबई की प्रसिद्धि और विकास केवल मराठियों की देन है? मराठी क्या केवल मराठी हैं, भारतवासी नहीं? बिहार और उत्तर प्रदेश किसी दूसरे देश का नाम है? भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है, तो क्या महाराष्ट्र राष्ट्र से बाहर है? इन सवालों के सही जवाब भारत के पांचवीं पास ही नहीं, फेल बच्चे को भी मालूम होगा। तो क्या मराठी बनाम हिन्दी के सूत्रधार व महासूत्रधार को इसके जवाब नहीं मालूम? यदि मालूम है, तो क्या यह क्षेत्र, भाषा व धर्म के नाम की जा रही महज कपट राजनीति नहीं? इस सवाल का जवाब आपको संभवतः स्वतः मिल गया होगा। ऐसी कपट राजनीति के बीच बाहरी होने के नाम पर पहले अमिताभ बच्चन के घर पर पत्थर फेंकवाया जाता है, फिर उनसे मराठी व मुंबई प्रेम प्रदर्शित करने की अपेक्षा की जाती है। तो क्या एमएनएस की स्थापना (9 मार्च 2006) के बाद अमिताभ बच्चन ने अपना घर मुंबई में बनवाया। और फिर यह बताने की जरूरत है कि कोई अपना घर कहां बनाता है। पर लगता है कि बाला साहब व राज ठाकरे को भावनाओं की भाषा समझ में नहीं आती है। यदि समझ में आती तो हिटलर उनके लिए हीरो नहीं होता। अब ऐसी दूषित अपेक्षाओं से चिढ़ी जया बच्चन अपने दिल की भड़ास कब तक दबाती, सो बोल दी, हम यूपी वाले हैं हिन्दी में बोलेंगे। लेकिन यह बोलते हुए जया बच्चन यह भूल गई कि वह एक जानी-मानी अभिनेत्री और महानायक अमिताभ की पत्नी होने के नाते देश की एक सम्मानित हस्ती हैं। इसलिए उन्हें भी वही राह नहीं पकड़नी चाहिए, जिस राह पर राज ठाकरे चल रहे हैं। यदि वह यह कहतीं कि हम हिन्दुस्तान वाले हैं, हिन्दी में बोलेंगे तो जरूर पूरा हिन्दुस्तान उन पर गर्व करता। ऐसी ही गलती बॉलीवुड के बादशाह शाहरूख खान ने भी की कि हम दिल्ली वाले हैं। यह वाकई चिंता का विषय है कि राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर की हस्तियां ऐसी गलती करके क्षेत्र, भाषा व धर्म की भ्रष्ट राजनीति करने वालों को बावेला मचाने के मौके दे रही हैं। जिसका दुष्परिणाम उन्हें तो कम साधारण आदमी को कहीं अधिक भुगतना पड़ता है।
पूरी दुनिया में जिस हिन्दी फिल्मों के लिए मुंबई प्रसिद्ध है, उसी हिन्दी के लिखने और बोलने पर बावेला मचाया जा रहा है। इस बावेले के शिकार सबसे पहले गैर मुंबईवासी या कह लें उत्तरप्रदेश व बिहार के लोग हुए, फिर मुंबई के ऐसे दुकानदार व व्यापारी हुए, जिनकी दुकानों के साइन बोर्ड हिन्दी में लिखे हुए थे, फिर अब बावेला में बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के परिवार को घसीटा जा रहा है। हाल के दिनों में यह सब घटनाएं सुर्खियां बनती रही हैं और इन सब घटनाओं के सूत्रधार हैं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे, जबकि इसके महासूत्रधार हैं शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे। उन्हें मराठी भाषा से अगाध प्रेम है। गैर-मराठी भाषी लोग, खासकर यूपी-बिहार वाले नापसंद हैं। यदि इनकी मर्जी चले तो मराठी भाषा नहीं जानने या बोलने वालों को फांसी पर लटका दें।
आगे कुछ कहने से पहले बाल ठाकरे के संबंध में कुछ तथ्यों पर आपका ध्यान दिलाना चाहूंगा, जैसे-मुंबई में शिव सेना का मुखपत्र सामना मराठी के अलावा हिन्दी में भी निकलता है। बाल ठाकरे ने अपने कैरियर की शुरुआत मुंबई में एक अंग्रेजी अखबार फ्रीप्रेस जर्नल में एक कार्टूनिस्ट के रूप में की। वे गैर-मराठियों में यूपी-बिहार के लोगों को ही नहीं, मुस्लिमों और बंगालियों के भी खिलाफ शुरू से मुखर रहे हैं। यहीं नहीं, 70 के दशक में उन्होंने ‘महाराष्ट्र केवल मराठियों के लिए’ आंदोलन चलाया और दक्षिण भारतीय लोगों को भी मुंबई छोड़ने की खुली धमकी दी। 6 मार्च 2008 को ठाकरे ने अपने मुखपत्र सामना में एक संपादकीय लिखी, जिसका शीर्षक था-एक बिहारी सौ बीमारी। 29 जनवरी 2007 में इंडियन एक्सप्रेस को दिये एक साक्षात्कार में बाल ठाकरे ने हिटलर की प्रशंसा करते हुए कहा था- Hitler did very cruel and ugly things. But he was an artist, I love him.
