नफरत की आग में जलता देश

उदय केसरी  
एक तरफ, कश्‍मीर घाटी में आग लगी है। अलगावादी दल हुर्रियत और सत्‍तासीन नेशनल कांफ्रेंस अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। घाटी के युवा भी पत्‍थरबाजी में रोज नये रिकार्ड बना रहे हैं। दशा ऐसी है कि केंद्र सरकार उहापोश की स्थिति में दिख रही है। दूसरी तरफ, अयोध्‍या में आग लगने की जबर्दस्‍त आशंका है। मंदिर-मस्जिद विवाद पर हाईकोर्ट का फैसला आने की तारीख 24 सितंबर तय है। आग की आशंका ऐसी की उत्‍तर प्रदेश सरकार केंद्र से इतनी बड़ी संख्‍या में सुरक्षा बलों की मांग कर रही है कि उसे पूरा करने में केंद्र असमर्थ है, क्‍योंकि दिल्‍ली में हाल में कॉमनवेल्‍थ गेम शुरू होने वाला है। इन दो राष्‍ट्रीय महासमस्‍याओं के बीच देश में त्‍योहारों का मौसम शुरू हो गया है।

अब आम भारतीय को समझ लेना चाहिए कि भारत में अमन चाहिए तो न तो नेता, न ही पुलिस और न ही सैन्‍य बल कुछ सकते हैं। ये सब कहीं न कहीं कठपुतली हो चुके हैं और इनमें से किसी की डोर सत्‍ता के स्‍वार्थी तत्‍वों के हाथों में, तो किसी की डोर धन के लालची लोगों के हाथों में है। यही नहीं हम-आप को भी ऐसे स्‍वार्थी तत्‍व कभी धर्म, तो कभी जाति और कभी क्षेत्र के नाम पर अपने इशारों पर नचाते रहते हैं और हम इनको समझे बगैर अपने ही लोगों के खिलाफ पत्‍थर उठा लेते हैं।

हम-आप को ऐसी बातें बहुत देर में समझ में आती हैं, जबकि आंखों के सामने स्‍वार्थी तत्‍व अपने खेल-खेलते रहते हैं। मसलन, बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाला है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव अपराधी सहाबुद्दीन के दरवाजे पर दस्‍तक देता है गठजोड़ करने के लिए। 17 सालों बाद अयोध्‍या विवाद पर समाधान की दिशा में अदालत का फैसला आने की घड़ी आते ही भाजपा और उसके सहयोगी संगठन विवाद को विवाद बनाये रखने की तैयारी में आग उगलना शुरू कर चुके हैं। उधर बाबरी मस्जिद एक्‍शन कमेटी भी फैसला के पक्ष में नहीं आने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का मन बना चुकी है। यानी राम और अल्‍ला के नाम विवाद का कोई हल निकलना असंभव ही लगता है। हां, एक चीज तय है और वह है-एक बार फिर राम और अल्‍ला नाम की बदनामी। इनके नाम पर खून-खराबा, दहशतगर्दी, तोड़फोड़। ऐसे जख्‍म सह-सहकर धर्मस्‍थली अयोध्‍या का आजतक सही विकास नहीं हो सका है। कह सकते हैं अयोध्‍या की भी हालत कश्‍मीर घाटी की तरह ही है। जहां रहने वाले आम आदमी के दर्द को कोई समझना नहीं चाहता, बस सब अपनी राजनीति उनपर थोपकर उन्‍हें गुमराह करते रहते हैं।

कश्‍मीर घाटी में तैनात सैन्‍य बलों के विशेषाधिकार को वापस लेने की मांग वहां के युवा मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला ने की है। जिसपर केंद्र सरकार आम राय बनाने की कोशिश में कैबिनेट की बैठक कर कोई राय नहीं बन सकी है अब इसके लिए सर्वद‍लीय बैठक की जाएगी। लेकिन कश्‍मीर समस्‍या का क्‍या यही हल है? सैन्‍य बलों के विशेषाधिकार वापस ले लिये जाने के बाद क्‍या उमर अब्‍दुल्‍ला इस बात की गारंटी लेंगे कि घाटी में आतंकवादियों की सक्रियता नहीं बढ़ेगी।...नहीं बिल्‍कुल नहीं। इसी तरह, अयोध्‍या में राममंदिर बनाने के लिए केंद्र सरकार यदि कानून बना दे तो क्‍या अयोध्‍या समेत पूरे देश में कोई दंगा-फसाद नहीं होगा, इसकी गारंटी भाजपा या विश्‍व हिन्‍दू परिषद लेगी? नहीं, बिल्‍कुल नहीं। तो फिर आप और हम खुद ही विचार करके देखें कि ऐसी मांगों के पीछे कितनी बड़ी स्‍वार्थ की राजनीति छिपी है।

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