उम्मीदें तो हम कर ही सकते हैं कि आने वाला साल सबके लिए सुकूनभरा और प्रगति के पहिये पर सवार हो, पर बीते साल ने एक के बाद एक जो जख़्म दिये हैं, उसे अगले एक साल में भूलना मुश्किल होगा...पर क्या यह भी हम पूरे विश्वास से कह सकते हैं। हम भारत के लोगों की सहनशीलता जख्म सहते-सहते काफी मजबूत हो चुकी है। इसलिए यह कहना भी अप्रासंगिक हो सकता है कि नये वर्ष का जश्न न मनाया जाए।...
खैर, सीधीबात के लिए सक्रिय एडिटोरियल प्लस डेस्क के सभी पत्रकार साथियों के तरफ से मैं पत्रकार मीतेन्द्र नागेश ‘ पत्थर नीलगढ़ी’ की इस कविता के साथ आप तमाम ब्लॉगर बंधुओं, बुद्धिजीवियों व संवेदनशील पाठकों को अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं:
किस तरहां से दूं
नववर्ष की शुभकामनाएं।
जब मैं दे रहा होऊंगा,
नववर्ष की शुभकामनाएं
तो,
मेरी आंखों में तुम्हें चमक नहीं,
दिखेंगे खून के आंसू।
मेरे चहरे पर उत्साह नहीं,
दिखेगा तैरता हुआ खौफ।
मेरे होंठ संकोच से
कांप रहे होंगे।
मेरी जुबां लड़खड़ा रही होगी।
गर गले मिलने का साहस भी जुटा पाया
तो,
शायद खुद को तुममें
छुपाने का प्रयास ही होगा
क्योंकि अभी-अभी
देखा है मैंने निदोर्षों का लहू
जमीं पर गिरता हुआ।
मैंने सुनी हैं चीखें,
मौत से जूझती हुई।
मैंने देखा हैं जिंदे जिस्मों को
गोश्त बनते हुए।
फिर भी एक परंपरा को निभाते हुए
बस इतना कहूंगा,
गर वाकई कल से
एक नया वक्त शुरू हो
तो, खुदा बस इतना कर दे
इस देश के युवाओं में जोश भर दे,
इस देश के नेताओं में होश भर दे।
जनता को जागरूक और,
देश तोड़ने वालों के मन में
एकता भर दे।
- पत्थर नीलगढ़ी
खैर, सीधीबात के लिए सक्रिय एडिटोरियल प्लस डेस्क के सभी पत्रकार साथियों के तरफ से मैं पत्रकार मीतेन्द्र नागेश ‘ पत्थर नीलगढ़ी’ की इस कविता के साथ आप तमाम ब्लॉगर बंधुओं, बुद्धिजीवियों व संवेदनशील पाठकों को अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं:
किस तरहां से दूं
नववर्ष की शुभकामनाएं।
जब मैं दे रहा होऊंगा,
नववर्ष की शुभकामनाएं
तो,
मेरी आंखों में तुम्हें चमक नहीं,
दिखेंगे खून के आंसू।
मेरे चहरे पर उत्साह नहीं,
दिखेगा तैरता हुआ खौफ।
मेरे होंठ संकोच से
कांप रहे होंगे।
मेरी जुबां लड़खड़ा रही होगी।
गर गले मिलने का साहस भी जुटा पाया
तो,
शायद खुद को तुममें
छुपाने का प्रयास ही होगा
क्योंकि अभी-अभी
देखा है मैंने निदोर्षों का लहू
जमीं पर गिरता हुआ।
मैंने सुनी हैं चीखें,
मौत से जूझती हुई।
मैंने देखा हैं जिंदे जिस्मों को
गोश्त बनते हुए।
फिर भी एक परंपरा को निभाते हुए
बस इतना कहूंगा,
गर वाकई कल से
एक नया वक्त शुरू हो
तो, खुदा बस इतना कर दे
इस देश के युवाओं में जोश भर दे,
इस देश के नेताओं में होश भर दे।
जनता को जागरूक और,
देश तोड़ने वालों के मन में
एकता भर दे।
- पत्थर नीलगढ़ी
आप सभी को नव-वर्ष की हार्दिक शुभ-कामना
ReplyDeleteबहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई साथ में आपको और आपके पुरे परिवार को नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
ReplyDeleteसाल के आखिरी ग़ज़ल पे आपकी दाद चाहूँगा अगर पसंद आए ...
अर्श
नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
ReplyDeleteनीरज
aap bhi vadhai denge nav varsh ki jab aapki yeh dua pooran ho jayegi
ReplyDeleteइस देश के युवाओं में जोश भर दे,
इस देश के नेताओं में होश भर दे।
जनता को जागरूक और,
देश तोड़ने वालों के मन में
एकता भर दे।