पीएम साहब खुद को ‘सिंह इज द किंग’ साबित करें, शीघ्र पीओके पर हमले का आदेश दें
उदय केसरी
सीधीबात पर प्रकाशित आलेख ‘पीएम साहब सेना को पीओके पर हमले का आदेश दें’ पर मिली टिप्पणियों में वैसे तो अधिकत्तर में मेरी मांग व राय का समर्थन किया गया, पर दो-एक टिप्पणी ऐसी भी मिलीं, जिनमें मेरी मांग व राय को बेवकूफी भरी बात व बचकानी बात कहा गया। मैं पहले तो इस आलेख को पढ़ने व इस पर टिप्पणी करने वाले सभी (पक्ष-विपक्ष दोनों) ब्लॉगर पाठकों को धन्यवाद देता हूं। चूंकि सभी को अपनी राय रखने की स्वतंत्रता है, भले कोई उससे सहमत हो या असहमत। फिर भी, मैं इस मुद्दे पर बुद्धिजीवी ब्लॉगर व पाठक भाइयों, खासकर असहमत भाइयों से कुछ और सीधीबात करना चाहता हूं। वह यह कि...
जिस समय (बुधवार रात से शुक्रवार रात तक) मुंबई में आतंकियों का कोहराम मचा था और उनकी अंधाधुंध गोलियों और हैंडग्रेनेडों से मुंबई लहूलुहान हो रहा था, उसी दौरान पाकिस्तानी सैनिक कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास भारतीय चैकियों पर गोलीबारी कर रहे थे। चार साल पहले पाकिस्तान व भारत के बीच सीमा पर संघर्ष विराम का समझौता हुआ था। बावजूद इसके पाकिस्तानी सेना लगातार इस समझौते का उल्लंघन कर रही है। गुरुवार की रात करीब 9.00 बजे पुंछ ज़िले में नियंत्रण रेखा के पास तारकुंडी पट्टी पर की गई पाकिस्तानी गोलीबारी पिछले 24 घंटे में दूसरी दफा थी। जबकि इससे पहले बुधवार (मुंबई पर आतंकी हमले का दिन) को पाकिस्तानी सैनिकों ने जम्मू ज़िले में नियंत्रण रेखा के पास खौर सीमा पर भारतीय चौकी पर गोलियां चलाईं। यानी महज 24 घंटों में पाकिस्तानी सेना जब दो-दो बार अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष विराम समझौते की धज्जियां उड़ा सकती है, तो उनके लिए ऐसे समझौते कितने मायने रखते हैं, इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। फिर भी यह उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी सेना ने इस साल जनवरी से अब तक 38 बार संघर्ष विराम समझौते का उल्लंघन किया है, जिनमें दर्जनों भारतीय जवान शहीद हो चुके हैं। इसके अलावा पिछले नौ महीनों में एलओसी पार से घुसपैठ की 132 से ज्यादा कोशिशें की गई, जिनमें 80 पाक उग्रवादी मारे गए।
यह तो सेना व पाक आतंकियों के स्तर पर पाकिस्तान के रवैये की बात हुई, अब जरा राजनायिक स्तर पर पाक के रवैये देखिए, जब मुंबई पर आतंकी हमला हुआ, तब पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी चार दिनों के भारतीय दौरे पर थे। और मुंबई की घटना के बाद जब आतंकियों के पाकिस्तानी होने के प्रमाण सामने आने लगे और भारत के प्रधानमंत्री व विदेशमंत्री ने भी जब अपने बयानों में इसकी चर्चा कर दी, तो पाकिस्तानी विदेशमंत्री ने अपनी प्रतिक्रिया में प्रेसवालों से कहा- ‘यकीन जानिए, मेरे पास भारत की ओर से ऐसा एक भी सबूत पेश नहीं किया गया है।’ जबकि, इस दौरान भारतीय न्यूज चैनल ही नहीं, दुनिया भर के मीडिया वाले आतंकी हथियारों, हथगोलों पर पाकिस्तानी कारखानों के छपे नाम समेत अन्य कई सबूत दिखाते-बताते रहे। क्या जनाब कुरैशी इस वाक्ये के दौरान टीवी नहीं देख रहे होंगे। लेकिन, इसके बाद भी उनका बेशर्म बयान था कि ‘भारत को बयान देने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। इससे दोनों देशों के रिश्तों में दोबारा खटास आ सकती है। भारत को ऐसे मौकों पर संयम बरतना चाहिए।’ क्या बात है! नौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। अपने गिरेबां में झांकने के बजाय जनाब कुरैशी भारत को संयम बरतने की सलाह देने लगे और भारत दौरा बीच में छोड़ पाक वापस लौट गए।
उधर, पकिस्तान एक तरफ आतंकवाद से लड़ाई में भारत का सहयोग करने के धकोसले बयान दे रहा है, दूसरी तरफ जब भारत ने मुंबई हमले की जांच में सहयोग के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से आईएसआई प्रमुख जनरल शुजा पाशा को दिल्ली भेजने की बात की, तो वे इससे मुकर गए। पाकिस्तान के दोहरे चरित्र की एक नहीं, हजारों कहानियां हैं। इसलिए बयानों से, बातचीत से या समझौतों से पाकजनित व प्रोत्साहित आतंकवाद का सफाया नहीं किया जा सकता। इसके लिए बिना देर किये भारत को पीओके में स्थित आतंकियों के अड्डों पर हमला बोल देना चाहिए।
बड़ी देर से जागी पाटिल साहब की नैतिकता
देश के गृहमंत्री शिवराज पाटिल को दिल्ली हमले के वक्त ही इस्तीफा दे देना चाहिए था, जब वे अपने कपड़े बदलने में व्यस्त थे।...शुक्र है देर से सही, देश की सुरक्षा के प्रति उनकी नैतिकता जागी कि अब वे गृहमंत्री के योग्य नहीं हैं। वैसे, उनकी कुर्सी पर जिन्हें बिठाया गया यानी पी. चिदम्बरम, वे इस लहूलुहान कुर्सी से लहू के दाग कैसे धोते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
बहरहाल, गृहमंत्री पाटिल के इस्तीफे के बावजूद, मुंबई जैसे अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले के विरुद्ध प्रधानमंत्री से देश को इस बात की अपेक्षा अधिक है कि वे खुद को ‘सिंह इज द किंग’ साबित करें और जल्द से जल्द पीओके पर सेना को हमले का आदेश दें।...यकीन मानिए तब पूरा देश हो या न हो, देश के 70 फीसदी युवा ‘किंग’ के फैसले के साथ होंगे...और तभी हम तोड़ पायेंगे भारत के दुश्मन आतंकियों की कमर...
उदय केसरी
सीधीबात पर प्रकाशित आलेख ‘पीएम साहब सेना को पीओके पर हमले का आदेश दें’ पर मिली टिप्पणियों में वैसे तो अधिकत्तर में मेरी मांग व राय का समर्थन किया गया, पर दो-एक टिप्पणी ऐसी भी मिलीं, जिनमें मेरी मांग व राय को बेवकूफी भरी बात व बचकानी बात कहा गया। मैं पहले तो इस आलेख को पढ़ने व इस पर टिप्पणी करने वाले सभी (पक्ष-विपक्ष दोनों) ब्लॉगर पाठकों को धन्यवाद देता हूं। चूंकि सभी को अपनी राय रखने की स्वतंत्रता है, भले कोई उससे सहमत हो या असहमत। फिर भी, मैं इस मुद्दे पर बुद्धिजीवी ब्लॉगर व पाठक भाइयों, खासकर असहमत भाइयों से कुछ और सीधीबात करना चाहता हूं। वह यह कि...
