उदय केसरी
करीब सवा दो महीने बाद आप सबों से मुखातिब हो रहा हूं। इस दौरान व्यस्तताएं तो थीं, पर इतनी भी नहीं कि अपने विचार लिखने के लिए समय न निकाल पाया, बल्कि सच बताऊ तो लिखने की इच्छा नहीं हुई। देश व समाज में इस दौरान कई घटनाएं भी घटीं, फिर भी नहीं।...खबरें सुनकर, पढ़कर मन में कई बार विचार उत्पन्न होते रहे, पर उन पर लिखने की कभी इच्छा नहीं हुई।... महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में मनसे की जीत और शिवसेना की शिकस्त, हिन्दी में शपथ पत्र पढ़ते सपा विधायक अबू आजमी पर मनसे विधायकों का हमला, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के महाघोटाले का पर्दाफाश, जयपुर में आग आदि कई घटनाओं पर प्रतिक्रियाएं मेरे मन में उत्पन्न हुई और उसे अपने साथियों के बीच विभिन्न चर्चाओं में व्यक्त भी किया, सीधीबात पर लिखने की इच्छा नहीं हुई।...न जाने क्यों ऐसा लगता है कि महज लिखने से अब देश में कुछ नहीं होता...और फिर ब्लॉग पर लिखने से और भी कोई फर्क नहीं पड़ता, जिन्हें हम अपने विचारों से प्रभावित और जागरूक करना चाहते हैं, उन तक आपके विचार पहुंच ही नहीं पाते, या पहुंचते हैं तो वे पढ़ते नहीं है और यदि पढ़ते हैं, तो इसे वे महज एक ब्लॉगर की भड़ास मान कर परे रख देते हैं।...कोई कुछ करता नहीं...और जब िपछले दिनों श्री प्रभु चावला को आजतक न्यूज चैनल के एक इंटरव्यू प्रोग्राम सीधीबात के लिए बेस्ट एंकर का अवार्ड और आजतक को लगातार नौवीं बार बेस्ट न्यूज चैनल का अवार्ड मिला, तो लगा जैसे अब तो कुछ लिखने की जरूरत ही नहीं है। जब भारत की जनता श्री चावला के सवालों को समझने में सक्षम है और आजतक की सबसे तेज खबरों पर भरोसा है, तो उनके पास लेटलतीफ विचारों, प्रतिक्रियाओं को पढ़ने के लिए फुर्सत कहां होगी। जनता तो आजतक के बाद इंडिया टीवी पर ज्यादा विश्वास करने लगी है, जो हर महीने किसी न किसी बहाने महाप्रलय की भविष्यवाणी करता रहता है। और यदि आपको डर, भय, विनाश, तबाही के पर्यायवाची शब्दों, राक्षसों के नामों को प्रभावी तरीके से वाक्यों में प्रयोग सीखना हो, तो इंडिया टीवी जरूर देखें, निश्चित फायदा होगा।...इससे पहले आईबीएन7 के मराठी न्यूज चैनल के दफ्तर पर शिवसैनिकों के हमले की घटना भी हुई, जिसे पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमला कहा गया...सही ही कहा गया। इस खबर को आईबीएन7 समेत अन्य न्यूज चैनलों ने चलाया, लेकिन आईबीएन7 को छोड़कर किसी अन्य न्यूज चैनल ने अपनी खबर में उस चैनल के नाम का जिक्र नहीं किया। शायद अन्य चैनलों की पत्रकारिता उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी चैनल का नाम बताने की इजाजत नहीं देती।... लेिकन शायद देश की जनता काफी समझदार हो चुकी है, वह नाम की जगह ‘एक न्यूज चैनल’ से खुदबखुद समझ लेती है। तो बताइये ऐसे में हमारे-आपके विचार किसी पर कैसे प्रभाव डाल पायेंगे? आप कहेंगे हम यह कैसी निराशाभरी उलटी बातें कर रहे हैं। सीधी समझ वाले लोग भी तो हैं इस देश में। हां हैं, सब समझते हैं, पर चुपचाप। कुछ करते नहीं। क्यों करें, उन्हें भी तो अपने घर चलाने हैं, इस महंगाई के दौर में। जब लोग ‘झूठ’ व ‘चालाकी’ को सोने के भाव खरीद रहे हैं, तो कोई उनके ‘सच’ को कितना खरीदेंगे।
करीब सवा दो महीने बाद आप सबों से मुखातिब हो रहा हूं। इस दौरान व्यस्तताएं तो थीं, पर इतनी भी नहीं कि अपने विचार लिखने के लिए समय न निकाल पाया, बल्कि सच बताऊ तो लिखने की इच्छा नहीं हुई। देश व समाज में इस दौरान कई घटनाएं भी घटीं, फिर भी नहीं।...खबरें सुनकर, पढ़कर मन में कई बार विचार उत्पन्न होते रहे, पर उन पर लिखने की कभी इच्छा नहीं हुई।... महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में मनसे की जीत और शिवसेना की शिकस्त, हिन्दी में शपथ पत्र पढ़ते सपा विधायक अबू आजमी पर मनसे विधायकों का हमला, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के महाघोटाले का पर्दाफाश, जयपुर में आग आदि कई घटनाओं पर प्रतिक्रियाएं मेरे मन में उत्पन्न हुई और उसे अपने साथियों के बीच विभिन्न चर्चाओं में व्यक्त भी किया, सीधीबात पर लिखने की इच्छा नहीं हुई।...