देश के अर्थ का यह कैसा लोकतंत्र है ?

कहां तो काला धन वापस आना था ! यहां तो देश का सफेद धन लेकर विदेश भाग रहे हैं अमीर!

और गरीबों के खाते से मिनिमम बैलेंस के नाम पर वसूले जा रहे हैं 1,772 करोड़ रुपये।

इधर, हजारों रुपये के कर्ज लेकर किसान अपनी जान छोड़ने को मजबूर हैं और उधर, हजारों करोड़ रुपये के कर्ज लेकर अमीर बड़े आराम से अपना देश छोड़ रहे हैं !

एक तरफ, देश में अब भी लाखों गरीब परिवार एक अदद छत के लिए मोहताज हैं, दूसरी तरफ सिर्फ 1% अमीरों का देश की 73% नई संपत्ति पर कब्जा है।

जहां, हर पार्टी की सत्ता की ताजपोशी गरीबों के हक के अटल वादे के साथ होती है, वहीं देश के 67% लोग अब भी गरीबी रेखा से नीचे हैं।

देश के अर्थ का यह कैसा लोकतंत्र है ? यह कैसी विडंबना है ?
😥😥😥

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