जिस समय (बुधवार रात से शुक्रवार रात तक) मुंबई में आतंकियों का कोहराम मचा था और उनकी अंधाधुंध गोलियों और हैंडग्रेनेडों से मुंबई लहूलुहान हो रहा था, उसी दौरान पाकिस्तानी सैनिक कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास भारतीय चैकियों पर गोलीबारी कर रहे थे। चार साल पहले पाकिस्तान व भारत के बीच सीमा पर संघर्ष विराम का समझौता हुआ था। बावजूद इसके पाकिस्तानी सेना लगातार इस समझौते का उल्लंघन कर रही है। गुरुवार की रात करीब 9.00 बजे पुंछ ज़िले में नियंत्रण रेखा के पास तारकुंडी पट्टी पर की गई पाकिस्तानी गोलीबारी पिछले 24 घंटे में दूसरी दफा थी। जबकि इससे पहले बुधवार (मुंबई पर आतंकी हमले का दिन) को पाकिस्तानी सैनिकों ने जम्मू ज़िले में नियंत्रण रेखा के पास खौर सीमा पर भारतीय चौकी पर गोलियां चलाईं। यानी महज 24 घंटों में पाकिस्तानी सेना जब दो-दो बार अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष विराम समझौते की धज्जियां उड़ा सकती है, तो उनके लिए ऐसे समझौते कितने मायने रखते हैं, इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। फिर भी यह उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी सेना ने इस साल जनवरी से अब तक 38 बार संघर्ष विराम समझौते का उल्लंघन किया है, जिनमें दर्जनों भारतीय जवान शहीद हो चुके हैं। इसके अलावा पिछले नौ महीनों में एलओसी पार से घुसपैठ की 132 से ज्यादा कोशिशें की गई, जिनमें 80 पाक उग्रवादी मारे गए।
यह तो सेना व पाक आतंकियों के स्तर पर पाकिस्तान के रवैये की बात हुई, अब जरा राजनायिक स्तर पर पाक के रवैये देखिए, जब मुंबई पर आतंकी हमला हुआ, तब पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी चार दिनों के भारतीय दौरे पर थे। और मुंबई की घटना के बाद जब आतंकियों के पाकिस्तानी होने के प्रमाण सामने आने लगे और भारत के प्रधानमंत्री व विदेशमंत्री ने भी जब अपने बयानों में इसकी चर्चा कर दी, तो पाकिस्तानी विदेशमंत्री ने अपनी प्रतिक्रिया में प्रेसवालों से कहा- ‘यकीन जानिए, मेरे पास भारत की ओर से ऐसा एक भी सबूत पेश नहीं किया गया है।’ जबकि, इस दौरान भारतीय न्यूज चैनल ही नहीं, दुनिया भर के मीडिया वाले आतंकी हथियारों, हथगोलों पर पाकिस्तानी कारखानों के छपे नाम समेत अन्य कई सबूत दिखाते-बताते रहे। क्या जनाब कुरैशी इस वाक्ये के दौरान टीवी नहीं देख रहे होंगे। लेकिन, इसके बाद भी उनका बेशर्म बयान था कि ‘भारत को बयान देने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। इससे दोनों देशों के रिश्तों में दोबारा खटास आ सकती है। भारत को ऐसे मौकों पर संयम बरतना चाहिए।’ क्या बात है! नौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। अपने गिरेबां में झांकने के बजाय जनाब कुरैशी भारत को संयम बरतने की सलाह देने लगे और भारत दौरा बीच में छोड़ पाक वापस लौट गए।
उधर, पकिस्तान एक तरफ आतंकवाद से लड़ाई में भारत का सहयोग करने के धकोसले बयान दे रहा है, दूसरी तरफ जब भारत ने मुंबई हमले की जांच में सहयोग के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से आईएसआई प्रमुख जनरल शुजा पाशा को दिल्ली भेजने की बात की, तो वे इससे मुकर गए। पाकिस्तान के दोहरे चरित्र की एक नहीं, हजारों कहानियां हैं। इसलिए बयानों से, बातचीत से या समझौतों से पाकजनित व प्रोत्साहित आतंकवाद का सफाया नहीं किया जा सकता। इसके लिए बिना देर किये भारत को पीओके में स्थित आतंकियों के अड्डों पर हमला बोल देना चाहिए।
बड़ी देर से जागी पाटिल साहब की नैतिकता
देश के गृहमंत्री शिवराज पाटिल को दिल्ली हमले के वक्त ही इस्तीफा दे देना चाहिए था, जब वे अपने कपड़े बदलने में व्यस्त थे।...शुक्र है देर से सही, देश की सुरक्षा के प्रति उनकी नैतिकता जागी कि अब वे गृहमंत्री के योग्य नहीं हैं। वैसे, उनकी कुर्सी पर जिन्हें बिठाया गया यानी पी. चिदम्बरम, वे इस लहूलुहान कुर्सी से लहू के दाग कैसे धोते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
बहरहाल, गृहमंत्री पाटिल के इस्तीफे के बावजूद, मुंबई जैसे अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले के विरुद्ध प्रधानमंत्री से देश को इस बात की अपेक्षा अधिक है कि वे खुद को ‘सिंह इज द किंग’ साबित करें और जल्द से जल्द पीओके पर सेना को हमले का आदेश दें।...यकीन मानिए तब पूरा देश हो या न हो, देश के 70 फीसदी युवा ‘किंग’ के फैसले के साथ होंगे...और तभी हम तोड़ पायेंगे भारत के दुश्मन आतंकियों की कमर...