उदय केसरी
भगवा आतंकवाद पर मैं पहली बार कुछ लिख रहा हूं। पिछले कई दिनों से टीवी व अखबारों में भगवा आतंकवाद के चेहरे के रूप में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, ले. कर्नल श्रीकांत पुरोहित और स्वामी अमृतानंद देव उर्फ सुधाकर द्विवेदी उर्फ दयानंद पांडेय को गिरफ्तार किया गया है। इन पर मालेगांव बम धमाके के अलावा समझौता एक्सप्रेस धमाके में भी शामिल होने या उनमें मास्टरमाइंड की भूमिका होने के आरोप लगाये जा रहे हैं।
ये आरोप किसी मुस्लिम संगठन या भाजपा या भगवा विरोधी राजनीतिक दल या नेता ने नहीं लगाये हैं, बल्कि जांच-पड़ताल के आधार पर देश के आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) द्वारा लगाये जा रहे हैं। एटीएस की जांच में पिछले कुछ दिनों से लगातार नये-नये राजफाश के दावे किये जा रहे हैं। इस खोज में एक तरफ एटीएस के धुरंधर अफसरों की टीम सक्रिय है, तो दूसरी तरफ मीडिया खासकर न्यूज चैनलों के धुरंधर पत्रकार लगे हुए हैं। इसलिए भगवा आतंकवाद का राजफाश करने की एटीएस व मीडिया में होड़ सी मची है। मीडिया कभी एटीएस की वाहवाही करता है, तो कभी उसे झूठा करार देता है। वहीं, एटीएस भी अपनी किसी गलती को मानने के बजाय शातिर नेताओं की तरह अपने बयान से पलटने में भी देरी नहीं करती। खैर, इस जांच-पड़ताल व खोज की होड़ में सच क्या है और गलत क्या है, इसका औपचारिक फैसला तो न्यायालय करेगा।
लेकिन, फिलहाल अनौपचारिक सच या आमजन में भगवा आतंकवाद को लेकर उठते सवालों व उनमें बनती-बिगड़ती धारणा ज्यादा विचारणीय है। जिस तरह मुस्लिम समुदाय के बीच आतंकवाद का बीजारोपण करने वाले कुछ विध्वंसक प्रवृत्ति के लोगों ने धर्म के नाम पर जेहाद का हथकंडा अपनाया और आतंकवाद का इस कदर विस्तार किया कि पूरी दुनिया में आतंकवाद मुस्लिम समुदाय का पर्याय सा बन गया । यही नहीं, जिन देशों में आतंकी वारदातों को अंजाम दिया गया, वहां तो हर मुस्लिम को उस देश के लोग शक की नजर से देखने लगे हैं। लंदन और अमेरिका इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है। इसी तरह अब कुछ विध्वंसक प्रवृत्ति के लोगों द्वारा हिन्दू समुदाय के बीच भगवा आतंकवाद का विस्तार करने की कोशिश की जा रही है।
भगवा आतंकवाद, हालांकि फिलहाल आमजन के लिए नया व चैंकाने वाला है, पर इसकी जड़ों को बहुत पहले से विध्वंसक तत्वों व संगठनों द्वारा खाद-पानी दिया जाता रहा है। धर्मपरिवर्तन, सांस्कृतिक संक्रमण, हिन्दू राष्ट्र, मंदिर-मस्जिद, बहुसंख्यकवाद आदि के नाम पर कारसेवा तो दंगा-फसाद चलाया जाता रहा है। पर, बम विस्फोट और तथाकथित इस्लामी आतंकवाद के नक्शे-कदम पर भगवा आतंकवाद का विस्तार किया जाना वाकई में देश व दुनिया के उदार व शांतिप्रिय हिन्दुओं के लिए चैंकाने वाला है। और यदि यह कहें कि हिन्दुत्व के नाम पर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से राजनीति करने वाले संगठनों से दूर भारत समेत दुनिया के अधिकतर हिन्दू भगवा आतंकवाद के पक्षधर नहीं हो सकते, तो शायद गलत नहीं होगा। क्योंकि हिन्दू धर्म में कट्टरता व हिंसा का कोई स्थान नहीं। यहां तो उदारता व सहिष्णुता सर्वोच्च है।
