उदय केसरी
बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि हम उस भारत के वासी है जहां की संस्कृति व परंपरा तो गौरवशाली है, पर राजनीति बड़ा दुखदाई है। महंगाई की मार से आम जनता त्राहिमाम है, पर देश की सरकार आंखें बंद कर रखी है। प्रधानमंत्री अर्थशास्त्री माने जाते हैं, पर वे इस नियमित महंगाई का अर्थ नहीं समझ पा रहे हैं। कृषि एवं खाद्य आपूर्ति मंत्री शरद पवार तो आंखें खोलना ही नहीं चाहते हैं। ज्यादा जगाने पर वह कह देते हैं-‘मेरे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है’ तो कभी कहते हैं-‘मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूं कि महंगाई कब थमेगी, यह बता दूं’ यानी इनके होने, न होने का कोई मतलब नहीं रह गया है। तो कौन हैं जनता के त्राहिमाम को सुनने व देखने वाला। क्या विपक्षी पार्टियां? काश, इस अंधी सरकार में विपक्ष की आंखों पर स्वार्थ और राजनीतिक लाभ का चश्मा नहीं लगा होता। तो महंगाई पर भाजपा का भारत बंद और महंगाई के विरोध में करोड़ों हस्ताक्षर वाले पत्रों को लेकर राष्ट्रपति की शरण में जाना शायद सार्थक होता।
बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि हम उस भारत के वासी है जहां की संस्कृति व परंपरा तो गौरवशाली है, पर राजनीति बड़ा दुखदाई है। महंगाई की मार से आम जनता त्राहिमाम है, पर देश की सरकार आंखें बंद कर रखी है। प्रधानमंत्री अर्थशास्त्री माने जाते हैं, पर वे इस नियमित महंगाई का अर्थ नहीं समझ पा रहे हैं। कृषि एवं खाद्य आपूर्ति मंत्री शरद पवार तो आंखें खोलना ही नहीं चाहते हैं। ज्यादा जगाने पर वह कह देते हैं-‘मेरे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है’ तो कभी कहते हैं-‘मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूं कि महंगाई कब थमेगी, यह बता दूं’ यानी इनके होने, न होने का कोई मतलब नहीं रह गया है। तो कौन हैं जनता के त्राहिमाम को सुनने व देखने वाला। क्या विपक्षी पार्टियां? काश, इस अंधी सरकार में विपक्ष की आंखों पर स्वार्थ और राजनीतिक लाभ का चश्मा नहीं लगा होता। तो महंगाई पर भाजपा का भारत बंद और महंगाई के विरोध में करोड़ों हस्ताक्षर वाले पत्रों को लेकर राष्ट्रपति की शरण में जाना शायद सार्थक होता।
इस महंगाई से गरीब व श्रमजीवी ही नहीं औसत अमीर भी परेशान हैं। गृहस्थी का बजट चिंताजनक स्तर तक बिगड़ चुका है। ऐसे में, परेशान जनता की आवाज उठाने और उन्हें महंगाई से राहत दिलाने के लिए हरसंभव कोशिश करने की जरूरत है, न कि केवल राजनीति करने की। यदि महंगाई के खिलाफ भाजपा समेत अन्य बड़े विपक्षी पार्टियों का विरोध असल है तो वे इसके विरोध और इससे राहत देने की शुरूआत अपने घर, अपने प्रदेशों, जहां उनकी सरकारें हैं, वहां से क्यों नहीं करतीं। यदि केंद्र सरकार अंधी हो गई है तो क्या केवल केंद्र से जुबानी जंग करने से जनता को राहत मिल जाएगी। कम से कम जिन चीजों पर राज्य सरकारों का नियंत्रण है, उसमें तो महंगाई रोक सकती है। लेकिन ऐसी कोशिश विपक्षी दलों की सरकारों ने अपने राज्यों में नहीं की है। बल्कि वह तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने के बाद भी उस पर वैट दरों को भी बढ़ा रहे हैं। राज्यों में सड़ते अनाजों की परवाह नहीं है। राज्य से कृषि विकास पर घोटाले की ही बस खबरें आती हैं, विकास की नहीं। कालाबाजारियों, जमाखोरों को पार्टी कार्यकर्ता बना दिया गया है।...तो क्या महंगाई के इन कारकों की सफाई पहले अपने घर में ही नहीं करनी चाहिए? केवल जुबानी-बदजुबानी राजनीति या विरोध-प्रदर्शन करने से क्या कभी महंगाई जाएगी?
लेकिन इस सवाल पर हमारे देश की विपक्षी पार्टियां कभी सोचती ही नहीं, क्योंकि इसपर सोचना, वे अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारने के बराबर समझती हैं। अरे, भई जनता तो जनता होती है, वही केंद्र सरकार के लिए वोट देती है और वही राज्य सरकार के लिए भी।...और कौन सदा राज्य पर शासन करते रहना चाहता है, सभी दल तो केंद्र की सत्ता पर कब्जा जमाना चाहते हैं, ऐसे में यदि राज्य की जनता को राहत दे दिये तो उन्हें केंद्र के खिलाफ वोट डालने के लिए कैसे तैयार कर पायेंगे।...इसलिए केंद्र सरकार के नाम पर महंगाई और बढ़ा दो और जुबानी जंग भी ताकि जनता महंगाई की मार से मरने लगे। तभी तो केंद्र सरकार को गिराने का मौका मिलेगा।...ऐसी सोच के साथ अपने देश की विपक्षी पार्टियां राजनीति करने लगी हैं। यानी जनता की फिक्र न सरकार को है और न ही सरकार की नीतियों का हर दिन विरोध करने वाले विपक्ष को। सबको बस सत्ता की कुर्सी की चिंता है। पिछले दिनों एक खबर आई कि शिवसैनिकों ने पुणे में महंगाई का विरोध करने के दौरान एक दूध के टैंकर में भरे हजारों लीटर दूध पानी की तरह रोड पर बहा दिये। क्या ऐसे विरोध से महंगाई कम होगी या फिर और बढ़ेगी...यानी जनता की आवाज बनने का ढोंग करने वाली विपक्षी पार्टियों को जनता की परेशानी बढ़ाने में ही अपना राजनीतिक फायदा अधिक दिखता है।
तो फिर, देश की जनता महंगाई के जिम्मेदार केंद्र की सरकार और भ्रष्ट विपक्षी पार्टियों के बीच खुद को कैसे बचा पायेगी? यह सवाल अहम है। इस पर भारत की हमें निजी स्वार्थों से उपर उठकर सोचने की जरूरत है। जरूरत है महंगाई और महंगाई के पोषक सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ के भ्रष्ट राजनीतिकों, अफसरों व दलालों को गैर राजनीतिक जनांदोलन के जरिये मार भगाने की।