नक्‍सलवाद हो या आईपीएलवाद, दोनों ही खतरनाक

उदय केसरी  
इन दिनों देश में दो सबसे बड़े मुद्दे सुर्खियों में है। एक नक्‍सलवाद और दूसरा आईपीएलवाद । एक में, गरीबी और शोषण के कांधे पर बंदूक धरकर सरकार के विरूद्ध युद्ध किया जा रहा है। तो दूसरे में, क्रिकेट के प्रोत्‍साहन के नाम पर हजारों करोड़ का कारोबार किया जा रहा है। दोनों मुद्दे गंभीर रूप धारण कर चुके हैं- एक में, 76 सीआरपीएफ के जवानों पर हमला कर उन्‍हें मौत की नींद सुला दिया गया, तो दूसरे में, केंद्र के विदेश राज्‍य मंत्री शशि थरूर को अपना मंत्री पद छोड़ना पड़ा। इन दोनों मुद्दों पर मीडिया में पिछले दो-तीन हफ्तों से बहस जारी है। पर, इन दोनों बहसों में मत काफी बंटे हुए हैं। नक्‍सलवाद के मुद्दे पर जहां वामपंथी विचारधारा वाले लोग उसे गरीबी और शोषण के खिलाफ हक की लड़ाई बता रहे हैं, तो इस पंथ से इतर लोग इसे देशद्रोह करार दे रहे हैं। इसी तरह, आईपीएलवाद के मुद्दे पर जहां आईपीएल से परोक्ष-अपरोक्ष रूप से जुड़े़ कॉरपोरेट जगत, बॉलीवुड, क्रिकेट और क्रिकेटमैनिया से ग्रसित लोग इसे मोदी का वरदान कह रह रहे हैं और मोदी के विरोध करने वालों को थरूर का पक्षधर बताकर विरोध को बदले की कार्रवाई कह रहे हैं, तो वहीं इससे इतर लोग आईपीएल को क्रिकेट के नाम पर अय्याशी और टैक्‍सचोरी का काला कारोबार बता रहे हैं।

खैर, यह सब आप भी जानते होंगे। इन दोनों मुद्दों पर जो मुझे कहना उस पर आता हूं। पहले नक्‍सलवाद पर- इसके समर्थकों से मैं पूछना चाहूंगा कि भारत में सबसे बड़ी आबादी किन लोगों की है अमीरों या गरीबों की। गरीबों की न। और आपके मुताबिक नक्‍सली गरीबों के हक की लड़ाई लड़ते हैं, तो वे गरीबों का समर्थन प्राप्‍त कर केंद्र या राज्‍यों में खुद अपनी सरकार क्‍यों नहीं बना लेते? फिर जैसा परिवर्तन चाहे करके दिखा दें। क्‍या यह प्रयास जंगलों में गुमनाम जिंदगी बिताने और कायरों की तरह निहत्‍थे व लाचार ग्रामीणों पर भय की सरकार चलाने से ज्‍यादा मुश्किल है। नक्‍सली यदि कार्ल मार्क्‍स, माओत्‍से तुंग, लेनिन की विचारधारा पर चलने की बात करते हैं, तो यह उनका सबसे बड़ा झूठ है। क्‍योंकि इन ऐतिहासिक विचारकों ने परिवर्तन के लिए अपने समाज के निहत्‍थो, मजलूमों का खून बहाकर परिवर्तन की बात कभी नहीं की। और फिर मैं तो कहता हूं कि यदि इनके विचारों से परिवर्तन के ऐसे भाव निकलते भी हों, तो भी इनके विचारों की भारतीय समाज में कोई प्रासंगिकता नहीं है। क्‍योंकि इन तीनों विचारकों के विचार भारतीय समाज व सरकार की व्‍यवस्‍था को ध्‍यान में रखकर नहीं बने, न ही इन्‍होंने कभी विविधता के बावजूद एकता में बंधे भारतीय समाज को समझा। तो फिर इनके विचारों के आधार अपने देश में परिवर्तन की बात सरासर जबरदस्‍ती नहीं तो क्‍या है?