लेकिन जैसे मुस्लिम समुदाय में अन्य धर्मों के खिलाफ नफरत के बीज बोये गए, उसी तरह हिन्दू समुदाय के बीच दूसरे धर्मों के खिलाफ नफरत भरना आसान नहीं है। वजह एक नहीं अनेक हैं। अन्यथा कम से कम भारत के तमाम हिन्दू आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल आदि के सदस्य होते। 1925 में गठित आरएसएस की उम्र 83 साल हो चुकी है, पर अब तक इसके सक्रिय सदस्यों की संख्या लगभग 45 लाख है, जबकि देश की पूरी आबादी में 80.5 फीसदी यानी करीब 85 करोड़ लोग हिन्दू हैं। और फिर आरएसएस, जो कट्टर हिन्दूवादियों का सबसे बड़ा संगठन है, के सक्रिय कार्यकर्ताओं की संख्या जितनी ही संख्या बाकी कट्टर हिन्दूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं की भी मान लें, तो भी आठ दशक से अधिक के कालखंड में ये हिन्दूवादी संगठन अपने ही धर्मभाइयों को प्रभावित कर पाने में क्यों सफल नहीं हुए हैं? जवाब साफ है, हिन्दू संस्कार वृहद मानसिकता का निर्माण करता है, न कि संकीर्ण व विध्वंसक। मुस्लिम समुदाय में भी निर्दोषों के खून बहाने और अमानवीय व्यवहार की मनाही है, पर धर्म के प्रति आस्था में नियमों व मौलानाओं के हुक्मों की सख्ती उदारता को बहुत करीब आने नहीं देती। फिर, अशिक्षा, खान-पान व गरीबी के कारण वे हमेशा नफरत के सौदागरों के लिए नरम चारा होते हैं। तभी तो, वे रुपये के वास्ते आत्मघाती बम बनने तक के लिए तैयार हो जाते हैं।
फिर भी, भगवा आतंकवाद के जहर का पता चलना चिंता का विषय है। हिन्दू आबादी के उदार व शांतिप्रिय संस्कार के भरोसे ही हम इससे बेपरवाह नहीं हो सकते। देश व दुनिया के हिन्दुओं को ही ऐसे आतंकी तत्वों के खिलाफ धर्म की मर्यादा के खातिर विरोध का स्वर बुलंद करना चाहिए, जो हिन्दुत्व के नाम पर असल हिदुत्व की हत्या करने की कोशिश कर रहे हैं।
भगवा आतंकवाद पर मैं पहली बार कुछ लिख रहा हूं। पिछले कई दिनों से टीवी व अखबारों में भगवा आतंकवाद के चेहरे के रूप में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, ले. कर्नल श्रीकांत पुरोहित और स्वामी अमृतानंद देव उर्फ सुधाकर द्विवेदी उर्फ दयानंद पांडेय को गिरफ्तार किया गया है। इन पर मालेगांव बम धमाके के अलावा समझौता एक्सप्रेस धमाके में भी शामिल होने या उनमें मास्टरमाइंड की भूमिका होने के आरोप लगाये जा रहे हैं।
ये आरोप किसी मुस्लिम संगठन या भाजपा या भगवा विरोधी राजनीतिक दल या नेता ने नहीं लगाये हैं, बल्कि जांच-पड़ताल के आधार पर देश के आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) द्वारा लगाये जा रहे हैं। एटीएस की जांच में पिछले कुछ दिनों से लगातार नये-नये राजफाश के दावे किये जा रहे हैं। इस खोज में एक तरफ एटीएस के धुरंधर अफसरों की टीम सक्रिय है, तो दूसरी तरफ मीडिया खासकर न्यूज चैनलों के धुरंधर पत्रकार लगे हुए हैं। इसलिए भगवा आतंकवाद का राजफाश करने की एटीएस व मीडिया में होड़ सी मची है। मीडिया कभी एटीएस की वाहवाही करता है, तो कभी उसे झूठा करार देता है। वहीं, एटीएस भी अपनी किसी गलती को मानने के बजाय शातिर नेताओं की तरह अपने बयान से पलटने में भी देरी नहीं करती। खैर, इस जांच-पड़ताल व खोज की होड़ में सच क्या है और गलत क्या है, इसका औपचारिक फैसला तो न्यायालय करेगा।
