पेश है माखनलाल पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय की व्‍यवस्‍था की लापरवाही का एक उदाहरण

आवेदकों से मंगवाई गई डीडी को उसकी वैधता अवधि के बाद लौटाया गया
माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय, भोपाल के बारे आये दिन अखबारों में बहुत कुछ छपता रहता है। चूंकि यह पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय है इसलिए इसे खबरों में रहना ही चाहिए, लेकिन अपने अच्‍छे कामों के लिए, न कि केवल अव्‍यवस्‍था, लापरवाही और लाभ की राजनीति के लिए। इस विश्‍वविद्यालय से कभी एमजे करके निकलने के नाते इसके बारे में कुछ शब्‍द कहने के बाद असल मुद्दे पर आउंगा। महान राष्‍ट्रीय कवि व पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी के नाम पर 1990 से संचालित यह विश्‍वविद्यालय के पहले दशक में जब यहां संसाधनों का अभाव था तब यहां माखनलाल चतुर्वेदी के विचारों पर चलने की कोशिश करने वाले लोग हुआ करते थे और उनके सामूहिक कोशिशों ने इस विश्‍वविद्यालय का नाम पूरे देश भर रौशन किया था। इस पहले दशक में यहां से पढ़कर निकले विद्यार्थी भी कोई आम विद्यार्थी नहीं थे, वे पत्रकारिता संस्‍कार लेकर यहां आये और यहां से पत्रकारिता का समुचित ज्ञान प्राप्‍त गये। लेकिन इसके बाद दूसरे दशक में उत्‍तरोतर इस विश्‍वविद्यालय को शायद लालची लोगों की नजर लग गई, जिसका नतीजा आप सबके सामने है। अब यहां कैसे विद्यार्थी आ रहे है और उन्‍हें कैसी पत्रकारिता का ज्ञान दिया जा रहा है। यह बताने की जरूरत नहीं है। कह सकते हैं कि जब किसी संस्‍था की व्‍यवस्‍था में लालची और गैरजिम्‍मेदार लोगों की संख्‍या बढ़ती है तो उस व्‍यवस्‍था का नाम और इतिहास चाहें कुछ भी वहां के मूल्‍यों का ह्रास होने लगता है और उसके प्रति आग्रह तो घटती ही है।

अब मैं अपने असल मुद्दे पर आता हूं, इस विश्‍वविद्यालय ने पिछले साल अगस्‍त में अतिथि व्‍याख्‍याता/संकाय सदस्‍य की आवश्‍यकता हेतु अखबार में विज्ञापन प्रकाशित कर आवेदन आमंत्रित किया था, जिसमें आवेदन के साथ विश्‍वविद्यालय के नाम से देय दो सौ रूपये की डीडी भी मांगी गई थी। अपने कुछ मित्रों के सुझाव पर मैंने भी इसके लिए आवेदन भेजा था। आवेदन की अंतिम तिथि निकलने के बाद मुझे इंतजार था कि साक्षात्‍कार के लिए कभी कोई बुलावा आयेगा, लेकिन नहीं आया। विश्‍वविद्यालय के कुछ संपर्क वालों से पूछा तो कुछ खास पता नहीं चला। उनका यहीं कहना था-यहां तो बस ऐसा ही है....बाद में मैंने भी इसे भूला दिया। लेकिन 12 मार्च को अचानक डाकिये के हाथ एक पंजीकृत लिफाफा मिला। उसमें डीडी वापिस भेजने के संबंध में एक पत्र के साथ दो सौ रूपये की डीडी है। पत्र (क्रमांक 650/प्रशासन/2011, दिनांक-21 फरवरी 2011) में लिखा है कि संदर्भित विज्ञापन (Advt. No. 04/Admn.2010, Dt. 05-08-2010) द्वारा अतिथि व्‍याख्‍याता/संकाय सदस्‍य की आवश्‍यकता हेतु आमंत्रित आवेदन पर किन्‍ही कारणवश अग्रिम कार्यवाही न होने के कारण आपका डीडी (DD No. 007960, Date- 09-08-2010) मूलत: वापिस भेजा जाता है। नीचे कुलसचिव डा. सुधीर कुमार त्रिवेदी का हस्‍ताक्षर है। इस लिफाफे को विश्‍वविद्यालय से 10 मार्च 2011 को भेजा गया, जैसा कि लिफाफे पर‍ चिपके भारतीय डाक विभाग की स्‍लीप में अंकित है।

