छुट्टी के बाद लौटा हूं। पर मन में अब भी हैरानी है-आखिर कब भारत के सब्र का बांध टूटेगा? पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के बेशर्म बयान और झूठी कार्रवाई तो सोची-समझी रणनीति के तहत है। कम से कम इस बेशर्मी में पाकिस्तानी फितरत के प्रति जरदारी की असीम आस्था तो झलकती है, लेकिन अपने देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और परोक्ष पीएम सोनिया गांधी तो बस बयान से भारतीय स्वाभिमान की तुष्टि करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। ये झूठी कार्रवाई भी नहीं कर पाये हैं। अव्वल यह है कि लापरवाह सुरक्षा व्यवस्था के कारण मुंबई हमले में आतंकवादियों की गोली का निशाना बने जांबाज पुलिस अफसर हेमंत करकरे की शहादत पर सियासत होने लगी है। अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री एआर अंतुले के ‘अतुले’ बयान पर लोकसभा में हंगामा बरपा है। विपक्ष अंतुले के इस्तीफे की मांग कर रहा है। लेकिन आश्चर्य यह कि राष्ट्रीय संप्रभुता पर आतंक के आघात के दाग को धोने की मांग पर लोकसभा में कोई हंगामा नहीं हो रहा। दूसरी तरफ जरदारी विश्व समुदाय के बीच पाकिस्तान को पाक-साफ साबित करने में लगा है। भले, इसके लिए उसे एक दिन में दस बार झूठे बयान ही क्यों न देने पड़े। मसलन, बीबीसी को दिये एक साक्षात्कार में जरदारी ने मुंबई पर आतंकी हमले पर उलटे भारत से ही पूछा-क्या सबूत है कि पाक के ही हमलावर थे। जबकि इससे पहले इसी जरदारी ने माना था कि मुंबई में कहर ढाने वाले पाकिस्तान में सरकार इतर संगठनों के हो सकते हैं।
खैर छोडि़ये, जब सात साल पहले भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद भवन पर आतंकी हमले के दोषी मोहम्मद अफजल को सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाई जाने के बाद भी अब तक सजा नहीं दी जा सकी है और वह तिहाड़ जेल में हमारे देश की रोटियां तोड़ रहा है, तो मुंबई हमले के दोषियों को सजा देने में देश के सत्तासीनों से तत्परता की उम्मीद कैसे की जा सकती है...और ऐसे हालात में भी हमारे देश के नये गृहमंत्री पी। चिदंबरम को अब भी जैसे अपनी पुरानी कुर्सी से मोह बाकी है, तभी तो वे प्रधानमंत्री के तरफ से पुराना होम लोन सस्ता करने के बयान दे रहे हैं...जब देश ही असुरक्षित हो तो होम लोन सत्ता करने से क्या होगा गृहमंत्री जी....लेकिन यह तो जनता का सवाल है, जिसका जवाब देने की जिम्मेदारी से आज के राजनेता मुक्त हैं. दरअसल, चिदंबरम जी को कुछ ही महीनों बाद के आम चुनाव की चिंता अधिक है, जिसके लिए सत्ता की अंतिम घड़ी में लोकलुभावन घोषणाएं करने की राजनीतिक परंपरा बहुत पुरानी है. पेट्रोल-डीजल के मूल्य में अधूरी कमी को भी इस नजर से देखा जा सकता है...और हो सकता है कि आम चुनाव की घड़ी और करीब आई तो पेट्रोल-डीजल के भाव और कम हो सकते हैं...तब तक तो जनता के दिल-दिमाग पर लगे ताजा आतंक के जख्म भी समय के मरहम से भर चुके होंगे...
अब क्या करें, दुनिया ही ऐसी है!
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने ,अब चुनाव की तैयारियां हो रही हैं -लोक लुभावन काम ! देश जाय भाड़ में !
ReplyDeleteबेहूदगी की हद तो भारत सरकार कर रही है, चोर से जुर्म कुबूल करवा रही है।
ReplyDeleteमहाशक्ति
जब तक हम अपने लिए सही प्रतिनिधि चुनने का सलीका नहीं सॆऎख लेते सारे सवाल बेमानी हैं ।
ReplyDeleteयुद्ध कभी भी किसी समस्या का हल नही हो सकता. इसका हल कुटनीतिक तरीके से निकला जाना चाहिए .
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