लेकिन, फिलहाल अनौपचारिक सच या आमजन में भगवा आतंकवाद को लेकर उठते सवालों व उनमें बनती-बिगड़ती धारणा ज्यादा विचारणीय है। जिस तरह मुस्लिम समुदाय के बीच आतंकवाद का बीजारोपण करने वाले कुछ विध्वंसक प्रवृत्ति के लोगों ने धर्म के नाम पर जेहाद का हथकंडा अपनाया और आतंकवाद का इस कदर विस्तार किया कि पूरी दुनिया में आतंकवाद मुस्लिम समुदाय का पर्याय सा बन गया । यही नहीं, जिन देशों में आतंकी वारदातों को अंजाम दिया गया, वहां तो हर मुस्लिम को उस देश के लोग शक की नजर से देखने लगे हैं। लंदन और अमेरिका इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है। इसी तरह अब कुछ विध्वंसक प्रवृत्ति के लोगों द्वारा हिन्दू समुदाय के बीच भगवा आतंकवाद का विस्तार करने की कोशिश की जा रही है।
भगवा आतंकवाद, हालांकि फिलहाल आमजन के लिए नया व चैंकाने वाला है, पर इसकी जड़ों को बहुत पहले से विध्वंसक तत्वों व संगठनों द्वारा खाद-पानी दिया जाता रहा है। धर्मपरिवर्तन, सांस्कृतिक संक्रमण, हिन्दू राष्ट्र, मंदिर-मस्जिद, बहुसंख्यकवाद आदि के नाम पर कारसेवा तो दंगा-फसाद चलाया जाता रहा है। पर, बम विस्फोट और तथाकथित इस्लामी आतंकवाद के नक्शे-कदम पर भगवा आतंकवाद का विस्तार किया जाना वाकई में देश व दुनिया के उदार व शांतिप्रिय हिन्दुओं के लिए चैंकाने वाला है। और यदि यह कहें कि हिन्दुत्व के नाम पर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से राजनीति करने वाले संगठनों से दूर भारत समेत दुनिया के अधिकतर हिन्दू भगवा आतंकवाद के पक्षधर नहीं हो सकते, तो शायद गलत नहीं होगा। क्योंकि हिन्दू धर्म में कट्टरता व हिंसा का कोई स्थान नहीं। यहां तो उदारता व सहिष्णुता सर्वोच्च है।
लेकिन जैसे मुस्लिम समुदाय में अन्य धर्मों के खिलाफ नफरत के बीज बोये गए, उसी तरह हिन्दू समुदाय के बीच दूसरे धर्मों के खिलाफ नफरत भरना आसान नहीं है। वजह एक नहीं अनेक हैं। अन्यथा कम से कम भारत के तमाम हिन्दू आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल आदि के सदस्य होते। 1925 में गठित आरएसएस की उम्र 83 साल हो चुकी है, पर अब तक इसके सक्रिय सदस्यों की संख्या लगभग 45 लाख है, जबकि देश की पूरी आबादी में 80.5 फीसदी यानी करीब 85 करोड़ लोग हिन्दू हैं। और फिर आरएसएस, जो कट्टर हिन्दूवादियों का सबसे बड़ा संगठन है, के सक्रिय कार्यकर्ताओं की संख्या जितनी ही संख्या बाकी कट्टर हिन्दूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं की भी मान लें, तो भी आठ दशक से अधिक के कालखंड में ये हिन्दूवादी संगठन अपने ही धर्मभाइयों को प्रभावित कर पाने में क्यों सफल नहीं हुए हैं? जवाब साफ है, हिन्दू संस्कार वृहद मानसिकता का निर्माण करता है, न कि संकीर्ण व विध्वंसक। मुस्लिम समुदाय में भी निर्दोषों के खून बहाने और अमानवीय व्यवहार की मनाही है, पर धर्म के प्रति आस्था में नियमों व मौलानाओं के हुक्मों की सख्ती उदारता को बहुत करीब आने नहीं देती। फिर, अशिक्षा, खान-पान व गरीबी के कारण वे हमेशा नफरत के सौदागरों के लिए नरम चारा होते हैं। तभी तो, वे रुपये के वास्ते आत्मघाती बम बनने तक के लिए तैयार हो जाते हैं।
फिर भी, भगवा आतंकवाद के जहर का पता चलना चिंता का विषय है। हिन्दू आबादी के उदार व शांतिप्रिय संस्कार के भरोसे ही हम इससे बेपरवाह नहीं हो सकते। देश व दुनिया के हिन्दुओं को ही ऐसे आतंकी तत्वों के खिलाफ धर्म की मर्यादा के खातिर विरोध का स्वर बुलंद करना चाहिए, जो हिन्दुत्व के नाम पर असल हिदुत्व की हत्या करने की कोशिश कर रहे हैं।
कौन से भगवा आतंकवाद की बात कर रहे हो?
ReplyDeleteमहाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने सिर्फ वोटों के लालच में दो काम किये, इसी साल जनवरी में मुम्बई एटीएस में हेमन्त करकरे की नियुक्ति की और राज ठाकरे को आगे किया.
भगवा आतंकवाद का हल्ला काटकर मुस्लिम वोतों के समाजवादी पार्टी से अपने काबू में करना था. बाटला कांड के बाद समाजवादी पार्टी के दलालों ने मुस्लिम वोट पर कब्जा कर लिया था इससे महारानी और इसके चंगू मंगू परेशान थे. राजठाकरे का नाम लेकर बालठाकरे के वोटों को बंटवांना था.
जब वोट की फसल कट जायेगी तब आज जिन्हें भगवा आतंकवादी कहा जा रहा है, सभी निर्दोष साबित हो जायेंगे, जैसे तमिलनाडू में स्वामी जयेन्द्र सरस्वती निर्दोष सिद्ध हुये थे. उस समय सभी चैनलवालों ने अपने स्वार्थवश कैसा गदर मचाया था.
लेकिन ये पब्लिक है, सब जानती है
भगवा आतंकवाद पहले साबित तो होने दीजिये | अभी तो कांग्रेस प्रायोजित हास्यस्पद जाँच चल रही है आगे देखते जाए कब तक ये ड्रामा चलता है |
ReplyDeleteआप किस भगवा आतंकवाद की बात कर रहे हैं? जिस जाँच की जन्मदाता काँग्रेस ने वोटों के लिये 2006 की रिपोर्ट पर जाँच चुनवी वर्ष में शुरु करवाई।
ReplyDeleteजहाँ तक किसी संगठन के कार्यकर्ताओं की संख्या का प्रश्न है, काँग्रेस आर एस एस से भी पुरानी है, क्या उसके कार्यकर्ताओं की संख्या आर एस एस से ज्यादा है???
रहा प्रश्न भगवा आतंकवाद का तो कृपया प्रतिक्रियावादी घटनओं को साम्प्रदायिक रंग न ही दिया जाये तो राष्ट्र की सम्प्रभुता एवम् अखण्डता के लिये अच्छा होगा।
बेसिर-पैर की हाँकते, उदय केसरी यार.
ReplyDeleteकुछ तो सोचो इस तरह, करते किस पर वार.
करते किस पर वार, तेरे रक्षक वे सारे.
जिन्हें फ़साया दुष्ट तन्त्र ने, वोट के मारे.
कह साधक इस तन्त्र से ज्यादा तुम दोषी हो.
बिना विचारे लिखते, जैसे बेहोशी हो.
बात बिल्कुल सही है मैंने अख़बार में आतंकवादी सूची देखी थी उश्मे एक भी नाम हिंदू का नही था
ReplyDeleteहिंदू धर्म किसी भी जीब की बिना अपराध हत्या को पाप मानता है अता किसी भी प्रकार का आतंकबाद पाप है
ReplyDeleteअगर यही बात हैं तो शंकराचार्य के बारे में आप क्या क्या कहेंगे , जिन्होंने हिन्दू धर्म के प्रचार के लिए पुरे बौध समुदाय को मध्य भारत से कटवा दिया था.. तब क्यों नहीं अहिंसा की बात कही गयी..?
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