उदय केसरी
शुक्रवार (12 सितंबर) को मैंने आतंकवाद विरोधी अमेरिकी दादागिरी के बहाने भारतीय बचावगिरी या कहें, कमजोरी की बात की थी।...और इस क्रम में भारत में बता-बताकर आतंकियों द्वारा किये जा रहे विस्फोट का जिक्र भी किया था...अब इसे संयोग कहें या दुरसंयोग कि इस आलेख ‘तो भारत क्यों नहीं पीओके में घुसकर मार सकता’ के सीधीबात पर प्रकाशित होने के दूसरे ही दिन आतंकियों ने एक बार फिर बताकर देश की राजधानी पर हमला बोल दिया, जिसमें श्रृंखलाबद्ध पांच बम धमाकों में 24 निर्दोषों की मौत और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। यह घटना भी पिछले दिनों जयपुर, बंगलुरू व अहमदाबाद में हुई विस्फोट की घटनाओं जैसी ही है और इसकी जिम्मेदारी लेने वाला आतंकी संगठन भी वही इंडियन मुजाहिद्दीन है। समानताएं केवल घटना की प्रकृति में ही नहीं, इन घटनाओं के बाद देश के राजनीतिकों और नौकरशाहों व सुरक्षा एंजेंसियों की प्रतिक्रियाओं में भी है।...और यही नहीं समानता जनता की प्रतिक्रिया स्वरूप संवेदना में भी है...यानी यदि दो-चार दिनों तक कोई और विस्फोट नहीं हुआ, तो 13 सितंबर को दिल्ली के करोलबाग, गफ्फार मार्केट, कनाट पैलेस व बाराखंभा रोड क्षेत्र में हुए बम विस्फोट और उससे हुई ताबाही को भी हम भूलने लगेंगे और भूलते-भूलते अचानक से फिर एक दिन किसी शहर में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट की खबर सुनकर सहम जाएंगे।...
आखिर कब तक?
आखिर हम ऐसे क्यों हो गए हैं?....आखिर हम किसी बीमारी के स्थायी इलाज के बजाए उस पर केवल मरहम-पट्टी से क्यों संतुष्ट हो जाते हैं? क्या हमारी ताकत जाती रही है? या हमारे लिए देश व देश के दुश्मनों के बीच कोई तीसरा मसला सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो गया है? या फिर कहें कि हम पूरी तरह से संवेदनहीन हो चुके हैं, बस इतनी संवेदना बाकी है कि अपनी चमड़ी पर जब चोट लगती है, तभी सच्चे दर्द का एहसास होता है।
इंडिया टीवी ने तो हद कर दी
पहले, मैं दिल्ली बम विस्फोट के बाद दूसरे दिन-रात तक एक न्यूज चैनल इंडिया टीवी की करतूतों की बात करना चाहूंगा, जो पत्रकारिता के नाम पर आतंक का हॉरर फिल्मी शो पेश करता रहा।...और जिस तरह हॉरर फिल्मों की सफलता तीन घंटे दर्शकों के बीच पैदा होने वाले दहशत भरे रोमांच पर निर्भर करती है। उसी तरह, इंडिया टीवी, आतंकी बम विस्फोट की कहानी को हॉरर फिल्मी शो बनाकर पेश कर रहा था, लेकिन इंडिया टीवी वालों को शायद पत्रकारिता के माध्यम से बनने वाली कहानी और फिल्मी कहानी में कोई अंतर नहीं समझ में आता। यदि आता, तो वह विस्फोट से पूरे देश में बने भय के वातावरण को घटाने के बजाए आतंकी मंसूबे पर ही जुगलबंदी करते हुए अगले धमाके की भविष्यवाणी चींख-चींखकर नहीं करता।...क्या पत्रकारिता है! घर में जब किसी के मरने का मातम मनाया जा रहा है, तब घर का ही एक तथाकथित जिम्मेदार शख्स डुगडुगी लेकर बाहर घर के अगले सदस्य के मरने की तारीख सुना रहा है। आपने भी इंडिया टीवी पर सुनी होगी इस तरह की डरावनी चींखें- 26 अक्टूबर, टारगेट मुंबई, मिशन मुंबई, धमाके के पैटर्न में छुपी है अगली तारीख, तय हो गई आतंक की तारीख, हम जिम्मेदार चैनल वाले हैं, मुंबईवासियों को डराना नहीं चाहते पर विस्फोटों का पैटर्न यही कहता है।...हमारे खुलासे के बाद आतंकियों में मच जाएगी खलबली...आदि-आदि अब जरा उस पैटर्न पर गौर करें जिसमें कहा गया कि-जयपुर, अहमदाबाद फिर दिल्ली में डेढ़-डेढ़ महीने के अंतर में क्रमश: 13 मई, 26 जुलाई, फिर 13 सितंबर को धमाके हुए, इसलिए अब अगली तारीख 26 अक्टूबर होगी। पहली बात, इंडिया टीवी के लोगों का सामान्य गणित भी काफी कमजोर है। इन तीनों तारीखों में अंतर लगभग सवा दो महीने व पौने दो महीने का है। तो फिर किस गणित के आधार पर वे धमाके की अगली 26 अक्टूबर बता रहे हैं...दूसरी बात, बेसिरपैर का यह पैटर्न भिड़ाने के चक्कर में इंडिया टीवी ने बंगलुरू बम विस्फोट (25 जुलाई) को इस क्रम में क्यों नहीं रखा। इसलिए कि, गणित कुछ ज्यादा उलझ जाता। तीसरी बात, इंडियन मुजाहिद्दीन के खास ई-मेल यदि केवल इंडिया टीवी को ही मिलते हैं और वह आतंकियों की तरह ही भय फैलाने के लिए हर हथकंडे अपनाती है, तो क्यों नहीं इस चैनल को प्रतिबंधित कर दिया जाए?
