उदय केसरी
हिन्दुस्तान का नवधनाड्य वर्ग, जिसकी एक अलग पहचान है। वह अपने बिजनस और मालदार नौकरी से पागलपन ही हद तक प्रेम करता है। गरीबी की कल्पना करके भी वह सिहर उठता है। इस वर्ग की मां उदारीकरण को कह सकते हंै। 1990 के बाद तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा लागू की गई यह नीति अब दो दशक से अधिक पुरानी हो चुकी है, इसलिए इससे पैदा हुए नवधनाड्य वर्ग भी अब जवान हो चुका है। कॉरपोरेट जगत इसी वर्ग की बसाई दुनिया है, जिससे अब हर कोई वाकिफ हो चुका है। इन दो दशकों में नवधनाड्य वर्ग के कॉरपोरेट जगत ने इतने रुपए और शोहरत कमाए हैं कि हिन्दुस्तान का हर एक नौजवान इस दुनिया का निवासी, प्रवासी होने के सपने देखता है। उनमें से कई के सपने साकार भी हो रहे हैं। देश में कॉरपोरेट कंपनियों की संख्या आबादी की दर से बढ़ रही है। बिजनस के तमाम संभावनाओं को खोद-खोद कर निकाले जा रहे हैं। इससे भी कुछ नहीं मिले तो छोटे-छोटे परंपरागत कुटीर व्यापारों को विज्ञापन और रैपर की चमक दिखाकर हथिया लिया जा रहा है। समाज की कोई भी ऐसी जरूरत की चीज इस वर्ग की नजर से नहीं बची है-फिर से चाहे अगबत्ती हो या आचार-पापड़, आटे की पिसाई हो या तेल की पेराई।
आप सोच रहे होंगे इस मुद्दे की चर्चा मैं यहां फिलहाल किस संदर्भ में कर रहा हूं, तो बता दूं कि इस नवधनाड्य वर्ग के पास फिलहाल बिजनस करने के लिए पूंजी की भरमार है, लेकिन वे बिजनस किस चीज का करें, उन्हें शायद इसकी कमी हो रही है। इसलिए वे अब उन विचारों को भी अपने बिजनस आइडिया बनाने के लिए तैयार हो रहे हैं, जिसे पूंजीपति वर्ग ने कभी फायदे का सौदा नहीं समझा और सदा ऐसे विचारों और इसके समर्थकों की उपेक्षा की। विचार-बुनियादी विकास के, सामाजिक सरोकारों के। ‘सत्यमेव जयते’ टीवी शो के व्यापार को इसके ताजा उदाहरण के तौर पर समझा जा सकता है। इस शो की लागत और कारोबार पर थोड़ा गौर करें तो नवधनाड्य वर्ग के जवां हो चुके व्यापारिक कौशल का अंदाजा आप आसानी से लगा पाएंगे। इस शो के सबसे बड़े एक्स फैक्टर आमिर खान इसके हर एपिसोड के लिए 3 करोड़ रुपए फीस ले रहे हैं, जबकि एक एपिसोड की पूरी लागत 4 करोड़ रुपए है। इसमें यदि आमिर की फीस अलग कर दें तो महज एक करोड़ रुपए में पूरा कॉन्सेप्ट, रिसर्च, फिल्मांकन आदि तमाम उपक्रम किए जा रहे हैं। साफ है कि बुनियादी विषयों को बेचने की वस्तु तो बनाया गया, लेकिन अब भी इन विचारों के संवाहकों की कीमत उपेक्षात्मक ही है। अब जरा इस शो की कमाई पर नजर डाल लें तो यह संदर्भ दिन की तरह साफ हो जाएगा। भारत की सबसे बड़ी मोबाइल टेलीकॉम कंपनी भारती एयरटेल लिमिटेड इस शो की मुख्य प्रयोजक है, जिसने इसमें 18 करोड़ रुपए लगाए हैं। वहीं वॉटर प्यूरीफायर कंपनी एक्वागार्ड ने इसमें16 करोड़ रुपए लगाए हैं। इसके अलावा शो के सह