आखिर कब मैच्‍योर होगा झारखंड?

उदय केसरी  
झारखंड की हालत देखकर बेहद दुख होता है। मानो, झारखंड किसी के द्वारा शापित हो कि वह कभी मैच्‍योर (समझदार) नहीं हो सकेगा। सदा यूं ही बचकानी राजनीति का शिकार होता रहेगा। यह भी कि चालाक और भ्रष्‍ट लोग सदा उसका दोहन करते रहेंगे। उसके दुश्‍मनों में अपने भी होंगे और पराये भी। यहां किसी राजनीतिक दल या गठबंधन की सरकार ज्‍यादा दिनों तक नहीं चल पायेगी। राज्‍य में सदा राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना रहेगा। यानी, इस भूखंड का कभी विकास नहीं हो सकेगा, बल्कि इसके अपने और परोये बस इसकी बोटियां नोंच-नोंच कर खाते रहेंगे। यहां निवास करने वाली आदिवासी व गैरआदिवासी जनता की आंखें विकास की आस में पथरा जाएंगी, पर उनकी आस शायद कभी पूरी हो पाए।

क्‍या आपको ऐसा महसूस नहीं होता? बिहार से अलग कर जब 2000 में झारखंड को पृथक राज्‍य का दर्जा मिला, उसी समय मध्‍यप्रदेश से अलग कर छत्‍तीसगढ़ और उत्‍तर प्रदेश से अलगकर उत्‍तराखंड को भी पृथक राज्‍य का दर्जा मिला। क्‍या अपने समान उम्र के छत्‍तीसगढ़ और उत्‍तराखंड की तुलना में झारखंड का विकास हो सका है?...नहीं न। तो फिर, वह कौन सी वजह है जो झारखंड के पोषण में बाधा बन खड़ी है? क्‍यों उसे मैच्‍योर नहीं होने दिया जा रहा है। साल की भी गिनती की जाए तो नौ-दस साल कम नहीं होते हैं, इतने समय में तो बच्‍चा चलने, उछलने व दौड़ने लगता और कम से कम इतना मैच्‍योर जरूर हो जाता है कि अपने-पराये को आसानी से पहचान ले। पर, क्‍यों झारखंड रूपी अबोध बालक का सामान्‍य विकास भी नहीं हो सका? आखिर इस अबोध बालके के जन्‍म पर माता-पिता होने का श्रेय लेने वाले पार्टी व नेता या पालन-पोषण करने की जिम्‍मेदारी लेने वाले लोगों के अपने बच्‍चे भी क्‍या ऐसे ही कुपोषण के शिकार हैं?

शायद इन सवालों को जनता की तरफ से झारखंड में निकलने वाले अखबारों और प्रसारित होने वाले न्‍यूज चैनलों को तब तक पूछना चाहिए, जबतक कि झारखंड के कुपोषण के लिए जिम्‍मेदार नेता और अधिकारी जनता के बीच नग्‍न खड़े होकर क्षमा की भीख मांगते नहीं दिखने लगे। मगर, क्‍या कभी ऐसा हो सकता है?...लोकतंत्र के सिद्धांतों में कहते हैं कि लोकतांत्रिक ‘विकास’ प्रक्रिया में विधायिका, कार्यपालिका और न्‍यायपालिका की तरह ही प्रेस यानी मीडिया की भी चौथे स्‍तम्‍भ के रूप में महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है। अब यदि इस सिद्धांत को उलट दें तो क्‍या होगा...लोकतांत्रिक ‘विनाश’ प्रक्रिया में विधायिका, कार्यपालिका और न्‍यायपालिका की तरह ही प्रेस यानी मीडिया की भी चौथे स्‍तम्‍भ के रूप में महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है। तात्‍पर्य यह कि झारखंड की मीडिया को इन मूलभूत प्रश्‍नों का बोध शुरू से है, पर जब नवनिर्मित राज्‍य के तीन स्‍तम्‍भ माल बटोरने में लगे हैं, तो वे क्‍यों उनसे बैर लेकर अपने अखबार और चैनल के व्‍यवसाय पर ग्रहण लगाए?

ऐसे में, झारखंड क्‍यों नहीं इम-मैच्‍योर राज्‍य होगा? फिर क्‍यों नहीं यहां मधु कोड़ा जैसे एक निर्दलीय विधायक जोड़-तोड़ की राजनीति कर मुख्‍यमंत्री बने? क्‍यों नहीं, वह एक-डेढ़ साल के भीतर 3000 करोड़ से ज्‍यादा रूपये का घोटाला करके डकार भी न ले? फिर क्‍यों नहीं इसके बाद भी उसकी पत्‍नी चुनाव जीते? फिर क्‍यों नहीं, झारखंड की स्‍थापना का श्रेय लेने में सबसे अव्‍वल और सांसद रिश्‍वतकांड के आरोपी दिशोम गुरू शिबू सोरेन जबदस्‍ती मुख्‍यमंत्री की कुर्सी हथिया ले और इसकी न्‍यूनतम योग्‍यता वाली परीक्षा यानी उपचुनाव भी हार जाए? और भी बहुत कुछ बुरा हो सकता है इस राज्‍य में जो यहां के लिए शायद आम बात होगी।

अब जब, इस राज्‍य को प्राप्‍त प्राकृतिक या नैसर्गिक संपदा पर नजर डालेंगे तो भी आपको आश्‍चर्य होगा। अपनी उम्र के छत्‍तीसगढ़ और उत्‍तराखंड के मुकाबले ऊपरवाले ने झारखंड को दिल खोल कर प्राकृतिक संपदाओं से संपन्‍न बनाया। यहां की धरती में खासकर खनिजों के मामले में क्‍या नहीं है- लौह अयस्‍क, कोयला, तांबा अयस्‍क, अबरक, बॉक्‍साइट, फायर क्‍ले, ग्रेफाइट, सिलिमनाइट, चूना पत्‍थर, यूरेनियम आदि। लेकिन नीचे वाले झारखंड के विधायकों ने सिवाय इसके दोहन के और कुछ भी नहीं किया। यह भी नहीं सोंचा कि यह माटी अपनी मां भी है।...आखिर इतने नीच लोगों के नेतृत्‍व में झारखंड की जनता कैसे जीती होगी...इसका अंदाजा स्‍वत: लगाया जा सकता है।

3 comments:

  1. Its a real tragedy that jharkhand never qualified for a mature state considering its geographical advantages. It has to get over the caste based politics and renew thinking both politically and economically as a industrialised state and potentially as a leading state assisting the Indian economy. The leaders at the centre cannot ignore this state as it can provide the necessary boost to the economy with its resources. I sincerely hope that the people of Jharkhand mature in the near future to make it a leading industrialised state of India.

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  2. सर आप भी यह भली भांति जानते हैं की झारखण्ड के कुपोषण का जिम्मेदार कौन है.

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  3. अब रोने के अलावा किया क्या जा सकता है? फिर वहाँ की सियासत में वही बेमेल गठबंधन के आने के आसार हैं।

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