असल पत्रकारिता को आमिर का सलाम

उदय केसरी  
 आमिर खान ने अपने पहले टीवी शो ‘सत्यमेव जयते’ के पहले एपिसोड से सरोकारों से जुड़े दर्शकों को खासा आकर्षित किया है और सोशल नेटवर्किंग साइटों पर जमकर इस शो की तरीफ भी हो रही है। इस शो के प्रसारण की टाइमिंग और सादे-सच्चे फार्मेट को लेकर महज टीआरपी का चश्मा लगाने वाले कार्यक्रम निर्माता-निर्देशक अवश्य आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन आमिर ने इन सबके बावजूद जिस हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ इस शो का निर्माण किया है, उससे साफ है कि उन्होंने बड़े पर्दे की तरह, छोटे पर्दे पर भी एक अनोखा मिसाल कायम करने की ठान ली है। यही नहीं उन्होंने सरोकार के असल पथ भटकते कई न्यूज चैनलों और अखबारों को भी आईना दिखाने की कोशिश की है, जो इसे टीआरपीलेस सब्जेक्ट मानते हैं।
आमिर जैसे फिल्मों के किसी देसी अवार्ड फंक्शन में जाना पसंद नहीं करते हैं और अपने कैरियर के लिए ऐसे अवार्ड को नहीं, बल्कि मेहनत व ईमानदारी से किए गए काम को महत्वपूर्ण मानते हैं। वैसे ही शायद वे टीवी जगत में भी टीआरपी को महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं, बल्कि दर्शकों के दिलों को छूकर अपने संदेश पहुंचाने में वे किस हद तक सफल होते हैं, इसे वह महत्वपूर्ण मानते हैं। इस शो के आने से पहले एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने अपना यह विचार जाहिर भी कर दिया था। इसलिए महज क्षणिक मनोरंजन की उम्मीद रखने और सरोकारों को बोरिंग समझने वाले दर्शक इस शो के निर्माता यानी आमिर खान के टारगेट आडियंस नहीं हैं। 
आमिर को अपने अलहदे काम करने की शैली के चलते पहले उन्हें काफी समय तक तमाम तरह की आलोचनाएं सहनी पड़ी, लेकिन उन्होंने कभी इसपर ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगातार संजीदा और शोधपरक बने रहे। उनके काम की इसी शैली के कारण उन्हें मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहा जाने लगा और उन्होंने हर साल अपनी फिल्मों के जरिए खुद को साबित किया, इस हद तक साबित किया कि अब उनके आलोचकों के पास कोई तर्क ही नहीं बचे। वे ऐसे अभिनेता बन गए जिसके महज होने से फिल्मों के सफल होने की गारंटी दी जाने लगी।
लेकिन ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम के आने के बाद जिस आमिर खान ने टीवी पर आवतार लिया है, वह अभिनेता से कहीं अधिक असल पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता के धर्म का बाखूबी पालन करते हुए सरोकारों से दूर होते इस देश के कई मनोरंजन चैनलों, न्यूज चैनलों और अखबारों को आईना दिखाते से प्रतीत होते हैं। आमिर ने पहले एपिसोड में महिलाओं पर अत्याचार और भ्रूण हत्या के जिस स्याह सच को शोधपरक तरीके से सामने लाया है, वह नया नहीं है, उसे कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर उजागर किया जाता रहा है, लेकिन मीडिया में ऐसे मुद्दे को कभी विशेष तवज्जो नहीं दिया गया, क्योंकि टीआरपी गुरुओं को यह समाजसेवा ज्यादा नजर आती है, इसलिए उन्हें यह फायदे का सब्जेक्ट नहीं लगता।
ऐसे माहौल में आमिर खान प्रोडक्शन द्वारा टीवी के लिए ऐसे शो बनाना और उसे प्राइम टाइम पर नहीं, बल्कि एक औड टाइमलाइन पर रविवार सुबह 11 बजे पेश करना अपने आप में चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है, लेकिन गौर करने की बात है कि इनडेप्थ रिसर्च के बाद ही किसी काम को हाथ में लेने वाले आमिर खान ने  क्या इन टीआरपी गुरुओं की आशंकाओं पर विचार नहीं किया होगा। जरूर किया होगा, लेकिन जैसे कभी दूरदर्शन पर आने वाला आधे-एक घंटे के समाचार कार्यक्रम को दर्शकों के लिए पर्याप्त माना जाता था और 24 घंटे समाचार प्रसारित करने की कोई कल्पना भी नहीं कर पाते थे, तब 24 घंटे न्यूज चैनल शुरू करने वालों को लेकर भी ऐसी ही आशंकाएं व्यक्त की गई थीं। ऐसे आशंकाओं से क्रांतिकारी विचारों और पहल करने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता, बशर्ते उसके पीछे का इरादा नेक और सरोकारों से जुड़ा हो।
जहिर है, आमिर खान ने ‘सत्यमेव जयते’ के माध्यम से एक क्रांतिकारी पहल ही नहीं की है, बल्कि भारतीय पत्रकारिता और संचार के वास्तविक मूल्यों को एक बड़े कैनवास पर फिर से सबसे उपर लाकर उकेरने की कोशिश की है, जिसे कारपोरेट जगत की मीडिया ने कहीं स्वार्थ के परदों की ओट में छुपा दिया था।       

No comments:

Post a Comment