अब कुछ तथ्य बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे के बारे में- राज ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत शिव सेना से की, लेकिन बाल ठाकरे (चाचा) के पुत्र उद्धव ठाकरे द्वारा शिव सेना से साइडलाइन लगाये जाने के बाद उन्होंने नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली। राज ठाकरे बाहरी, खासकर उत्तर भारतीयों के खिलाफ जमकर हिंसक राजनीति करते रहे हैं। यहां तक कि बिहार व उत्तर प्रदेश के लोगों की आस्था से जुड़ी छठ पूजा पर टिप्पणी करते हुए इसे ‘नाटक’ करार दिया।
अब सवाल है कि क्या मुंबई की प्रसिद्धि और विकास केवल मराठियों की देन है? मराठी क्या केवल मराठी हैं, भारतवासी नहीं? बिहार और उत्तर प्रदेश किसी दूसरे देश का नाम है? भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है, तो क्या महाराष्ट्र राष्ट्र से बाहर है? इन सवालों के सही जवाब भारत के पांचवीं पास ही नहीं, फेल बच्चे को भी मालूम होगा। तो क्या मराठी बनाम हिन्दी के सूत्रधार व महासूत्रधार को इसके जवाब नहीं मालूम? यदि मालूम है, तो क्या यह क्षेत्र, भाषा व धर्म के नाम की जा रही महज कपट राजनीति नहीं? इस सवाल का जवाब आपको संभवतः स्वतः मिल गया होगा। ऐसी कपट राजनीति के बीच बाहरी होने के नाम पर पहले अमिताभ बच्चन के घर पर पत्थर फेंकवाया जाता है, फिर उनसे मराठी व मुंबई प्रेम प्रदर्शित करने की अपेक्षा की जाती है। तो क्या एमएनएस की स्थापना (9 मार्च 2006) के बाद अमिताभ बच्चन ने अपना घर मुंबई में बनवाया। और फिर यह बताने की जरूरत है कि कोई अपना घर कहां बनाता है। पर लगता है कि बाला साहब व राज ठाकरे को भावनाओं की भाषा समझ में नहीं आती है। यदि समझ में आती तो हिटलर उनके लिए हीरो नहीं होता। अब ऐसी दूषित अपेक्षाओं से चिढ़ी जया बच्चन अपने दिल की भड़ास कब तक दबाती, सो बोल दी, हम यूपी वाले हैं हिन्दी में बोलेंगे। लेकिन यह बोलते हुए जया बच्चन यह भूल गई कि वह एक जानी-मानी अभिनेत्री और महानायक अमिताभ की पत्नी होने के नाते देश की एक सम्मानित हस्ती हैं। इसलिए उन्हें भी वही राह नहीं पकड़नी चाहिए, जिस राह पर राज ठाकरे चल रहे हैं। यदि वह यह कहतीं कि हम हिन्दुस्तान वाले हैं, हिन्दी में बोलेंगे तो जरूर पूरा हिन्दुस्तान उन पर गर्व करता। ऐसी ही गलती बॉलीवुड के बादशाह शाहरूख खान ने भी की कि हम दिल्ली वाले हैं। यह वाकई चिंता का विषय है कि राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर की हस्तियां ऐसी गलती करके क्षेत्र, भाषा व धर्म की भ्रष्ट राजनीति करने वालों को बावेला मचाने के मौके दे रही हैं। जिसका दुष्परिणाम उन्हें तो कम साधारण आदमी को कहीं अधिक भुगतना पड़ता है।
सर नमस्कार
ReplyDeleteआपका लेख पडा बहुत आछा लगा आपका विचार जानकर बहुत प्रभावित हुऐ और रही बात राज ठाकरे की तो यही बात है की जो गरजती है वह बरसते नही राज को सायद मालूम नही की महारास्त्र की अर्थ व्यवस्था का आधार उपी और बिहार के लोगे ही है साथ ही मै बता देना कहता हु की हम दरिया है हमे आपना हुनर मालूम है हम जिधेर जाते है उधर रास्ते बनते है जिसे हम त्याग देते है उसका कोई महत्व नही रहता है आपने कहा की यह सारी बाते राजनीतिक है तो यह सव प्रतिसत ठीक कहा आपने
आपका सांतनु मिश्रा
I went through ur article("hum hindustan wale hain, hindi mein bolenge"). The message behind the article is quite impressive (swadeshi touch). The content you have collected for bal thakre is also remarkable. But the best line as per my opinion is "Jaya Bachan don't have to say like .......".
ReplyDeleteएक सवाल हमेशा जहन में उठता है कि आखिर हिन्दी से ही बेर क्यों? हिन्दी का विरोध करने वाले अंग्रेजी को बड़े गर्व से गले लगाते हैं.राज साहब सामान्य व्यवहार में अंग्रेजी के प्रयोग का विरोध क्यों नहीं करते? दरअसल उनकी सोच बहुत संकीर्ण है, जो महाराष्ट और 'मराठी मानुष' के दायरे से बाहर देख ही नहीं पाती. और शायद हिन्दुस्तानी होने या राष्टीयता की भावना से उनका कोई सरोकार नहीं है. उन्हें तो बस टुच्ची राजनीति से मतलब है.
ReplyDeleteभारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है, तो क्या महाराष्ट्र राष्ट्र से बाहर है? इन सवालों के सही जवाब भारत के पांचवीं पास ही नहीं, फेल बच्चे को भी मालूम होगा। तो क्या मराठी बनाम हिन्दी के सूत्रधार व महासूत्रधार को इसके जवाब नहीं मालूम?
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