नारों के आसरे न रहना वतन की बेटियों,
शर्म मर चुकी, बेशर्मी उफान पर है।
हर पल, हर जगह संभल के रहना तुम,
भेड़िए बढ़ गए, इंसानियत अवसान पर है।
न करना इंसानियत के धर्म पे भी भरोसा,
नैतिकता मर चुकी, धर्म के बस चोले हैं।
इसलिए ....
तेरे अंदर की दुर्गा को तू सदा जगाके रखना,
भुजाओं में संघारक त्रिशूल सदा उठाके रखना।
न जाने किस मोड़ पे हो जाए वहशी अशुरों से सामना,
जगत जननी हो तुम पर चंडी का रूप बनाके रखना।
क्योंकि...
नारों के आसरे न रहना वतन की बेटियों,
शर्म मर चुकी, बेशर्मी उफान पर है।
--- अक्षत/ 15 अप्रैल 2018
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