पाक मस्जिदों में कैसे सुन रहे हैं हम नापाक तकरीर
देश की पाक मस्जिदों में इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंक गुरु मुसल्लम ईमान वाले हमारे मुसलमान भाइयों को यह कैसी शिक्षा दे रहे हैं-जी न्यूज पर दिल्ली धमाके के दूसरे दिन ‘द इनसाइड स्टोरी’ कार्यक्रम में आतंक गुरु के तकरीर का ऑडियो सुनाया गया। इसकी कुछ लाइनें- अकबर जाहिल था, उसने इस्लाम को कमजोर किया, औरंगजेब के आने से इस्लाम को फायदा हुआ, अकबर ने इस्लाम को जड़ से उखाड़ने की कोशिश की, आज औरंगजेब का जितना एहसान हिन्दुस्तान पर शायद ही किसी का होगा आदि-आदि. इस ऑडियो में कही गई एक फीसदी बातें भी यदि सही हैं, तो हमारे देश के मुसलमान भाइयों को ऐसे आतंक गुरू से यही कहना चाहिए कि इतिहास तो हमारे बाप-दादे बताते ही रहे हैं, लेकिन तुम पहले इसका जवाब दो कि जयपुर, बंगलुरू, अहमदाबाद के बाद अब रमजान के इस पाक महीने में दिल्ली बम विस्फोट में मारे गए मुस्लिम भारतवासियों का क्या कसूर था? कुरान के किस पन्ने में इस्लाम के नाम पर निर्दोषों का खून बहाने की इजाजत दी गई है? इस्लाम यदि पाकिस्तान में मजबूत है, तो अमन, चैन व विकास में भारत से पीछे क्यों है? भारत में क्या कभी सैनिकों ने राजनीतिक सत्ता अपने कब्जे में ली या लेने की कोशिश तक की?.... इन सवालों के सही जवाब ऐसे दहशतगर्द आतंकी गुरु कभी नहीं दे सकते...क्योंकि अमन का सबक उन्होंने कभी पढ़ा ही नहीं। और रही बात नफरत की, तो ऐसे दहशतगर्दों को यह मालूम होना चाहिए कि हिन्दुस्तान में केवल मुसलमान भाई ही नहीं, हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन, पारसी, बौद्ध, आर्य, द्रविड़ समुदाय के लोग भी एक साथ रहते हैं, इन सबों के मिलने से ही पूरे हिन्दुस्तान की सही संरचना बनती है। यहां किसी भी जाति धर्म के लोगों को आजादी खैरात में नहीं दी जाती, जन्मजात मिलती है। इसलिए, इस पाक मुल्क में आतंक का जहर घोलने की कोशिश कभी सफल नहीं होगी। न ही कभी इन दहशतगर्दों से भारतवासी डरेंगे, क्योंकि छिपकर निहत्थे व निर्दोषों पर वार करने वालों को हमारे देश में कायर व कमजोर कहा जाता है। यदि इन कायरों में दम है तो सामने से वार करें, फिर देखना सीना तानने वालों की पहली लाइन में भारत के मुसलमान भाइयों की संख्या किसी से कम नहीं होगी।...बस एक बार जागने की देर है।