भारत के अमन-चैन के दो दुश्‍मन

उदय केसरी 
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और आजाद भारत में यह क्‍या हो रहा है? तानाशाह और फासिस्‍ट शिवसेना भारतीय सिनेमा के सुप्रसिद्ध कलाकर शाहरूख खान की अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता का अपहरण करना चाहती है। सहिष्‍णुता की भारतीय संस्‍कृति को शर्मशार कर शाहरूख के उस बयान के लिए उनसे माफी मांगने की मांग की जा रही है, जो भारतीय सहिष्‍णुता को ही प्रदर्शित करता है। पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसी मां तुल्‍य भूमि है, जिसकी गोद में दुनिया के सभी धर्म, जाति, संप्रदाय, मान्‍यता व‍ विचार के लोगों को हमेशा इतना प्‍यार व दुलार मिला कि वे सब भारतीय रंग में रंगते चले गए। यह भारत की प्रकृति है, जिसे कभी बदला नहीं जा सकता। यदि बदलना संभव होता, तो यह देश बहुत पहले ही असंख्‍य टुकड़ों में बांट जाता। शिवसेना और महाराष्‍ट्र नवनिर्माण सेना से भी ताकतवर अलगावादियों ने कई बार ऐसी नाकाम कोशिशें की हैं, पर भारत के मौलिक स्‍वभाव और प्रकृति के आगे उन्‍हें अपना मुंह काला कर दुबकना या भागना पड़ा है।

जैसे बाघ की खाल पहन लेने से कोई बाघ नहीं हो जाता, उसी तरह गेरूआ वस्‍त्र धारण कर लेने से कोई हिन्‍दू धर्म का मसीहा नहीं बन जाता है। और फिर मसीहा बनने का जज्‍बा है तो कोई गरीबों का मसीहा बनके दिखाए। भारत में हिन्‍दू धर्म को न कभी मसीहा की जरूरत पड़ी और न आगे कभी पड़ेगी। क्‍योंकि यह एक मात्र ऐसा धर्म है, जो महज धर्म नहीं, भारतीयों की स्‍वाभाविक प्रकृति है, जिसमें असीम विनम्रता और सहिष्‍णुता है। यह मानव को कट्टर व निरंकुश नहीं, महान और महात्‍मा बनाता है। जिस शिव के नाम पर बाल ठाकरे ने अपनी सेना का नाम रखा है, क्‍या उस शिव की प्रकृति भी उन्‍हें नहीं मालूम? शिव तो इतने बड़े देव थे, जो मानव और दानवों में भी भेद नहीं करते थे। जो भी उन्‍हें त्‍याग और तपस्‍या से प्रसन्‍न करता, वह उन्‍हें मुंहमांगा वरदान दे देते थे। ऐसे महासहिष्‍णु शिव के नाम पर खुद को हिन्‍दू धर्म और मराठी मानुष का मसीहा बताने वाले बाल ठाकरे के शिव क्‍या इस प्रकृति के नहीं हैं?

जाहिर है कि बाल ठाकरे अपने कर्मों से न भारतीय प्रतीत होते हैं और न ही हिन्‍दू। तो फिर वह कौन हैं?... वह भारत के अमन-चैन के दुश्‍मन हैं। जिन्‍हें किसी भी तरह से बस सत्‍ता की ताकत चाहिए। वह सत्‍ता के पुजारी हैं और भय फैलाना उनका धर्म है। पिछले विधानसभा चुनाव में धूल चाटने के बाद से ठाकरे काफी अवसाद में हैं। इसलिए वह कभी शाहरूख खान को गद्दार कहते हैं, तो कभी राहुल गांधी को रोम पुत्र। क्‍या वह बता सकते हैं कि वे खुद क्‍या हैं?

दरअसल, इस सत्‍ता के पुजारी को तो सबसे बड़ी चोट उन्‍हीं के गिरोह से बगावत करने वाले सगे भतीजे राज ठाकरे ने दी, विधानसभा चुनाव में 13 सीट जीत कर। जिसने शिवसेना के विरूद्ध महाराष्‍ट्र नवनिर्माण सेना खड़ी कर ली, मगर उसने केवल नाम भर बदला, चरित्र शिवसेना वाला ही रखा। या कहें उससे भी कहीं अधिक अलगाववादी। जिसके लिए शायद महाराष्‍ट्र एक अलग राष्‍ट्र है, जहां भारत के किसी भी प्रांत के, खासकर यूपी और बिहार के लोगों के आने या बसने पर रोक है। साथ ही मराठी वहां की राष्‍ट्र भाषा है और अन्‍य कोई भी भाषा बर्दास्‍त नहीं। ऐसे में हो सकता है कि आप सोचें कि क्‍या राज ठाकरे का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है? तो ऐसा नहीं है, राज ठाकरे का मानसिक संतुलन ठीक है, वह तो यह सब केवल सत्‍ता की भूख शांत करने के लिए कर रहे हैं। मगर वह यह जरूर भूल गए हैं कि जिस दिन जनता का दिमाग फिरा, तो वे कहीं के नहीं रहेंगे। मराठी मानुष ही उन्‍हें बता देंगे कि महाराष्‍ट्र यदि यूपी-बिहार वालों का नहीं है, तो उनका भी नहीं है। यह सर्वविदित है कि राज या बाल ठाकरे का खानदान खुद महाराष्‍ट्र में बाहर (मध्‍यप्रदेश) से आकर बसा है।

यदि आप हमारे विचारों से इत्‍तेफाक रखते हैं तो आप सभी सुधी पाठकों से अनुरोध है कि अपने स्‍तर पर विचार व्‍यक्‍त कर बाल ठाकरे और राज ठाकरे का पुरजोर विरोध करें। चूंकि इन दोनों अलगाववादियों ने देश में, खासकर महाराष्‍ट्र में अमन-चैन को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और उनकी ये नापाक कोशिशें हदें पार करने लगी हैं। वैसे ही, जैसे सरहद पार कर आने वाले आतंकी।