प्रायोजकों में एक्सिस बैंक लिमिटेड, कोका कोला इंडिया, स्कोडा आटो इंडिया, बर्जर पेंट्स इंडिया लिमिटेड, डिक्सी टेक्स्टाइल प्राइवेट लिमिटेड और जॉनसन एंड जॉनसन लिमिटेड हैं। इन 6 कंपनियों ने भी 6-7 करोड़ रुपए (सभी का मिलाकर लगभग 40 करोड़ रुपए) शो में लगाए हैं। यही नहीं, इस शो के एड स्लॉट अबतक के सबसे अधिक भाव में बेचे जा रहे हैं। प्रत्येक 10 सेकेंड के एड स्लॉट के लिए पूरे दस लाख रुपए लिए जा रहे हैं। इस तरह देखा जाए तो यह शो कई गुना फायदे में चल रहा है। अब जरा इस सच को भी जान लें कि इस शो में दर्शकों द्वारा सबसे अधिक क्या पसंद किया जा रहा है-आमिर खान को या सामाजिक सरोकार के मुद्दों को। गूगल इंडिया के अनुसार, देश में इंटरनेट का उपयोग करने के आदी लोग इस शो के लिए अधिक से अधिक तथ्यों की तलाश कर रहे हैं। गूगल के जरिये ज्वलंत मुद्दों के बारे में तथ्यों की तलाश करने वालों की बढ़ती संख्या इस बात का संकेत है कि 'सत्यमेव जयते' की लोकप्रियता 'आमिर खान' से कहीं अधिक है।
जाहिर है बिजनस करना है, पूंजी भी है तो हर उस चीज पर ग्लैमर का तड़का मार कर फायदे कमाए जा सकते हैं, जिसे पूर्वाग्राह से ग्रस्त धनाड््यों ने पहले कभी तरजीह नहीं दी। लेकिन जैसा कि मैंने पहले ही आपको बता दिया कि नवधनाड्यों की फौज ने हिन्दुस्तान में बाजार की जमकर खोज की है और इसे उन्होंने वैश्विक स्तर पर ख्यात कर दिया है। इसके उन्हें फायदे भी मिले तो गंभीर प्रतिस्पर्द्धा के रूप में नुकसान और परेशानियां भी। लेकिन इससे देश की गरीबी, उसकी बुनियादी समस्याओं पर कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि वे पहले से ज्यादा बढ़ते चले गए, जिससे नवधनाड्यों से नीचे के तमाम वर्ग पहले की तरह ही त्रस्त हैं। ऐसे में, पिछले दिनों एक खबर दिल को तसल्ली देने वाली प्रतीत हुई। बॉलीवुड के मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने कर्ज से दबे विदर्भ के 114 किसानों के कर्ज चुकाने के लिए उन्हें 30 लाख रुपए दान दिए हैं। यह दान उन किसानों को खुदकुशी के फंदे से उतारने और जीवनदान देने जैसा है। लेकिन अमिताभ ने ऐसा किस उपलक्ष्य या संदर्भ में किया, इसकी उन्होंने मीडिया समेत किसी को भी जानकारी नहीं दी। वैसे, अमिताभ ने शायद बहुत अर्से बाद ऐसी कोई पहल की है, जिसमें विशुद्ध सामाजिक सरोकार प्रदर्शित होता है। फिर भी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है क्योंकि आमिर खान पर भी यह सवाल उठाए जा रहे हैं कि उन्होंने पूर्व में सामाजिक मुद्दों और अभियानों में जिस तरह हिस्सा लिया, उसी का फायदा उन्हें ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम की एंकरिंग में मिल रहा है। लोग उन्हें उम्मीद की नजरों से देख रहे हैं।
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