यह आलेख लिखने से पहले मन में कई बार आया कि इस मुद्दे पर नहीं लिखा जाना चाहिए... क्योंकि राम सेना प्रमुख प्रमोद मुतालिक और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे जैसे देश के सफेदपोश आतंकी यही चाहते हैं कि बस मीडिया में उनका प्रचार होता रहे, वह चाहे उनकी आलोचना, निंदा, भर्त्सना के रूप में ही क्यों न हो।...फिर भी मन नहीं माना। सोचा, जैसे 26/11 की घटना के बाद बाहरी आतंकी हमलों व आंतरिक सुरक्षा पर देश के नेताओं के निराशाजनक रवैये के खिलाफ पूरे देश की जनता के व्यापक रोष ने सत्तासीन नेताओं के होश उड़ा दिये। वैसे ही, घर के सफेदपोश आतंकियों के खिलाफ कभी-न-कभी जरूर जनता सड़क पर उतरेगी और तब इन घर के आतंकियों को हमेशा-हमेशा के लिए ‘बड़े-घर’ पहुंचा दिया जाएगा।
सवाल यह भी है कि ऐसे सफेदपोश आतंकियों के समर्थक भी तो हैं। चाहें वे जितनी भी संख्या में हों, पर हैं तो, तभी तो मुतालिक व राज के नापाक इरादों को अंजाम दिया जाता है। आखिर उन्हें राम धर्म और भारतीय संस्कृति की कौन सी घुट्टी पिलाई गई है कि वे मर्यादा पुरोषोत्तम के नाम पर अमर्यादा की सारी हदें पार कर रहे हैं। विविधता में एकता वाली भारतीय संस्कृति और नृत्य-संगीत व प्रेम के उत्कृष्ट मूल्यों से अटी भारतीय परंपरा को भूलकर मंगलोर शहर के एमनीशिया पब में युवतियों के साथ मारपीट की जाती है। प्रेम के प्रतीक वेलेंटाइन-डे पर प्रेमी-युगलों को खदेड़ा जाता है।...यदि इन सब का कोई मानवीय आधार नहीं है, तो यह कहना गलत नहीं है कि जैसे अफगानिस्तान व पाकिस्तान के वजीरिस्तान व बलुचिस्तान में तालिबान इस्लाम के नाम पर मुस्लिमों पर अत्याचार कर रहा है, वैसी ही कोशिश भारत में ये हिन्दुत्व के कथित ठेकेदार कर रहे हैं, जिन्हें हिन्दू तालिबान कहना भी गलत न होगा।
मुंबई पर 26/11 को बाहरी आतंकियों के हमले के दौरान राज के आतंकी आंख-कान बंद कर गहरी नींद में सोये हुए थे। देश के लगभग मोबाइल यूजर द्वारा तब राज को बुरी तरह से ललकराने वाले एसएमएस मिले, पर राज ठाकरे की नींद नहीं खुली। अब उसकी नींद 26/11 के दो महीने बाद टूटी है, उसी गैर-मराठी के जहरीले अलाप के साथ। गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर नासिक के एक स्कूल में चल रहे भोजपुरी कार्यक्रम में मनसे कार्यकर्ताओं ने तोड़फोड़ व मारपीट की। इस दौरान उन्होंने मुंबई हमले में शहीद हुए सेना व पुलिस के जवानों की तस्वीरों को भी नहीं बख्सा। चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ करते हुए मनसे के आतंकी मुंबई हमले के दौरान बाहरी आतंकी भाइयों के समर्थन में पहले सोये रहे और अब बाहरी आतंकियों का दहशत कम होता देख, फिर से दहशत फैलाना शुरू कर दिये हैं।
दरअसल, ऐसे सफेदपोश घर के आतंकियों का कोई धर्म-ईमान नहीं होता। होती है, तो बस दहशत की राजनीति, जिसके बल पर वह सत्ता में आना चाहते हैं।...ऐसे सफेदपोशों को धर्म के नाम पर लोगों को गुमराह करना खूब आता है।...धर्म के प्रति अगाध आस्था रखने वाली देश की जनता की अस्था का ऐसे नेता नाजायज फायदा उठाते हैं। ऐसे सफेदपोशों के निशाने पर गरीबी व बेरोजगारी से विवश लोग भी होते हैं, जिन्हें वे आसानी से नफरत से भरे भाषावाद व क्षेत्रवाद की घुट्टी पिलाने में कामयाब हो जाते हैं।...मगर इसका बुरा नतीजा भी उसी गरीब व बेरोजगार तपके को भुगतना पड़ता है।...