अब इसमें विश्‍वविद्यालय की लापरवाही पर जरा गौर कीजिए, लौटाई जा रही डीडी कब की, 09-08-2010 की, बनी हुई है और उसे मूलत: वापस कब भेजा गया 10-03-2011, जो 12-03-2011 को मुझे प्राप्‍त हुआ। यानी विश्‍वविद्यालय ने डीडी को जारी तारीख से करीब सात महीने बाद वापसी के लिए डाक खाने भेजा, जबकि बैंक आफ इंडिया की इस डीडी पर सबसे उपर ही हिन्‍दी में लिखा हुआ छपा है-जारी किये जाने की तारीख से छह महीने तक वैध। यानी मुझे वापिस की गई डीडी अवैध डीडी हो चुकी है, तो इससे पैसे कैसे रिफंड होंगे? अब आप इसे क्‍या कहेंगे, मानवीय भूल या जानबूझकर की गई लापरवाही। अतिथि व्‍याख्‍याता/संकाय सदस्‍य पद के लिए विश्‍वविद्यालय को मेरे जैसे सैकड़ों आवेदन डीडी सहित मिले होंगे और यदि सभी डीडी को 10 मार्च 2011 को ही वापसी के लिए डाकखाने भेजा गया तो बहुत संभव है उन सभी डीडी की वैधता अवधि समाप्‍त हो चुकी होंगी।

ऐसे में, आवेदकों को वैधता अवधि के बाद लौटाई गई उनकी डीडी से पैसे रिफंड नहीं होने के जिम्‍मेदार विश्‍वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. सुधीर कुमार त्रिवेदी तो है ही और आवेदकों को हुए इस नुकसान की भरपाई विश्‍वविद्यालय को करनी चाहिए। यह घटना चाहे, छोटी धनराशि की ही क्‍यों न हो, यह विश्‍वविद्यालय की लचर और लापरवाह चुकी व्‍यवस्‍था की पोल जरूर खोलती है। इतने बड़े विश्‍वविद्यालय में किसी पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित किये जाने के बाद नियुक्ति प्रक्रिया को निरस्‍त कर दिया जाता है और पहले आवेदकों को इसकी सूचना तक भी नहीं दी जाती है और बाद में आवेदन के साथ मंगवाई गई शुल्‍क के रूप में डीडी को मनमाने ढंग से उसकी वैधता अवधि के बाद भेजा जाता है। इस अंधेरगर्दी के बारे में आप क्‍या कहेंगे?

क्‍या भरोसेमंद है देश की कानून व्‍यवस्‍था?

उदय केसरी  
हाल के दिनों पर नजर डालें तो देश में कानून व्‍यवस्‍था की स्थिति में जबरदस्‍त फेरबदल हुआ है। नीतिश कुमार के बिहार पर से बदनामी के दाग धुलने लगे हैं, ले‍किन शायद ये धुले हुए दाग का पानी बहकर उत्‍तर प्रदेश जा रहा है, क्‍योंकि गौर से देखें तो उत्‍तर प्रदेश पर पुराने बिहार का रंग चढ़ने लगा है। थोड़ा और गौर फरमायें तो इस दागदार पानी का बहाव उत्‍तर प्रदेश से होते हुए दिल्‍ली तक जा पहुंचा है। दरअसल, गंदा पानी प्राय: वहीं जमा होता है, जहां गड्ढे अधिक होते हैं। यही नहीं, अब चूंकि दिल्‍ली में ही केंद्र सरकार का भी दरबार है तो राष्‍ट्रीय कानून व्‍यवस्‍था से भी इस पानी की गंध आने लगी है।

इस गंदे या दागदार पानी से हमारा तात्‍पर्य तो अब तक आप समझ ही गये होंगे- अपराध, घोटाला और गबन, अन्‍याय, अत्‍याचार। एक अनुमान है कि पिछले एक साल के दौरान देश में जितने घोटालों का खुलासा हुआ है, उतने पिछले साठ सालों में नहीं हुए। 1996 में पर्दाफाश हुए 900 करोड़ के चारा घोटाले के बाद भी इससे भी बड़े घोटालों के खुलासे होंगे यह तो शायद देश की आम जनता ने सोचा भी नहीं होगा। लेकिन भारत की जनता तो भोली-भाली है और वह तो घोटालेबाज नेताओं को तक तब तक दोषी नहीं मानती और वोट देते रहती, जबतक न्‍यायालय उसे सजा सुनाकर जेल नहीं भेज देता।

खैर, भारत देश और यहां की जनता यदि उदार है तो उसका फायदा चालाक नेता, अफसर, व्‍यवसायी और अपराधी तो उठायेंगे ही। सो, अब घोटालों के फर्दाफाश होने की खबरे भी मीडिया में वैसे ही हो गई है, जो रोज चोरी, डकैती, लूट और बलात्‍कार की खबरें आती रहती हैं। अव्‍वल तो यह कि घोटाले के आरोपी नेताओं और अफसरों को अब शर्म नहीं आती, बल्कि वे तो इसे घोटाला मानते ही नहीं हैं। वे मीडिया के सामने बेखौफ अपनी दलीलें देते नजर आते हैं। वैसे, सच कहें तो आम लोगों को भी इससे कोई मतलब नहीं रह गया कि किसके बंगले, गाड़ी और कारोबार में काली कमाई लगी है, उसे तो वे सब ‘महान’ और बड़े लोग लगते हैं जो धनवान हैं।

