अब किस आतंकी हमले का इंतजार है?
उदय केसरी
अब बहुत हो गया...केवल यह कहकर कि अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा या अब आर-पार की लड़ाई होकर रहेगी आदि-आदि शासकीय जुमलों से काम नहीं चलेगा। इन जुमलों के अंदर के भीरूपन को अब आम भारतीय ही नहीं, विदेशी आतंकवादी भी समझने लगे हैं। प्रधानमंत्री साहब अब कुछ कहने के बजाय तत्काल कुछ करने की जरूरत है। तत्काल जरूरत है कि भारतीय सेना को यह आदेश दिया जाए कि वह बिना देर किये पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर हमला बोल दें। (जो असल में हमारी ही जमीन है) जहां भारत के अमन के दुश्मन हजारों आतंकवादी सालों से अड्डा जमाकर हमारे खिलाफ खुद को तैयार कर रहे हैं। वहीं से मुंबई पर हमले के लिए खूंखार आतंकी भेजे गए। विश्व के दूसरे सबसे बड़े लोकतंत्र की शान को तहस-नहस करने में इन आतंकियों ने अब कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है।...
...तो आखिर कब तक भारत आतंकियों के हमलों को अपनी बदनसीबी मानकर भूलता रहेगा...संसद पर हमला, देश की राजधानी पर बार-बार हमला, देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर एक से अधिक बार हमला, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, असम पर हमले...अब किस आतंकी हमले का इंतजार है भारत को जवाब देने के लिए...जबकि ये तो हाल के हमले हैं। इन दहशतगर्दों ने भारत के सिरमौर कश्मीर पर तो सालों आतंक के गोले बरसाये हैं।
यदि भारतीय सरकार को हमले से देश की प्रगति और विश्व समुदाय में अपनी प्रतिष्ठा पर बुरा असर पड़ने की आशंका है, तो दुनिया का सबसे बड़े व्यावसायिक देश अमेरिका से भारत को थोड़ी सीख लेनी चाहिए, जहां 9/11 के बाद ताबड़तोड़ आतंक विरोधी अमेरिकी कार्रवाई से न उस देश की प्रगति रूकी और न ही उसकी प्रतिष्ठा पर कोई असर पड़ा है, बल्कि उस घटना के सात साल बाद भी कोई भी आतंकी संगठन अमेरिका के खिलाफ दोबारा किसी कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पाया। यही नहीं, सात सालों बाद भी अमेरिका का आतंकवाद विरोधी अभियान अब भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के उत्तरी कबायली इलाकों में जारी है। इससे आतंकवादियों के बीच अमेरिकी खौफ का अंदाजा लगाया जा सकता है।...तो फिर भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता ?...यदि भारत आतंक विरोधी अमेरिकी हमलों के खिलाफ है, तो फिर भारत को अमेरिका से किसी भी तरह की दोस्ती (परमाणु करार भी) नहीं करनी चाहिए।
दरअसल, ऐसी कोई समस्या नहीं है। समस्या यहां की सत्ता चलाने वाले नेताओं की सोच में है, जो देश और अपने निजी घर को एक नजर से कभी देख नहीं पाते। जब उनके घरों में आतंकी घुसकर तबाही मचाने लगे तभी उन्हें देश के किसी हिस्से में आतंकियों से होने वाली तबाही का दर्द महसूस होगा। यदि ऐसा नहीं होता...