अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का विद्रूप चेहरा और चंद इतर बातें

चंद इतर बातें
वाकई में विवाह व्यक्ति को व्यवस्थित बनाता है। वरना, मैं तो इससे पूर्व पूरी तरह से अव्यवस्थित व अराजक जीवन शैली में मस्त था। व्यवस्थितों को देख मुझे थोड़ा अजीब लगता था। सोचता कि लोग क्यों अपना इतना वक्त और पैसा फालतू की व्यवस्था पर खर्च करते हैं। क्या बिन पर्दे के कमरे में नहीं रहा जा सकता, डायनिंग टेबल, महंगी क्राॅकरी में खान-पान किये बगैर जिंदगी नहीं चलती। अरे भई चलती है, मगर खानाबदोसों की तरह। और अब तो खानाबदोस भी काफी कुछ व्यवस्थित हो गए है। उनकी तो पूरी गृहस्थी एक वाहन पर सजी रहती है। बस, छांव देखकर उन्हें ब्रेक लगाना होता है।

खैर, छोड़िए, आप सोच रहे होंगे आज यह उदय केसरी कैसी बातें कर रहा है।... तो आदरणीय ब्लाॅगर बंधुओं व सीधीबात के पाठकों, हित-परिजनों व आप सबों की शुभकामनाओं के फलस्वरूप अब मेरा भी बैचलर्स या कहें अव्यवस्थित व अराजक जीवन शैली से मोहभंग हो गया है। हाल में विवाह संपन्न होने के बाद से किराये की नई फलैट में गृहस्थी संवारने के हर आवश्यक वस्तुओं की जुगाड़ व खरीद में लगा हूं। रसोई, जैसा कि हर गृहस्थी का सबसे अहम विभाग होता है। हमारे लिए भी है, जहां से हर रोज नीत-नये डिमांड के पर्चे जारी होते रहते हैं। कभी, ऐसे-ऐसे मसालों के नाम पर्चें में होते हैं,जिनका मेरे वक्त की रसोई में कोई उपयोगिता नहीं थी। वहीं टीवी, फ्रीज, कूलर व वाशिंग मशीन भी गृहस्थी के अभिन्न अंग हैं। यह भी समझ में आ गया।...पर एक बात कहूं...यह सब शादी से पूर्व सुनकर अजीब जरूर लगता है, पर शादी बाद पैसे जोड़-जोड़कर एक-एक चीज खरीदने में काफी खुशी मिलती है। लगता है जैसे हरेक चीज कोई वस्तु नहीं, जीवन का सुकून है। कम से कम मैं तो ऐसा ही महसूस कर रहा हूं।...

जीवन के एक नये सत्र में प्रवेश के कारण सीधीबात के लिए लेखन से काफी दिनों तक दूर रहा। पारिवारिक व्यस्तताओं के कारण राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों व घटनाक्रमों से भी लगभग अछूता रहा। पर अब लौटकर जब से एडिटोरियल प्लस आया हूं।...आप सबों से फिर सम-सामयिक मुद्दों पर बातचीत करने की इच्छा प्रबल हो गई है...

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का विद्रूप चेहरा
आज अधिकतर अखबारों में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी का बयान प्रकाशित हुआ है, जो अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विद्रूप चेहरे को बेनकाब करता है। हालांकि इस बात का खुलासा पहले भी होता रहा है। लेकिन खुद पाकिस्तान द्वारा यह स्वीकार करना कि तालिबान को खड़ा करने में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के साथ ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने मदद की थी, सनसनीखेज है।

कहते हैं साजिशकर्ता कभी-न-कभी अपनी ही साजिश का शिकार भी बनता है। अमेरिका और पाकिस्तान के साथ ऐसा ही हुआ। अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ मोर्चा लेेने के लिए अमेरिका ने एक साजिश के तहत तालिबान को खड़ा किया, लेकिन जब ओसामा बिन लादेन के अल-कायदा का अफगानिस्तान में तालिबान से गठबंधन हो गया और इसके पश्चात अमेरिका के खिलाफ 9/11 जैसी अप्रत्याशित घटना को अंजाम दिया गया, तो अमेरिका भौंचक रह गया। परिणामरूवरूप अल-कायदा व तालिबान अमेरिका का नंबर वन दुश्मन बन गया।

अब इधर, पाकिस्तान में जब तक परवेज मुशर्रफ का राज रहा, तालिबानियों से पाकिस्तान की छनती रही। मगर जैसे ही मुशर्रफ हटे, नयी सरकार से तालिबान की पटरी नहीं बैठ सकी। परिणामस्वरूप, स्वात घाटी पर कब्जा और एक के बाद एक बम धमाकों से पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार घबरा गई। उधर, अमेरिका को भी पाकिस्तान की गद्दी से मुशर्रफ के जाने के बाद ही शायद असलियत का पता चला कि उससे अलकायदा व तालिबान से लड़ने के नाम पर धन लेने वाला पाकिस्तान कैसे अंदर-ही-अंदर उसे धोखा दे रहा है। नतीजा यह हुआ कि, अमेरिका ने धन देने में आनाकानी शुरू कर दी।...

ऐसे में अब यदि जरदारी पत्रकारों के समक्ष विभिन्न किताबों के हवाले से यह दावा कर रहे हैं कि अमेरिका ने ही तालिबान को खड़ा किया है, तो यह भी एक अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का हथकंडा ही है, ताकि अमेरिका पाकिस्तान को धन मुहैया कराने में आनाकानी न करे, क्योंकि तालिबान अब पाकिस्तान का भी दुष्मन हैैै...यही नहीं, यदि अमेरिकी आनाकानी जारी रही तो पाकिस्तान दुनिया के सामने उसकी पोल खोलने में बाज नहीं आएगा।

2 comments:

  1. aa gaye lautkar. badhayee ho aapko.

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  2. मै तो चंद इतर बातें ही पढता रह गया.........

    वैसे बढ़िया लेख

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