कानून व्‍यवस्‍था में फेरबदल का असर महाराष्‍ट्र पर देखा जा सकता है, वहां की पुलिस को काफी तेजतर्रार माना जाता रहा है, लेकिन शायद दिल्‍ली तक पहुंच चुका गंदा पानी अंदर ही अंदर मुंबई भी पहुंच गया है। यहां पहले अपराधियों का अगल ही वर्ल्‍ड; अंडर वर्ल्‍ड हुआ करता था। वह शायद अब ओपन वर्ल्‍ड में तब्दिल हो चुका है, क्‍योंकि यहां के मुख्‍यमंत्री से लेकर विधायक तक और विपक्ष दलों के नेताओं तक कौन कब किस घोटाला, गबन या अपराध में आरोपी बन सामने आ जाते है समझ में नहीं आता। मसलन, कानून व्‍यवस्‍था बनाये रखने में लापरवाही के लिए विलास राव देशमुख को मुंबई पर आतंकी हमले के बाद हटाया गया, फिर आदर्श सोसाइटी घोटाले में शामिल होने के आरोप में अशोक चौहान को हटाया गया और दिल्‍ली से पृथ्‍वीराज चौहान को सीएम की गद्दी संभालने के लिए भेजा गया। ले‍किन अभी एक साल भी नहीं पूरे हुए हैं कि उन पर सीवीसी नियु‍क्ति के मामले थॉमस के बारे में गलत जानकारी देने का आरोप लगा है और यह आरोप कोई और नहीं स्‍वयं प्रधानमंत्री ने लगाया है। यानी महाराष्‍ट्र में कुछ महीने बाद किसी और आदमी को मुख्‍यमंत्री बना दिया जाये तो कोई आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए। अब ऐसे फेरबदल और घोटालों के दौर में कानून व्‍यवस्‍था पर शासकों का कितना ध्‍यान रहता होगा, यह समझना मुश्किल नहीं है। और यह भी कि बाकी पावरफुल नेता, अधिकारी और अपराधी इस दौर का कैसे इस्‍तेमाल करते होंगे, यह भी समझ सकते हैं-जितना चाहो लूटो, भारत की कानून व्‍यवस्‍था कुछ नहीं कर पायेगी। सालों टैक्‍स जमा नहीं करने वाले और स्‍वीस बैंक में काला धन जमा करने वाले हसन अली विरूद्ध भारत की कानून व्‍यवस्‍था क्‍या कुछ कर पायी है। उसे तो गिरफ्तार करने में पुलिस डरती रही है। इस बात पर जब सुप्रीम से फटकार लगी तब जाकर कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू की गई है।

देश में ऐसी कानून व्‍यवस्‍था के आलम में ऐसे किसते घोटाले चल रहे होंगे, जिनका आगे चलकर खुलासा होगा। इसे रोका नहीं जा सकता, क्‍योंकि किसी भी बड़े घोटाले की जांच में सालों लगते है और मामला दर्ज होने के उसकी सुनवाई में सालों लगते हैं। तबतक देश में और इतने बड़े घोटाले सामने आ जाते हैं कि पुराने घोटाले बहुत छोटे लगने लगते हैं। और कभी-कभी उन मामलों को बेनतीजा ही बंद कर दिये जाने की सिफारिश कर दी जाती है। जैसे बुफोर्स घोटाला।
खैर, यह विषय इतना विस्‍तृत है कि बातों और तथ्‍यों का कोई अंत नहीं है, फिर भी देश में अबतक फर्दाफाश हुए शीर्ष दस घोटालों की सूची के साथ अपनी बात समाप्‍त करता हूं-
1. 2जी स्‍पैक्‍ट्रम घोटाल : 1.76 लाख करोड़
2. राष्‍ट्रमंडल खेल 2010 : 70 हजार करोड़
3. तेलगी स्‍टाम्‍प घोटाला : 20 हजार करोड़
4. सत्‍यम कंप्‍यूटर घोटाल: 14 हजार करोड़
5. बोफोर्स घोटाल : 64 करोड़
6. चारा घोटाला : 900 करोड़
7. हवाला घोटाला : 72 करोड़
8. आईपीएल घोटाला : अज्ञात
9. हर्षद मेहता घोटाला : 2 हजार करोड़
10. केतन पारेख घोटाल : 120 करोड़