तो अपने देश को 1999 में कंधार विमान अपहरण जैसा शर्मनाक मामला नहीं देखना पड़ता। नवभारत टाइम्स डॉट कॉम पर प्रकाशित एक आलेख में श्री प्रदीप कुमार की पंक्तियां यहां उल्लेखनीय है कि भारत के दुश्मनों को यकीन हो चुका है कि भारत की राज्यसत्ता में उन्हें तबाह कर डालने का संकल्प नहीं है। गहन प्लानिंग, स्थानीय समर्थन और सटीक भौगोलिक जानकारी के बगैर 26 नवंबर जैसे हमले नहीं हो सकते। स्थानीय और राष्ट्रीय खुफिया तंत्र को इस सबकी भनक तक नहीं लगी। सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी स्पष्ट है। लेकिन क्या इसके लिए केवल वही जिम्मेदार हैं? इस प्रश्न का उत्तर बहुत ईमानदारी से तलाश नहीं किया गया, तो आतंकवादियों का काम लगातार आसान होता रहेगा। हर हादसे के बाद खुफिया एजेंसियों पर उंगली उठाने, प्रशासन को निकम्मा साबित करने और बलि के बकरों की तलाश करते रहने से बीमारी लाइलाज बनी रहेगी। पिछले करीब दो महीने से मुंबई पुलिस वह काम ठीक तरह से नहीं कर रही थी, जो उसे अच्छी तरह केंद्रित होकर करना चाहिए। मराठी-गैर मराठी विवाद की आग भड़काई गई। मालेगांव विस्फोट में एटीएस की कार्रवाई पर राजनीति होने लगी। एटीएस का काम जिनके प्रतिकूल जा रहा था, वे उसकी नीयत पर सरेआम शक करने लगे। उसी एटीएस पर, जिसका चीफ हेमंत करकरे 26 नवंबर को आतंकवादियों से लड़ने के लिए बेधड़क दौड़ पड़ा और बहादुरी के साथ आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गया।
कहने का आशय है कि भारत में राष्ट्रहित से उपर पार्टी और राजनीतिक हित हो चुके हैं। इसलिए सिमी को साथ देने या भगवा आतंकवाद को बढ़ावा देने में जब देश के राजनेताओं को शर्म नहीं आती है, तो विदेशी आतंकियों के हमले से क्या उनका दिल दहलेगा?
बहरहाल, देश के प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह से मेरा आग्रह है कि अब कुछ ही महीने में लोकसभा चुनाव होना है, जिसके बाद पता नहीं आप दोबारा प्रधानमंत्री बने या न बने...इसलिए सत्ता के इस आखिर घड़ी में देश के दुश्मनों के खिलाफ पीओके पर हमले का फैसला करके आप कम से कम एक ऐसा काम करते जाएं, जिससे भारत को भी अपनी ताकत दिखाने का मौका मिले और उसे कमजोर समझने वाले मुट्ठी भर आतंकियों को जीवनभर के लिए सबक सिखाया जा सके...कि भारत को केवल मरना या बचाव करना ही नहीं, घुसकर मारना भी आता है...ताकि आतंक में मरे सौकड़ों निर्दोषों की आत्मा को शांति मिले और तमाम भारतीयों का सीना गर्व से चैड़ा हो जाए...
उदय केसरी
अब बहुत हो गया...केवल यह कहकर कि अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा या अब आर-पार की लड़ाई होकर रहेगी आदि-आदि शासकीय जुमलों से काम नहीं चलेगा। इन जुमलों के अंदर के भीरूपन को अब आम भारतीय ही नहीं, विदेशी आतंकवादी भी समझने लगे हैं। प्रधानमंत्री साहब अब कुछ कहने के बजाय तत्काल कुछ करने की जरूरत है। तत्काल जरूरत है कि भारतीय सेना को यह आदेश दिया जाए कि वह बिना देर किये पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर हमला बोल दें। (जो असल में हमारी ही जमीन है) जहां भारत के अमन के दुश्मन हजारों आतंकवादी सालों से अड्डा जमाकर हमारे खिलाफ खुद को तैयार कर रहे हैं। वहीं से मुंबई पर हमले के लिए खूंखार आतंकी भेजे गए। विश्व के दूसरे सबसे बड़े लोकतंत्र की शान को तहस-नहस करने में इन आतंकियों ने अब कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है।...
