आतंकी साये में दहशतजदां हिन्‍दुस्‍तान...

उदय केसरी
हर रोज की तरह बुधवार की रात लगभग नौ-सवा नौ बजे ‘एडिटोरियल प्लस’ से घर के लिए निकला। घर पहुंचते ही आदतन लाइट जलाने के साथ ही टीवी का बटन भी हम दबा देते हैं...स्टार न्यूज पर मोटे अक्षरों में मुंबई में अज्ञात लोगों द्वारा फायरिंग की खबर आ रही थी...सिरफिरों की हरकत मान उस पर खास ध्यान नहीं दिया...न्यूज चैनल वाले भी शुरू में यही बोल रहे थे...पर यह क्या, कुछ ही पलों बाद जैसे ही आईबीएन-7 का बटन दबाया...तो यह खबर...कुछ बड़ी दिखने लगी...इस खबर में आईबीएन-7 के पास सबसे अधिक तस्वीरें व लाइव पीटीसी थे...सो नजर हैरत के साथ टीवी पर चिपक गई...हर पल खबर बड़ी होती जा रही थी...सिरफिरों की करामात आतंकी वारदात में और फायरिंग बम धमाकों में बदलने लगे...एक साथ मुंबई के कई जगहों से फायरिंग, बम धमाके और इससे हुई तबाही की खबरें आने लगीं...जैसे मुंबई को उठाकर आतंकियों ने बारूद के किसी ढेर पर रख दिया हो और किसी को पता तक नहीं चला...ऐसे भयावह हालात में दाद तो इस न्यूज चैनल के रिपोर्टरों व कैमरामैन की हिम्मत को देनी चाहिए, जिनकी आंखों से पूरे देश के ज्यादातर लोग पहली बार ऐसे दृश्‍य देख पाये होंगे...ये दृश्‍य विचलित करने वाले थे, पर मेरे विचार से अपने देश के लोगों को इसे दिखाना जरूरी है। इसकी जरूरत क्यों है? इसका जवाब मैं बाद में दूंगा।...ताज होटल में घुसे आतंकियों ने जब ग्रेनेड फेंका और उसकी आवाज टीवी के जरिये सुनी, तो स्तब्ध रह गया...ताज होटल के गुंबद से धुआं उठने लगा।...इसी बीच आईबीएन7 के एक रिपोर्टर के साथ कुछ मिनटों पहले हुआ एक वाक्या, जिसमें उसका सामना अचानक एक भागते हुए आतंकी से हो गया। आतंकी ने अपने अत्याधुनिक हथियार (संभवतः एके-47) की नाली उसके सिर पर टिका दी।...ईश्‍वर का शुक्र था कि प्रेस वाला बताने पर आतंकी एक झटके से उसे छोड़ भाग निकला। सोचिए! कैसा दहशत भरा वह पल होगा उस रिपोर्टर के लिए...लेकिन फिर भी वह रिपोर्टर, अपने काम पर लगा रहा।...दूसरे और भी रिपोर्टर घटनास्थलों के पास से पल-पल की खबरें व दृश्‍य बता व दिखा रहे थे...खबरें बोलते-बोलते रिपोर्टरों की सांसें फूल रही थीं...युद्ध स्थल से रिपोर्टिंग करना जितना खतरनाक होता है, उससे कम खतरनाक नहीं था इस बहुकोणीय आतंकी कार्रवाई की लाइव रिपोर्टिंग करना।...रात 10 से कब 12 बज गया पता भी नहीं चला...मुंबई की बेचारगी पर मन दुख से जब भर उठा, तो करीब 2 बजे टीवी बंद कर दिया...गुरुवार की सुबह उठते ही दूध लेने डेयरी की दुकान पहुंचा...वहां पड़े अखबार ‘पत्रिका’ पर नजर पड़ी... ‘मुंबई में आतंकी हमला, 78 मरे’, 200 से अधिक घायल, एटीएस प्रमुख सहित 9 पुलिसकर्मी शहीद...।

गुरुवार को भोपाल में 13वीं विधानसभा चुनाव के लिए मतदान था...यानी छुट्टी का दिन। मगर, मुंबईवासियों के लिए मातम मनाने का दिन...पुलिस व सेना के जवानों के लिए आतंकियों को खोजने, मारने और उनसे बदला लेने का दिन...और अवसरवादी नेताओं के लिए बयानबाजी करने का दिन... इस आतंकी हमले में आतंकवाद निरोधक दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक काम्टे और वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक विजय सालस्कर, जिन्होंने 100 से अधिक अपराधियों को विभिन्न मुठभेड़ों में मार गिराया था, ताज महल और ट्राइडेंट होटल में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गये।
वहीं इसमें सौ से अधिक लोगों की जानें गईं और 200 से अधिक लोग जख्मी हो गए। गुरुवार शाम तक आ रही खबरों के मुताबिक कई लोग अब भी होटल में फंसे हुए हैं और आतंकियों से पुलिस की मुठभेड़ जारी है।...

हाल के महीनों में देश की राजधानी, आर्थिक राजधानी समेत प्रमुख शहरों में एक के बाद एक बड़े आतंकी वारदातों से ऐसा नहीं लगता, कि भारत में भी कट्टरपंथी इस्लामिक देशों की सी हालत पैदा हो रही है...मुंबई की यह वारदात इराक, अफगानिस्तान और इजरायल आदि देशों में आये दिन होने वाली वारदातों जैसी है। कहा जा रहा है कि इस हमले में विदेशी या कहें पाकिस्तानी आतंकियों का हाथ है। इससे पहले, खबर यह भी निकली कि डेक्कन मुजाहिदीन ने एटीएस को ईमेल भेज कर इसकी जिम्मेदारी ली है। डेक्कन मुजाहिदीन क्या इंडियन मुजाहिदीन का सिक्वल है? दिल्ली समेत देश के कई शहरों को हाईअलर्ट कर दिया गया है।

लेकिन, इस मातम की घड़ी में एक बार फिर देश के सामने यह सवाल नहीं खड़ा हो जाता है- क्या भारत की सुरक्षा-व्यवस्था फेल हो चुकी है? यदि हां, तो हमें आतंकियों की हुकूमत में दहशत की जिन्दगी जीने के लिए अभी से ही खुद को तैयार करना शुरू कर देना चाहिए। या फिर अपने देश के निकम्मे व बुजदिल शासक राजनेताओं को घर बिठाकर युवाओं को आगे आने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।...नहीं तो...हिन्दुस्तान को इराक, अफगानिस्तान, इजरायल बनने से वर्तमान शासक व राजनेता रोक नहीं पायेंगे।

3 comments:

  1. आलेख का नतीजा क्या रहा? पता नहीं लगा।

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  2. हम जैसे नाकारा लोग जब तक इस देश में हैं , भारत माता की बदहाली और बदनसीबी का कोई अंत नहीं । जब भी कोई हादसा होता है , हम सब मिलकर रोते,चीखते-चिल्लाते स्यापा करते नज़र आते हैं ,लेकिन वक्त गुज़रने के साथ ही चील -गिद्धों की तरह देश को नोंचने खसोटने में मशगूल हो जाते हैं । उन्हीं नेताओं को बार -बार ला बिठाते हैं । यदि वाकई देश की ज़रा सी भी परवाह है ,तो कोई रास्ता सोचें और उस पर अमल का तरीका भी ....

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