न जाने क्यों ऐसा लगता है कि महज लिखने से अब देश में कुछ नहीं होता...और फिर ब्लॉग पर लिखने से और भी कोई फर्क नहीं पड़ता, जिन्हें हम अपने विचारों से प्रभावित और जागरूक करना चाहते हैं, उन तक आपके विचार पहुंच ही नहीं पाते, या पहुंचते हैं तो वे पढ़ते नहीं है और यदि पढ़ते हैं, तो इसे वे महज एक ब्लॉगर की भड़ास मान कर परे रख देते हैं।...कोई कुछ करता नहीं...और जब िपछले दिनों श्री प्रभु चावला को आजतक न्यूज चैनल के एक इंटरव्यू प्रोग्राम सीधीबात के लिए बेस्ट एंकर का अवार्ड और आजतक को लगातार नौवीं बार बेस्ट न्यूज चैनल का अवार्ड मिला, तो लगा जैसे अब तो कुछ लिखने की जरूरत ही नहीं है। जब भारत की जनता श्री चावला के सवालों को समझने में सक्षम है और आजतक की सबसे तेज खबरों पर भरोसा है, तो उनके पास लेटलतीफ विचारों, प्रतिक्रियाओं को पढ़ने के लिए फुर्सत कहां होगी। जनता तो आजतक के बाद इंडिया टीवी पर ज्यादा विश्वास करने लगी है, जो हर महीने किसी न किसी बहाने महाप्रलय की भविष्यवाणी करता रहता है। और यदि आपको डर, भय, विनाश, तबाही के पर्यायवाची शब्दों, राक्षसों के नामों को प्रभावी तरीके से वाक्यों में प्रयोग सीखना हो, तो इंडिया टीवी जरूर देखें, निश्चित फायदा होगा।...इससे पहले आईबीएन7 के मराठी न्यूज चैनल के दफ्तर पर शिवसैनिकों के हमले की घटना भी हुई, जिसे पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमला कहा गया...सही ही कहा गया। इस खबर को आईबीएन7 समेत अन्य न्यूज चैनलों ने चलाया, लेकिन आईबीएन7 को छोड़कर किसी अन्य न्यूज चैनल ने अपनी खबर में उस चैनल के नाम का जिक्र नहीं किया। शायद अन्य चैनलों की पत्रकारिता उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी चैनल का नाम बताने की इजाजत नहीं देती।... लेिकन शायद देश की जनता काफी समझदार हो चुकी है, वह नाम की जगह ‘एक न्यूज चैनल’ से खुदबखुद समझ लेती है। तो बताइये ऐसे में हमारे-आपके विचार किसी पर कैसे प्रभाव डाल पायेंगे? आप कहेंगे हम यह कैसी निराशाभरी उलटी बातें कर रहे हैं। सीधी समझ वाले लोग भी तो हैं इस देश में। हां हैं, सब समझते हैं, पर चुपचाप। कुछ करते नहीं। क्यों करें, उन्हें भी तो अपने घर चलाने हैं, इस महंगाई के दौर में। जब लोग ‘झूठ’ व ‘चालाकी’ को सोने के भाव खरीद रहे हैं, तो कोई उनके ‘सच’ को कितना खरीदेंगे।
uday ji aap chahe vishwas kare ya na karen lekin pehali baar humne aapka blog padha hai .par jo bhi padha bahut accha laga kyunki humare aur aapke bahut kuch vichaar milte hein aur wishwas maniye hum bhi bahut spashtwadi hein aap hi ki tarha.galat hote dekhne ki aadat nahi hai ..........isliye jo sahi lagta hai vo muh par bol dete hein bina kisi parinaam ki parwah kiye,lekin duniya ko sahi sunne ki aadat nahi hai isliye vo hume hi galat samajhne lagti hai ...aur aapke wicharon mein sachai hai .parantu kami hai to logon ki samajh ki, aur jiss din har insan aur har nagrik humari aur aapki tarha galat par galat aur sahi par sahi bolne lagega uss din iss desh mein kabhi kuch galat nahi hoga koi corruption aur koi crime nahi hoga ...........aap isi tarha aapne wichaaron ko wyakt karte rahein jisse hum sabhi ko ek nai raah mile ,prerna mile.
ReplyDeleteThanks
Regards
SHRADDHA
सही लिखा है।
ReplyDeleteMr. Uday,
ReplyDeleteIf U once started a work so you should carryon with this. Personally I feel that u can not built Tajmahal in one day but I'ope gradully people will understand and follow your thoughts, so Keep it up and dont feel discourage.
We are with You