...तो आखिर कब तक भारत आतंकियों के हमलों को अपनी बदनसीबी मानकर भूलता रहेगा...संसद पर हमला, देश की राजधानी पर बार-बार हमला, देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर एक से अधिक बार हमला, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, असम पर हमले...अब किस आतंकी हमले का इंतजार है भारत को जवाब देने के लिए...जबकि ये तो हाल के हमले हैं। इन दहशतगर्दों ने भारत के सिरमौर कश्मीर पर तो सालों आतंक के गोले बरसाये हैं।
यदि भारतीय सरकार को हमले से देश की प्रगति और विश्व समुदाय में अपनी प्रतिष्ठा पर बुरा असर पड़ने की आशंका है, तो दुनिया का सबसे बड़े व्यावसायिक देश अमेरिका से भारत को थोड़ी सीख लेनी चाहिए, जहां 9/11 के बाद ताबड़तोड़ आतंक विरोधी अमेरिकी कार्रवाई से न उस देश की प्रगति रूकी और न ही उसकी प्रतिष्ठा पर कोई असर पड़ा है, बल्कि उस घटना के सात साल बाद भी कोई भी आतंकी संगठन अमेरिका के खिलाफ दोबारा किसी कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पाया। यही नहीं, सात सालों बाद भी अमेरिका का आतंकवाद विरोधी अभियान अब भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के उत्तरी कबायली इलाकों में जारी है। इससे आतंकवादियों के बीच अमेरिकी खौफ का अंदाजा लगाया जा सकता है।...तो फिर भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता ?...यदि भारत आतंक विरोधी अमेरिकी हमलों के खिलाफ है, तो फिर भारत को अमेरिका से किसी भी तरह की दोस्ती (परमाणु करार भी) नहीं करनी चाहिए।
दरअसल, ऐसी कोई समस्या नहीं है। समस्या यहां की सत्ता चलाने वाले नेताओं की सोच में है, जो देश और अपने निजी घर को एक नजर से कभी देख नहीं पाते। जब उनके घरों में आतंकी घुसकर तबाही मचाने लगे तभी उन्हें देश के किसी हिस्से में आतंकियों से होने वाली तबाही का दर्द महसूस होगा। यदि ऐसा नहीं होता...तो अपने देश को 1999 में कंधार विमान अपहरण जैसा शर्मनाक मामला नहीं देखना पड़ता। नवभारत टाइम्स डॉट कॉम पर प्रकाशित एक आलेख में श्री प्रदीप कुमार की पंक्तियां यहां उल्लेखनीय है कि भारत के दुश्मनों को यकीन हो चुका है कि भारत की राज्यसत्ता में उन्हें तबाह कर डालने का संकल्प नहीं है। गहन प्लानिंग, स्थानीय समर्थन और सटीक भौगोलिक जानकारी के बगैर 26 नवंबर जैसे हमले नहीं हो सकते। स्थानीय और राष्ट्रीय खुफिया तंत्र को इस सबकी भनक तक नहीं लगी। सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी स्पष्ट है। लेकिन क्या इसके लिए केवल वही जिम्मेदार हैं? इस प्रश्न का उत्तर बहुत ईमानदारी से तलाश नहीं किया गया, तो आतंकवादियों का काम लगातार आसान होता रहेगा। हर हादसे के बाद खुफिया एजेंसियों पर उंगली उठाने, प्रशासन को निकम्मा साबित करने और बलि के बकरों की तलाश करते रहने से बीमारी लाइलाज बनी रहेगी। पिछले करीब दो महीने से मुंबई पुलिस वह काम ठीक तरह से नहीं कर रही थी, जो उसे अच्छी तरह केंद्रित होकर करना चाहिए। मराठी-गैर मराठी विवाद की आग भड़काई गई। मालेगांव विस्फोट में एटीएस की कार्रवाई पर राजनीति होने लगी। एटीएस का काम जिनके प्रतिकूल जा रहा था, वे उसकी नीयत पर सरेआम शक करने लगे। उसी एटीएस पर, जिसका चीफ हेमंत करकरे 26 नवंबर को आतंकवादियों से लड़ने के लिए बेधड़क दौड़ पड़ा और बहादुरी के साथ आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गया।
कहने का आशय है कि भारत में राष्ट्रहित से उपर पार्टी और राजनीतिक हित हो चुके हैं। इसलिए सिमी को साथ देने या भगवा आतंकवाद को बढ़ावा देने में जब देश के राजनेताओं को शर्म नहीं आती है, तो विदेशी आतंकियों के हमले से क्या उनका दिल दहलेगा?