चलिए, नक्‍सलवाद के मुद्दे पर मेरे मन में और भी कई बातें हैं कहने को, पर आलेख की लंबाई और आपके पेसेंस को ध्‍यान में रखते हुए मैं अब दूसरे बड़े मुद्दे पर आता हूं। आईपीएलवाद- सबसे पहला सवाल है देश को आईपीएल की जरूरत है? अब तो राष्‍ट्रीय-अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट मैच साल भर होते रहते हैं, जिससे बीसीसीआई पहले ही मालामाल हो चुका है, तो फिर ऐसे क्रिकेट का क्‍या फायदा जिससे खिलाड़यों का न रिकार्ड बनता हो और न देश को जीत की ट्रॉफी मिलती है। यही नहीं, इससे तो असली क्रिकेट के लिए देश के खिलाडि़यों के पास स्‍टैमिना भी नहीं बचती। तो फिर आईपीएलवाद आखिर किसके लिए....यह सब है महज करोड़पति से अ‍रबपति और खरबपति बनने का अचूक धंधा। जिसमें नेता-अभिनेता-व्‍यापारी-खिलाड़ी-जुआरी-कालाबाजारी सबों का अंतर्गठजोड़ होता है और यह धंधा महज ढाई-तीन सालों में बढ़कर बीस हजार करोड़ का हो चुका है।

खैर आईपीएलवाद के बारे में यह सब तो आप भी जानते होंगे मैं इस पर कुछ बुनियादी सवाल करना चाहूंगा। यह कि एक तरफ सरकार हमसे रोज टीवी, रेडियो व अखबारों में प्रचार देकर यह निवेदन करती रहती है कि बिजली बचायें, इसके अनावश्‍यक और बेजा इस्‍तेमाल से बचें। तभी पूरे भारत में उजाला रह पायेगा। इस प्रचार को यदि आईपीएलवाद के संदर्भ में लें, तो क्‍या वे रात में हजारों-लाखों वाट बिजली खर्च कर देश को अंधकार की ओर नहीं ले जा रहा है? आखिर यह कैसा वाद या कहें धंधा है, जिसने महज ढाई-तीन साल में ललित मोदी को धनकुबेर बना दिया, जो इससे पहले शरद पवार के ‘यशमैन’ थे। एक और सवाल, जो शर्मनाक है, कि इस मुद्दे पर न्‍यूज चैनलों के मत भी क्‍यों बंटे हुए हैं? क्‍या इसलिए कि आईपीएल में रूपर्ट मड्रोक के बेटे का भी पैसा लगा है? या इसलिए कि आईपीएल मीडिया मैंनेजरों ने विज्ञापनों के एहसानों तले उन्‍हें दबा रखा है? यदि ऐसा नहीं तो कल जब ललित मोदी के बॉ‍डीगार्डों ने मुंबई एयरपोर्ट पर मीडिया वालों को खदेड़कर भगाया और गालीगलौज की, तो इस खबर को सभी न्‍यूज चैनलों ने प्रमुखता से क्‍यों नहीं दिखाया। क्‍या केवल जी न्‍यूज और इंडिया टीवी को ही मीडिया के अपमान पर विरोध करने की और मोदी का सच बाहर लाने की जिम्‍मेदारी सौंपी गई है। शेष न्‍यूज चैनलों ने क्‍या आईपीएल की चूडिया पहन रखी है?

2 comments:

  1. नक्‍सलवादी आदिवासियों के हक की लडाई की आड में वही कृत्‍य कर रहे हैं, जो आतंकवादी धर्म के नाम पर करते हैं. नक्‍सलवादी जिस क्रांति की बात करते हैं, वास्‍तव में वह उनकी मंशा की परिधि में है ही नहीं. एक तरफ नक्‍सलियों को गरीब, भूख से तडपते आदिवासियों के रूप में पेश किया जाता है, इस स्थिति में यह समझ से परे है कि जिनके पास खाने को दाना नहीं है, उनके पास इतने हथियार कहां से आए. नक्‍सली आंदोलन की शुरूआत भले ही भली मंशा से हुई हो, लेकिन आज के नक्‍सलवाद की मंशा पवित्र नहीं रही. वास्‍तव वे नक्‍सली आदिवासियों के विकास में बाधा बने हुए हैं.

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  2. Naksalwad ko videsho se protsahan mil raha hai...

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