बहरहाल, देश के प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह से मेरा आग्रह है कि अब कुछ ही महीने में लोकसभा चुनाव होना है, जिसके बाद पता नहीं आप दोबारा प्रधानमंत्री बने या न बने...इसलिए सत्ता के इस आखिर घड़ी में देश के दुश्मनों के खिलाफ पीओके पर हमले का फैसला करके आप कम से कम एक ऐसा काम करते जाएं, जिससे भारत को भी अपनी ताकत दिखाने का मौका मिले और उसे कमजोर समझने वाले मुट्ठी भर आतंकियों को जीवनभर के लिए सबक सिखाया जा सके...कि भारत को केवल मरना या बचाव करना ही नहीं, घुसकर मारना भी आता है...ताकि आतंक में मरे सौकड़ों निर्दोषों की आत्मा को शांति मिले और तमाम भारतीयों का सीना गर्व से चैड़ा हो जाए...
POK me attack karne se kya milega? Pakistan ka aisa kaun sa part hai jahan terrorists nahin hai. I don't think now those are under control of Pakist also. Now probably Pakistan may ask help from India to control terrorism. Do you remember when 500KG of RDX was exploded in Mariiat hotel in Pakistan couple of months back.
ReplyDeleteFirst India should handle the terrorists inside country. They should have done speedy trial and hang them if they are guilty. Terrorists should have nightmare to get caught alive in India. Afjal is enjoying in Tihar Jail. Abu Salem is planning to contest election. Mumbai is fully controlled by underworld dons. All encounter specialists in Mumbai are multi millionaire.
bahut hi sahi baat hai, akhier kab tak sahte rahenge ||
ReplyDeletesalon ko ghus kar hi marna hoga tabhi inke samjh me ayega......
bhagawan is napunsak sarkar aur bhadwe rajnitigyo ko kuch himmat aur akkal de...........
asamajik bhasha ke liye chhama chahunga par main khud ko rok nahi sakta. asha hai aap ko bura nahi lagega.
जिहाद के नाम पर ये फैलाता है जूनून
ReplyDeleteमासूमों का खून बहाकर पाक को सुकून
आप भी, अपना आक्रोश व्यक्त करे
http://wehatepakistan.blogspot.com/
यह शोक का दिन नहीं,
ReplyDeleteयह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
- कविता वाचक्नवी
साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
बिल्कुल मेरे मन की बात कह डाली है आपने और बिल्कुल यही होना चाहिए -हम समय गवां रहे हैं !
ReplyDeleteयह समय है कश्मीरी आतंकी ट्रेनिंग कैम्पों पर बिना समय गवाए पूरी शक्ति के साथ सैन्य कार्यवाही का ! एक मुक्तिवाहनी सेना के हस्तक्षेप की !
आप सही कह रहे है. अब बहुत हो चुका ही.. भारत को हमला कर देना चाहिए....aakhir kab tak ham aatankvad ka dans jhelte rahegen...aakhir hamari bhi koi seema है ab hame aur nahi intjar karna chahiye
ReplyDeleteबेवकूफी भरी बात है।
ReplyDeleteyadi in...(gali)...netaon ke bas mein kuch hota to aaj ye din dekhna hi na padta. par inhe chunkar bhejte to aap aur hum jaisey(........) hi hain.
ReplyDeleteभैये दस्त कराओगे क्या प्राइम मिनिस्टर को ...वैसे भी उनको नींद की बीमारी है
ReplyDeleteपाकिस्तान भी उसी तरह आतंकवाद से पीड़ित है जैसे भारत. अब वक्त आ गया है कि भारत पाकिस्तान मिलकर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करें. न कि एक देश दूसरे देश के खिलाफ. लेकिन क्या करिएगा. आप ही नहीं विदेश मंत्री भी ऐसी ही बचकानी बातें कर रहे हैं. अगर एक दूसरे देश पर आरोप प्रत्यारोप का दौर चला तो हम आंतकवाद के खिलाफ सामूहिक लड़ाई का एक अच्छा मौका चूक जाएंगे.
ReplyDeleteहमारा देश राजनीतिक ईच्छाशक्ति मे सचमुच नपुंसक ही साबित हुआ है
ReplyDeleteआपका कहना सही है की हमें ९/११ से सबक लेना चाहिए .....तभी हमारी ताकत गैरो को पता चलेगी ......
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